पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५४५

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अविसर्थ ४७६ प्रविय आवसथ-पु० [सं०] १ रहने की जगह । गृह । २ वम्ती ।। गना वैठ गया है, इसे दवा से आवाज रघुन जायगी । (२) गाँव । ३ अधम । ४ व्रतविशेप ।। अधोवायु का नि कर ना। अावाज गिरना = म्वर का मद अविसथ्य--- वि० [सं०] घर का । खानगी । पड़ना। अावाज देना= जोर से पुकारना । जैसे, -हमने अवस२- संज्ञा स्त्री० पाँच प्रकार की अग्नि यो मे मे एक । वह अग्नि अावाज दी, पर कोई नहीं बोला । अवाज निकालना(१) जो भोजन पकाने अादि के काम में आती है । तोकि काग्नि । बोलना । (२) चू वरना । जबान खोदना । जैसे---जो कहने श्रावसान-वि० [म०] ग्राम के अवमान या छोर का निवासी (जैसे हैं चुपचाप किए चलो, अावाज न निकालना । श्राबाज एड़ना = चाडाल अादि) [को०)। अावाज वैठना । अावाज पर लगना = अावाज पहचान कर अवसित--वि० [स०]१ पूर्ण । पूरा किया हुग्रा । २ निश्चित किया चलना । अावाज देने पर कोई काम करना । जैसे,—-नीतर हुअा। एकत्र किया हुआ ( धान्य आदि )। ४ पका हुआ । अपने पालने वालों की अावाज पर लग जाते हैं। आवाज पर पूण विकसित ।। कान रखना=(१) नुनना । ध्यान देना । श्रावाज फटना= अवस्थक--वि० [म०] अवस्था के अनुकूल (को०] । अावाज भना। अवाज लडना=(१) एक के मुर का अवस्सिक(--- वि० [सं० त्रिश्यक]दे० 'आवश्यक'। उ०—कालि दूसरे के सुर से मेल खाना । (२) एक की अावाज दूसरे । उहाँ भोजन करो अवस्सिक यहु बात --अर्ध०, पृ० ३२ । तक पहुचाना । अावाज वैठना = कफ के कारण स्वर का अविह- सज्ञा पुं॰ [स] वायु के सात स्कघो में पहले स्कध की वायु । साफ न निकलना । गला वैठना । जैसे, - उनकी आवाज वैठ | भूलक ग्रौर स्वलॉक के बीच की वायु । भूवायु । गई है, वे गावेंगे क्या ? आवाज भरना = दे० 'अावाज भारी विशेष--सिद्ध तशिरोमणि मे इस वायु को १० योजन ऊपर होना ।' आवाज भारी होना = कफ के कारण कऽ का स्वर माना है और इसी से बिजली, ग्रोले अादि की उत्पत्ति विकृत होना । आवाज मारना = जोर से पुकारना । आवाज मारी वतलाई है। जाना= स्वर मुरीला न रहना। स्वर को कर्कश होना । जैसे,२ अग्नि की सात जिह्वाग्रो में से एक है। अवस्या बढ़ जाने पर अावाज भी मारी जाती है। अावाज अबहन--सझा पु० [सं०] ढोकर पास ले जाना । समीप लाना [को॰] । श्राव'--संज्ञा पुं० [हिं० श्राना, अविना ] १ लोहा जब खूब लाल मे आवाज मिलना=( १ ) स्वर मिलाना । (२) हाँ हो जाता है तो उसे पीटने के लिये दूसरे लोहार को बुलाते हैं । में हाँ मिलाना। दूसरा जो कह रहा है, वही कहना । अाज लगाना = दे० 'अावाज देन' । इस बुलावे को 'व' कहते हैं । अावाजी--मज्ञा पुं० [फा० अावाज बो । ठोनी । ताना । व्यग्य। अावा, अावा--सज्ञा पुं० [सं० पाक] ६० 'व' । उ०---जान क्रि० प्र०—कसना । --फे ना । --मारना ।-सुनाना= व्यंग्य | प्यारे जोवे कहू दीजिए सनेसौ तोब अव सम कीजि जु कान। | वचन वो नना। तिहि काल हैं ।---रमखान, पृ० ५० । यौ6--अावाजाशी = किसी दूसरे के म य म ने की जानेवानी आवागमन-- संज्ञा पुं० [ हि० छावा = आनी+म० गमन ] १ आना व्यग्योक्ति । वोनी बोलना । जाना । अवाई जवाई । अगदरफ्त । २ बार बार मरना और आवाजानी--सच्चा स्त्री० [हिं० प्राना+जाना] अावागमन । जन्म जन्म लेन । जन्म और मरण । और मृत्यु का चक्र । उ॰---धर्मदास कबीर पिय पाए मिट यौ०--प्रावागमन (से) र हित= मुक्त । मोक्षपद प्राप्त । जैसे,—पूर्ण गइ अावाजानी ।-- धरम० शब्द०, पृ० ३ ।। ज्ञान के उदय से मनुष्य आवागमन से रहित हो सकता है। आवाजाही;--सच्चा सी० [हिं० प्राना+जाना] अनाजानी । आवागवेन --संज्ञा पुं० [हिं०] ३० 'अवागमन' | ३०–छुटावं मोहू अावादानी--सश्री० [फा आबादानी] १० अवदानी' । को विपति अति आवागमन सो । शकुंतला, पृ० १५४ । वाप--सज्ञा पुं० [सं०] वि०[ वार्षिक ] १ बीज बोना । २ आवागौन - सच्चा पु० [हिं०] दे॰ 'मावागमन' । अाल वाल । थाली । ३ कगन या ककण । ४ फेकना । अावाज- भज्ञा पुं० [फा० अावाज, मं० आवाज़, पा० अावाज ] १ छितराना । ५ मिन्नाना। मिश्रण करनी । ६ अन्न पात्र । शब्द । ध्वनि । नाद । ७ शत्रुतापूर्ण उद्देश्य । ८ पात्रो को व्यवस्थित ढंग से क्रि० प्र०—ाना -—करना ।—देना ।—लगाना । रखना । ६ असगत न भूमि । १० एक प्रकार का | २ बोनी । वाणी । स्वर । जैसे,—-वे गाते तो हैं, पर उनकी पेय कि०] । अावाज अच्छी नहीं है । ३ फकीरो या सौदा वेचनेवालों की । आवापक- मझा पु० [सं०] सोने का ककण । कगन (को०] । पुकार । ४ हुल्ला गुल्ला । शोर ।। प्रावापन- सच्चा पुं० [सं०] १. कन्धा । २ धागा लपेटने की गोल मुहा० •- आवाज उठाना = (१) गाने में स्वर ऊँचा करना । लकडी । ३. वान वनाना [को०] । (३) वि सी बात के समर्थन का विरोध मे कहना। आवाज वापिक–वि० [म०] १ बोने या क्षौर फर्मं के लिये उत्तम । २. कसना =( १ ) जोर से खीचकर शब्द निकालना । (२) अतिरिक्त । महायक । पूरक (को०] । दे० 'अवाज क्मना' । उ० – अभी तो आप हमपर आवाज वाय-सज्ञा पुं० [सं०] १ थाला । २ घन आदि का खेत मे कस रहे थे ।--फिसाना०, भा० १, पृ० ५। झाबाज खुलना = रोपनी । रोपाई । ३. हाथ का कड़ा । क कण । ४ वह (१) वैठी हुई अवाज की साफ निकलना । जैसे,--तुम्हारा सेना जो व्यूह वाँधने से बची हुई हो ।