पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५४०

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आलपीन ४७३ अनास्य। आलपोन--संज्ञा स्त्री० [ पुर्त० अलफिनेत ] एक घुट्टीदार छोटी मूई । अन्नाटाली- --मज्ञा पुं० [ग्नाला = प्रनु० + हि टाल ना+ई (प्रत्य॰)] | जिसे अँगरेजी मे पिन कहते हैं । टालमटोल । उ०—ये इनकी प्रानटानी है पर अपनी बात अलविल--सज्ञा पु० [सं० ऐलविल] कुबेर ।-नेट 50, पृ० २१ । का प्रमाण देने के ये मैं इनसे कई चीज ने नू’ |-- आलम'-सज्ञ पुं० [अ०] १ दुनिया । ससार । जगत् । जहान । उ० | श्रीनिवास ग्र ०, पृ० ३६ ।। आलम किए हैं। कत्ल उनने । करे क्या एक्ला हातिम विचारा |--कविनी कौ०, मा० ४, पृ० ४० | २ अवस्था । एक ला हातिम शालान.-जा » Tra1 आलात--ज्ञा पुं० [सं०] लकडी जिभका एक छोर ज़ बना हुआ है ।। दशा । जैसे,-वे बेहोशी के अालम में है। ३ जनसमूह । वडी | जलती लुग्राठी ! लुक । जमान । ४ हिंदी के एक रतिकालीन कवि का नाम । यौ०--लातक्रीडा । लातचक्र । शालम’--सज्ञा पुर १ एक प्रकार का नृत्य । उ-उलथा टेकी अलम झालात--संज्ञा पुं० [अ०] मौजार । सदिइ । पद पल टि दृमयी नि शव चिह -केशव (शब्द०)। यौ०- अालात काश्तकारी = खेती में काम आनेवाने हु', पहा या- अालात "कायतका = राना में अालमन--सज्ञा पुं० [म ०] १ ग्रहण । पकडना । २ छूना । म्पर्शन । अादि यत्र । ३ मारना । हिनन । वध करना (को०] । | लात- संज्ञा पुं० [देश॰] जहाज का रम्मा । अालमनक-मज्ञा पुं० [पुर्त०] तिथिपत्र । पचाग । जी। यौ --प्रालीताखाना = जहाज में रस्मे वगैरह रतने की कोठरी । अलमारी--मज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'अलमारी' । झालातचक्र--संज्ञा पु० [म०] वह मडने जो जलने हुए नुक को वेग अलिय---संज्ञा पुं० [सं०] १ घर । गृह । मकान । २ स्थान ।। माय घुमाने में दिवाई एउता है । यौ०- अनायालय । देवालय । विद्यालय। शिवालय । अालान-मज्ञा पुं० [सं०] १ हाथी बाँधने का खभा वा बूटा । २ श्रालयविज्ञान- ज्ञा पुं० [स०] अहकार का आधार (बौद्ध) । हाथी बांधने का रस्सा या जजीर । ३ वधन । रगी। श्रीलर्क--वि० [स०] १ अलर्क से स्ववित । अलकं का ! २ पागल आलाप--सज्ञा पुं० [सं०] १ थोकयन । भाप । वातवीत । कुत्ते का ( जहूर ) को । यो०- वार्तालाप । ग्रालवण्य---सजा पु० [सं०] १ लावण्यहीनता । असुदरता । २ १ सगीत के मात स्प का माधन । तान । | स्वादविहीनता [को०] ।। क्रि० प्र०—करना ।--लेन । ग्रालवाल- ज्ञा पुं० [T०] थाले । अवाल । ३ प्रश्न 1 जिजामा [को०)। ४ म नि में सात स्वर (दे०] । लिस--वि० [२०] अलसी । मुस्ते । काहिल ।। आलापक-वि० [सं०] १ बातचीत करनेवाला । २ गानेयाना । आलस -संज्ञा पुं० [ To आलस्य ] [ वि० अलसी ] अानस्य । अलापचारो---संज्ञा स्त्री॰ [म० शालाप +चारी] स्वरों को माघने की सुस्ती । उ०—तौ कौतुकान्ह लिनु नाही ।—मानस, १।८१ ।। किया। तान लाने की क्रिया । जैसे,--वहां नो यूर पाउपश्रानसी-वि० [हिं० लस +ई (प्रत्य०) ] मृस्त । काहिल । धीमा । चारी हो रही है। अकर्मण्य । उ०-अलसी अभागे मोसे ते कृपालु पाले पसे । | शालापन-सज्ञा पु० [म०] १ म्वस्तिवाचन । स्वस्तिपः । २. बातें राजा मेरे राजाराम, अवध महरु !-तुलमी ग्र, पृ० ५८१ ।। करना । ३ नंगीत में या नाप नने की क्रिया [को०) ।। आलस्य---राज्ञा पुं० [मा०] कार्य करने में अनुत्साह । मुम्ती । काहिली । झालापना--क्रि० स० [सं० स्नानापन या शालाप+हि० मा (प्रन्यो :)] ला-ज्ञा पुं० [सं० लय] ताक । ताखा । अखा । | गाना । मुर नीचना । तान जाना । आला--वि० [अ० झालह,] १ आँवल दर्जे का । मवसे वढियो । अलापित--वि० [न०] १ कथिन । म भापित । २ गाया हुआ। श्रेष्ठ । उ०-कूडा अाला चाम का, भीतर भरी कपूर । दरिया। वासन क्या कर, वस्तु दिखावे नूर --दरिया० वानी, पृ० भाला। के आलापिनी--मझा झी० [१०] १ बाँसुरी । वमी । २ नमधी । ३९ । २ सितार के उतरे और मुलायम स्वर । श्रोलापी---वि० [ स० शालापिन् ] | वि० ० श्रालापिनी ] १ माला’---सज्ञा पुं० [अ० १ अौजार । हथियार। २ उपकरण । बोलने वाला । उ०-- -माधों जू, मो ने अर पापी । मन यत्र । साधन [को०] । क्रम वचन दुई राबहिन म कटक वनन पचवागी । ग्रीला-सज्ञिा पु० [सं० लात] कुम्हार का अवा । पजावी । -नूर ० १।१४० । २ प्रताप ने नेवाला । नान न्नगानेवारी । आला -- वि० [सं० श्राद्, प्रा० अल] १ गोला । अदा। नम् । गानेवान्ना ।। भीगा । उ० -आड़े दै अाले बसन जाडे हूँ की राति । साहसु आलाव, शाला --मी पुं० [अ०] अनायु । लौकी [९] 1 ककै सनेह वस सखी सबै ढिग जाति ।-विहारी र०, दो० अन्नारामो---वि० [३० मालम्प ?] १ बेपरवाह । निर्व३ । २ नहीं २८३ । २ हरा । टटक । ताजा ।। । किसी बात की पूजा न हो। चैपग्वाही । अलाइश = सज्ञा स्त्री० [फा०] १ गदी वस्तु । मल । गनीज । २. यौ ०–तारामी कारगाना = अंधेरवाता । घाव का गदा सुन, पीव वगैरह। 3. पेट के भीतर की लावत-- पृ० [सं०] पडे या पं । तही अादि । प्रालास्य--- संज्ञा पुं॰ [८०] मगर नाम जजनु (६० ।