पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५४२

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आलू ४७५ लिचैन । केवल मुन नमाने प्रौर नै गरे ने ही खाते थे। पर धीरे धीरे लशफालू--पज्ञा पुं० [हिं० अालू +फा० शफतालू (निरर्थक)। इमका खूब प्रचार हुआ। प्रौर अव हिंदू व्रत के दिनों में भी लडको का एक खेल जो पच्छिम में दिल्ली, मेरठ आदि म्यान इमे खाते हैं । 'लू' शब्द पहने कई प्रकार के कद के लिये में खेला जाता है । व्यवहृत होता था, विशेषकर 'अरुग्रा' के लिये । फारमी में | विशेष---इसमें एक लड़का दूसरे को घोडा बनाकर उसकी पीठ कुछ गोल फ नो के लिये भी मालू शब्द का व्यवहार होता है, पर सवार होता है और उसकी आँखें अपने हाथो मे बद कर जैसे,—प्रानू बुखारा, शफतालू अलूवा । लेता है । तब एक तीसरा नफा उमके पीछे व्रडा होकर यौं० - रतालू । शफतालू ।। उ गलियाँ बुझाता है। यदि घोडा बना हुआ लड़का उगलियो आलू-सज्ञा स्त्री० [स ० अालु] छोटा जपत्र। झारी । लुटिया। घटी । की सख्या ठीक ठीक बतला देता है, तो वह नष्ट हो जाता ' आलूचा--सज्ञा पुं० [फा० भालूच,] १ एक पेड़ ।। है और उम उगल बुझानेवाले राडके को घोडा बनाकर उस विशेष—यह पेड पश्चिमी हिमालय पर गढवाल से कश्मीर तक पर सवार होता है। होता है। इसका फल गोल गो न होता है और पजाव इत्यादि आलेख-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ लिखावट । लिरि। लिखाई । २ लिखित . मे बहूत खाया जाता है । फन पकने पर पीना और स्वाद वस्तु । लिखित सामग्री (प्रमाण आदि के लिये उपयोगी) । में खटमीठा होता है । अफगानिस्तान में अालूचे की एक आलेख --- वि० [सं० अलक्ष्य, प्रा० अलमख] जो लक्ष्य में न अाए । जाति होती है, जिसके सूखे हुए फन्न आलूबुखारा के नाम । अलक्ष्य । उ०— अक्ह अालेख को देखिया के सो भयो व्रह्मसे भारतवर्ष में आते हैं। शालूचे के पेड़ से एक प्रकार का रागी |--केशव० अमी०, पृ० १० । | शालेखन-संज्ञा पुं० [म०] १ चित्र । तस्वीर । उ० चतुर शिल्पी पी ना गोद निकलता है । फ न की गुठलियो से तेल निकाला। या चितेरे की भाँति अनेक मृदर रूप या अालेखन उपस्थित जाता है, जो कही कही जलाने के काम आता है । इसकी किए ।- पोद्दार अभि प्र ०, पृ० ६५३ । २. लिखने का कार्य । लकडी बहुत मुलायम होती है। इससे काश्मीर में रगीन और लिखना । उ0--- इस ग्रंथ के अालेखन या संपादन में सपादन नक्काशीदार संदूक बनाते है । समिति के मित्रों के साथ विविध समिति के संयोजक तथा अन्य पर्या०--भोटिया बदाम । गर्दालू ।। मित्रो का सहयोग रहा है ।---शुक्ल अभि० ग्र०, पृ० २। मालूचाप-सज्ञा पु० [हिं० आलू + अ० घॉप] आलू का पकवान जो उवाले हुए अन्नू को पीसकर और गोल या चिपटी टिकियो । |श्रालेख्य--वि० लिखने योग्य । की तरह बनाकर घी या तेल में तलकर बनाया जाता है। यौ०--आलेख्य विद्या= मुसब्बरी । चित्रकारी । उ--अत में मैंने 'विशुद्ध' आलू चाप का प्रस्ताव कैलास के आलेपन--संज्ञा पुं॰ [म०] १ लेप । ३ उपलेप । पलस्तर । सामने रखा 1--सन्यासी, पृ० ३४० । अलेपन--सज्ञा पुं० [सं०] लेप करने का कार्य । अलूदम--सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'दमश्रा नू' ।। आले --संज्ञा पुं० [सं० श्रालय] घर। निधान । भवन । उ०—जो पै । लूदा-- वि० [फा० आलूदह] लथपथ । निथडा हुआ । लथपथ ।। प्रभु करुन के ले । तौ कत कठिन कठोर होत मन, मोहि सना हुआ; 1 ३०-- अश्के खू” अालूदा मेरे इस कदर जारी है। बहुत दुख साले ।- सूर०, १० । ४७७२। अाज ---कविता को०, भा० ४, पृ० ४० । अलोक—सच्चा पुं० [सं०] [वि० प्रलोक्य] १. प्रकाश । चाँदनी । लिन--वि० [सं०] काटा है। काट कर अलग किया हुअा [को०]। उजाला । रोशनी । २. चमक । मालूवालू-सज्ञा पुं० [सं० शालू * बालू (अनु०) ] अालूच की तरह यौ०---आलोकदायक । लोकमाला । को एक पेड जो पश्चिमी हिमालय पर होता है । इभसे एक ३ दर्शन । दीदार । प्रकार का गौद निकलता है । योरप में इसके फलो का अचर आलोकन--संज्ञा पुं० [सं०] दर्शन । अवन। श्रौर मुरवा डालते हैं, बीज से पाराब को स्वादिष्ट करते हैं लोकनीय-सच्चा पुं० [सं०] दर्शनीय । देने योग्य । और लव डी से बीन और वाँसुरी अादि वाजे बनाते हैं। अलोकित-वि० [सं०] १ देखा हुआ।। २ प्रफ़ाणित । ३६मानिन । अालोच-सज्ञा पुं० [स० अ + लुञ्चन] वेतों में गिरा हुआ पर्या०—गिलास । ओलचौ । अन्न वीनना । गोला । (दि०)। अलूबुखारा-मया पुं० [फा० शालू बुखार,] अनूचा नामक वृक्ष का आलोचक--वि० [सं०] [वि० सी० प्रलोचिफ़ा] १ देनेवाला । २ मुखाया हुग्रा फल । जो किसी वस्तु के गुण दोष की विवेचना करे । जो ग्रा नोचना विशेष--यह फल पश्चिमी हिमालय में भी होता है, परतु बुखारा करे । जाँचनेवाला । प्रदेश का उत्तम नमझा जाता है । इमी से इसका यह नाम प्रसिद्ध है। यह ग्रोवले के बराबर और प्राड के ग्राकार का अलविणषु)-- संज्ञा पुं० [हिं० अालोच] दे० 'नीच' ।। होता है और स्वाद में खटमीठा होता है । हिंदुस्तान में आलू- अलिचिन---संज्ञा पु० [सं०] १ दर्णन । २ गुण दो विवेचन । जाँच । ३ जैन मतानुनार पोप का प्रकाशन । बुखार अफगानिस्तान से आता है । यह दस्तावर है और मालोचना-सहा मी० [म०] किसी वस्तु के गण दोष का मा। ज्वर को मात करता है। इसी से रोगियों को इसकी चटनी गुण-दोष-निरूपण । खिलाते हैं । वी या तेल मे तलकर बनाया। टिकियो मालख्य-सद्मा पु० [भ] चित्र कई =