पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५३५

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प्राक ४६६ टिक्युलेटी वन।। तदा । ४. वेदांत में क्रमानुसार जीवात्मा की ध्वं गनि या अमन इत्तमोत्तम योनियों की प्राप्त होना । ५. ग्या में ये का प्रादुर्भाव या पदीयों की एक प्रवस्या मे दूसरी अवन्या की प्राप्ति । जैसे,—बीज से अकुर, अकुर ने वृक्ष, या प्रों में बच्चे को निकलना । ६ क्षुद्र और अल्प वेतनावाले जीवों में क्रमानुसार उन्नत प्राणियों की उत्पत्ति । प्रावि मव ।। विकन्।ि विगेप-अाधुनिक दृष्टितत्वविदो की धारणा है कि मनुष्य आदि सब प्राणियो की उत्पत्ति आदि में एक या कई साधारण वैयत्रियों से हुई है जिनमे चेतना बहुत सूक्ष्म थी। यह सिद्धात इस मिद्धात का दिरोधी है कि समार के सब जीव जिस रूप में अाजकल हैं उसी रूप में उत्पन्न किए गए । निर्व- यव जड तत्व क्रमश कई सावयव रूप में सामने आया, जिनमें, भिन्न भिन्न मात्रा की चेतनता अती गई। इस प्रकार अत्यत सामान्य अवयवियो से जटिल अव्यववाले उन्नत जीव उत्पन्न हुए ! योरप में इस सिद्धांत के बनानेवाले डविन माहव है जिनके अनुसार मारोह की निम्नलिखित विधि हैं- (क) देश कान के अनुसार परिवर्तित होते रहने की इच्छा। (9) जीवन मग्राम में उपयोगी अगो की रक्षा और उनकी परिपूर्णतः । (ग) मुदृढगि जीवो की स्थिति और दुर्बलोगो का विनाश । (घ) प्राकृतिक प्रतिग्रह या सवरण जिसमे दपतिप्रतिग्रह प्रधान समझा जाता है। (च) यह साधारण नियम कि किसी प्राणी को वर्तमान रूप उपयुक्त शक्तियों का, जो समान अकृति उत्पादन की पैतृक प्रवृत्ति के विरुद्ध कार्य करती है, परिणाम है । ७ मगीत में स्वरो का चढाव या नीचे स्वर से क्रमश ऊँचा रवर निकालना । जैसे,—-मा, ३, ग, म, प, ध, नि, सा । ८ चूतड़ 1 नितव । ६. ग्रहण के इस भेदों में से एक। विशेप-इन ग्रहण मे ग्रस्त ग्रह को अवृत करनेवाला ग्रह (राहु) वतुलाकर ग्रहमडल को अावृत करके पुन दिखाई पडता है। फलित ज्योतिप के अनुसार इस प्रकार के ग्रहण के फलस्वरूप जास्रो में परस्पर सदेह और विरोध उत्पन्न होता है । प्रारोहक'- वि० [सं०] १ चढ़नेवाला । आरोही । २ ऊपर उठने वाला (को०] । ग्रारोहक- सज्ञा पुं० [सं०] १ मारथी । २ सवार । ३ बृदा [को०]! प्रारोहण-- रुपा पुं० [सं०] [वि० ग्रारोहित] १ चढ़ना। सवार होना । उ०----उन्नति का आरोहण, महिमा शैल शृ ग सी स्वाति नही -- कामायनी, पृ० १८१ । २ अँखुमाना। अर निकनन् । ३. सीढी । ४ नृत्य मच [को०)। ५ केपर उठना आरोहित-वि० [सं०] १ चढ हुआ । २ निकला हुआ । ३ अँखुआया हुआ । आरोही--वि०म० अरोहिन] [लौ० रोहिणी] १ चढ़नेवाला । ऊपर जानेवान।। २ उन्नतिशील । आरोही--सज्ञा पुं० १ सगीत शास्त्रानुसार वह स्वर जो पडजे से लेकर निपाद तक उत्तरोत्तर चढ़ता जाय । जैसे,—सा, रे, ग, म, पु, घ, नि, सा । २ सवार । अरौि--सज्ञा पुं० [सं० श्राव] १ शव्द । ध्वनि । २ अाहट । उ०-घुरघुरात हय प्रारौ पाएँ। चकित विलोकत कान उठाएँ ।--मानस, १ । १५६ । कवि० [सं०] अकं अर्थात् (सूर्य या मदार) से संबंध रखनेवाला । को०] । कि---सज्ञा पुं० [सं०] सूर्य के पुत्र १ शनि । २ यम । ३. वैवस्वत मनु । ४ कण (को॰] । शार्केस्ट्रा--सज्ञा पुं॰ [अं॰] दे॰ 'आरचेस्ट्रा' । मार्गल--सक्षा पु० [स०] दे० 'अर्गन' [को०] । अघि- संज्ञा स्त्री० [सं०] पीले रंग की एक प्रकार की मधुमक्खी जिसका सिर वडा होता है । सारग मक्खी । अयि----संज्ञा पुं० [सं०] १ अर्घा नाम की मक्खियो का मधु । सारंग विशेप-यह कफ, पित्त नाशक और अखिो को लाभकारी है। यह पकाने से कुछ कडा शौर कस ला हो जाता है । २ एक प्रकार का महुआ जिसकी सफेद गोद मालवा देश से अाती है । मार्ज-सज्ञा पुं० [हिं० दे० 'आर्य' । उ०—जय मुनि मदन धरमवर पर उपकारक प्रार्ज ।--पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ४६१ । आर्जव--सज्ञा पुं० [सं०] १ सीघापन। टेढ़ापन' का उलटा । २ सरलता । सुगमता 1 ३ व्यवहार की सरलता । कुटिलता को अभाव । अजू नि--सज्ञा पुं० [९] अजुन का पुत्र । अभिमन्यु [को० ।। प्रार्ट--सच्ची पुं० [अं॰] १ कोशल । कृतित्व । कारीगरी । शिल्प विद्या । दस्तकारी। २ कला । विद्या । शिल्प । हुनर । जैसे,—चित्रकारी । ३ चित्रकार या भास्कर का काम या व्यवसाय । ४ विश्वविद्यालय का वह विभाग जिसमे चिकित्साविज्ञान और व्यवहारशास्त्र (वकालत) तथा अन्य मब विपयो, विद्याग्रो प्रौर भाषा की उच्च शिक्षा दी जाती है । जैसे,—ग्राम कालेज । यी०--आर्ट पेपर= चित्र आदि छापने के लिये एक प्रकार का | चमकीना और चिकना कागज । अटल == वह पाठशाला जहाँ | शिल्प और कलाकौशन की शिदं दो जाती हो । अटिकिल-~--सझी स्त्री० [अ०] १ लेख । निबंध । २ चीज । वस्तु । प्राटिकिल्स श्रॉव एसोसिएशन--सूज्ञा पुं० [अ०] किसी संस्था या ज्वाइंट स्टाक कपनी या मभिनित पूजी मे खुलनेवाली कपनी की नियमावली ।। टक्यूलेटा-सा पुं० [अ०] विना रीढ़वाले ऐसे जतुग्री को एक ग्राहुन-सा गुं० [मे० प्रारोहण] दे० 'ग्रारोहण' । उa.. रहन पोहुने ने । के पल सोहैं ।-भागतेदु ग्र०, 'मा० १, १० ४१७ ।। प्रारं हिना--कि प्र० [म० प्रारोह] चढ़ना । तुलसी गलिन भीर दरमन 7गि लोग अटनि हैं ।-नुनमी ग्र ०, पृ० ३०० ।