पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५४३

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लिचित ४७६ अभिव | अनोचित--वि० [सं०] जिसके गुण दोपं का निरूपण किया गया आवझ -सज्ञा पुं० [हिं० प्रविज] दे० 'अवज' । उ०—-पटह हो । विचार किया हुआ । पखावज प्रवेझ मोहैं। मिनि महनाइन मा मन मोहैं -- आलोडन--सज्ञा पुं० [म० लोडन] १ मयना । हिलोरना । २. रामच०, पृ० ४४ । | विचार । सोच विचार । श्रावटना' -सज्ञा पुं० [सं० आवर्त्त, पा० पट्ट] १ हनचन । | अलोडना- क्रि० स० [सं० प्रलोडन] १ मथना । २ हिलोरना। उथल पुथल । हावाँडोलपन । अस्थिरता । २ सफर विकल्प । ३ खूब सोचना विचार नः । ऊहापोह करना । ऊहापोह । उ०--जा घट जान विनान है, तिस घट शालोडित-वि० [म० लोडित] १ मथा हुगा । २ हिलोर। हुप्रा । श्रावटना घना । विन खडे मग्राम है नित उठि मन मो जूझना। ३ सेवितित । सोचा हुआ । -वावीर (शब्द०)। झालोप- सझा पु० [म०] १ लुप्त करना । २ पहले का निश्चय रद्द श्रावटना --क्रि० स० गरम करना । प्रौटाना । खौलाना । | करना [को०) ।। आवटना--क्रि० अ० गरम होना । औटना। खनना। उव नना। लोल--वि० [सं०] १ कुछ कुछ हिलता हुआ। तनिक चंचल । उ०-जिहि निदाघ दुपहर है भई माध की राति । तिहि उमीर | २ क्षुब्ध । अस्तव्यस्त । जैसे,—केश [को०)।। की रावटी खरी ग्रावटी जाति ।---विहारी र० दो० २४४ । आलोलित-वि० [स०] क्षुब्ध किया हुआ । आदोलित [को०] । श्रावट्ट---मज्ञा पुं० [म० श्रावर्त, प्रा० अावट्ट] १० 'आवर्त' । उ०— झाल्टरनेटिव—सज्ञा पुं० [अ०] १ चारा । दूसरा उपाय । उ0-- ऐसो जु जुद्व करिहै न कोउ । जय नेप्प मान विट्ट मोउ । इनमें से किसी को एप्रूवर बनाना होगा, और कोई अल्टरनेटिव पृ० १०, ६१ । १००० । नही है।--गवन, पृ० २८२ । आवडना--क्रि० अ० [सं० आतुष्ट, प्रो० प्राउट्ठे, गु अवडनु] नमः अल्वार--संज्ञा पुं॰ [देश०] दक्षिण भारतीय भागवत धर्म वै मत । झना । एमद अना। ३०घडी एक नहि अावडे, तुम दरमन उपदेशको की श्रेणी ।। विन मोय । तुम ही मेरे प्राण जी, का नू' जीवन होय ।-~-मत प्रल्हा --सज्ञः पु० दि ०] १ ३१ मात्रा के एक छद का नाम वानी, भा० २, पृ० ७० ।। जिसे वीर छद भी कहते हैं। इसमे १६ मात्रा पर विराम । होता है । जैसे,--सुमिरि भवानी जगदवा को श्री भारद के श्रावधपु--सझा पु० [हिं० प्रायुव दे० प्रायूध' । उ०--(क) दादू चरन मनाथ । अादि सरस्वति तुमका ध्यावो माता के विराजी सोधी नहीं सरीर की कहै अगम की वात । जान कहावै बापुडे, प्राय । २ महोवे के एक पुरुप का नाम जो पृथ्वीराज के अवधनी निये हाथे --दादू० वानी, पृ० २२ । (ख) मनो ममय में था । ३ वहुत लवा चौडा वर्णन ।। अवध वज्जि जौ वज्र वद्दर --पृ० रा०, २॥ १०१ । मुहा०-दहा गाना = अपना वृत्तात सुनाना 1 ग्रापबीती सुनाना। अवनी --सज्ञा पुं० [सं० प्रागमन, पुं० हि० आगवन] अागमन । यो०-आत्हा का पॅबरा= व्यर्थ का नवा चौडा वर्णन । वितड़ावाद । शानी । उ०—(क) द्वारे ठाढे हैं द्विज वावन । चारो वेद अवतक---म० [सं० श्रावन्तक] अवती से सवधित [को०] । पढत मुख अागर अति सुकठ मुर गायन । वानी मुनि बनि आवतिक--वि० [म० अवन्तिक] दे॰ 'अवतक' । पूछन लागे इही विपकत अविन ।—सूर०, ८।४४० ।। प्रावती समा स्त्री० [सं० विन्ती] अवति और उसके आस पास बोली अवनी ----सहा पु० [हिं० श्रावन] दे॰ 'अवन' । उ०----बहुर | जाने वाली प्राचीन भापा । नहि अविना या देस --कवीर श॰, पृ० ५ ।। आवत्य–वि० [म अवन्त्य] १ अवति देश का । २ आवति देश का विना --क्रि० अ० [हिं० आना] दै० ग्राना' । | निवासी । यौ०--प्रावनी जावना = आना जाना । उ०-वार पार की हद्द प्रवदन- सज्ञा पुं० [सं० वन्दन] नमस्कार । प्रणाम । (को०] । । पर हर वक्त मे 'मी, वीच अावना जाना लेखा है-कवीर निँ'-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'वा' ।। २०, पृ० ३५ ।। आव--सधा पु० [म० अायु] शायु । जिदगी । उ०--- मोहन दुग अवनि--सच्चा स्त्री० [हिं० श्रावन] दे॰ 'ग्रावन' । इन दृगन से, जा दिन लख्यो ने नेक । मति लेख वह अव श्रावनेय-सज्ञा पु० [म०] अवनि या पृथ्वी का पुत्र, मंगल । में, विघि लेखनि ने फेंक --मनिधि (शब्द०) । विपन-सज्ञा पु० [मं०] १ बोप्राई । २ पेड का लगाना । ३ अविश्रादर--संज्ञा पुं० [हिं०आना +म० अादर] भावभगत। अादर थाना । ४ सारे सिर का मु डन । सत्कार । यौ०--केशवपन । आवक- संज्ञा पु० [हिं० विना-क (प्रत्यo) ] अामद । पहुँच । आवभगत---सज्ञा पुं० [हिं० श्रावना+भक्ति] अादर सत्कार । खातिर य०..- भावकजानक= अनाजाना । | तवाजी ।। श्रावज- संज्ञा पुं० [सं० प्रतोद्य, प्रा० असोज्ज, प्रविज्ञ] एक पुराना क्रि० प्र०—करना ।—होना । वाजा जो ताशे के ढग का होता है । उ०—-उद्धत मुजान मुत विभाव--सञ्ज्ञा पुं० [सं० भाव आदर सत्कार । खातिर तवाजा । बुद्धि बलवान सुनि, दिल्ली के दरनि बाजै आवज उछाही के 1 उ०—ाव भाव के होलिया पालकी सत्त नाम के वसि लगायो । सुजात०, पृ० १०१ । -धरम० (शब्द०)।