पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५३२

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रिस आराम या आरस'---सच्चा पु० [हिं० अालस] दे॰ 'ग्रालस्य'। उ०-भोर खरी सकन राति । लागे वरपन राम पर अस्त्र शस्त्र बहू | सारस मुखी रस भरी जैभाय । स० सप्तक, पृ० २५३ । भाँति ।-मानस, ३।१३ । आरस-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० प्रारमी' । आराती.. सज्ञा पुं० [सं० श्राराति] शत्रु । शाराति । उ०-पुनि उठि अारसी-सच्चा पु० [हिं० रस्सा ] १ रस्सा । जैसे,—वोए का झटहिं सुर श्राराती । टर न कोम चरन एहि भीती ।-- प्रारसा - वह रस्सा जिसमे लगड का वोपा वैधा रहता है । मानस, ६॥३३ ।। २ रस्से की मुद्धी जिसमे कोई चीज बाँधकर लटकाई या अारात्---क्रि० वि० [सं०] १ पास । अासपास। २ दूर । दूरस्थ उठाई जाय । गाँठ । | स्थान पर । ३ तुरंत । चटपट (को०] । रमी–सच्चा स्त्री० [सं० श्रादर्श ] १ शीशा । अाईना । दर्पण । आराधक---वि० [सं०] [स्त्री० आराधिका] उपासक । पूजा करने उ०—(क) कहा कुसुम, कह कौमुदी, कितक आरसी जोति ।। वाला। आराधन-सज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि० श्राराधक, प्राराघनीय, राधित] १ जाकी उजाई लखे, अखि ऊजी होति ।-विहारी र०, दो० | सेवा । पूजा । उपासना । उ०—प्राररावन का दृढ अाराधन से ५१२ । २ एक गहना जिसे स्त्रियाँ दाहिने हाथ के अँगूठे में दो उत्तर -अनामिका, पृ० १५६ । २ तोपण 1 तर्पण । पहनती हैं। यह एक प्रकार का छल्ला है जिसके ऊपर एक प्रसन्न करना । ३ पकाना। धना (को०)। ४ अर्जन [को०] । कटोरी होती है जिसमे शीशा जड होता है । उ0--केर आराधना--सज्ञा स्त्री० [सं०] पूजा । उपासना । मुदरी की प्रारसी, प्रतिबिंबित प्यौ पाइ । पीठि दिये निधरक। आराधना ----क्रि० स० [सं० आराध = आ+ राघ्+हि० ना लखे, इकटक डीठि लगाइ ।-विहारी र0, दो० ६११ । (प्रत्य॰)] १ उपासना करना । पूजना। उ०----केहि रिस्य-सझा पुं० [म०] रसहीनता । अरसता । शुष्कता (को०] । प्राधिहू का तुम चहह । हम सन सत्य मर्म सव कहहू - आरा--संज्ञा पुं० [म०] [ स्व० अल्पा० आरी ! १ एक लोहे की तुलसी (शब्द०) । २ सतुष्ट करना। प्रसन्न करना । ज०---- दाँदार पटरी जिससे रेत कर लकडी चौरी जाती है । इसके इच्छिन फन बिनु शिव अाराधे । लहइ न कोटि योग जप दोनों ओर लकड़ी के दस्ते लगे रहते है। उ०--यह मन वाको साधे !-नुलसी (शब्द०)। दीजिए जो साँची सेवक होय । सिर ऊपर आरा सहै, तवहून श्रारावनी---संज्ञा स्त्री० [सं०] उपासना । सेवा । पूजा । (को०] । दुजा सोय ।कबीर (शब्द०)। २ चमडा सीने का टेकुया या आराघनीय---वि० [सं०] आराधना के योग्य । पूजनीय । सूजा । सुतारी ।। अाराधयिता- --वि० [सं० अराधयितु] अाराधना करनेवाला [को०] यौं०--राकश । आराधित---वि० [सं०] जिसकी उपासना हुई हो । पूजित । श्रीरामच्चा पु० [म० आर] लकडी की चौडी पटरी जो पहिए की आराध्य----वि० [सं०] पूज्य । पूजनीय है। गडारी और पुट्ठी के बीच जड़ी रहती है । एक पहिए में ऐसी राम-सज्ञा पुं॰ [सं०] बाग । उपवने । फुलवारी । उ०---परम दो पटरियाँ होती हैं, बाकी और जो पतली पतली चार पटरियां | रम्य अाराम यह जो रामहि मुख देत 1----तुलसी (शब्द॰) । जडी जाती हैं, उन्हें गज कहते हैं। | राम----सज्ञा पुं० [फा०] १ चैन । सुख । जैसे,---ममार मे कौन आरा---सा पु० [हिं० श्राडा ] लकी की या पत्थर की पटरी जिसे नहीं आम चाहता। दीवार पर रखकर उसके ऊपर घोडिया या टोटा बैठाते हैं । क्रि० प्र०-=-करना । --चाहना ----देना ।--पहुँचना ।- -पाना । यह इसलिये रखा जाता है कि घोडिया अादि एक सीध में रहे। --—लेना। --मिलना। ऊपर नीचे न हो। दीवारदासा । दासा । २. चगापन । सेहत । स्वास्थ्य । जैसे, जव से यह दवा दी गई आरा-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'प्राला' ।। हैं, तब से कुछ आराम है । आराइश-• सज्ञा स्त्री० [फा०] [वि० श्रीरास्ता] १ सजावट । २. क्रि० प्र०----करनी चाहना --देना । -पाना ।-- हो । ३ विधाम । पकावट मिटाना । दम लेना । जैसे,—-बहुत चले, कागज के फूल पत्ते जो वरात में द्वारपूजा के समय साथ ले जरा आराम तो लेने दो। जाते हैं। फुलवाडी । क्रि० प्र०—करना ।--पानी ।---लेना ।। इशी-वि० [फा०] राइ श या साज सज्जा के काम प्राने यौ०----भारामगाह । श्रारामतलव । आरामदान । रामपाई। वाला (को०] । मुहा०---- आराम करना - सोना । जैसे, उन्हे अाराम करने दो, आराकेश-सच्चा पु०० आरा+फा०कशोरा चलानेवाला आदमी। वहुत जागे हैं। आराम मे होना = सोना। जैसे,--प्रमी राम राज-सज्ञा पुं० [सं०] अराजक्ता । शासक के अभाव में होनेवाली अशाति [को०] 1 मे हैं, इस वक्त जगाना अच्छा नही । अाराम सेना = विश्राम अाराजी--संज्ञा स्त्री० [अ० राज] १ भूमि । जमीन । २. खेत । करना । आराम से = फुरसत में। धीरे धीरे । बेखटके । जैसे,--- माराण--संज्ञा पु० [स० रण] युद्ध। सग्राम ।-(डिo) [को॰] । (क) कोई जल्दी पडी है, ठहरो अाराम से लिखा जायेगा। रात--प्रव्य० [सं०] १ निकट । पास । (ख) इस वक्त रखो, घर पर ग्राम से बैठकर देगे । आराम से गुजरना=चैन से दिन कटना । राति-सज्ञा पुं० [सं०] यू । वैरी । उ०-सावधान होइ घोए जानि