पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५२९

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यद्रय आरंभना' ४६३ अायुद्रव्य-मज्ञा पुं० [सं०] १ पृत । घी । २ दवा । ग्रोपधि (को०)। युष्मान--वि० [सं० श्रायुधमत्, आयुष्मान्] [स्त्री० आयुष्मति] १ दीर्घजीवी । चिरजीवी । २ नाटकों में सूत रथी को श्रायुष्मान आयुर्वल - सा गु० [म०] अायुष्य । उम्र ।। कह कर सबोधन करते हैं। राजकुमारों को भी इसी शब्द आयुग---सद्मा पुं० [म॰] वह ग्रहयोग जिनके अनुसार ज्योतिषी से मवोधन करते हैं । ३ फलित ज्योतिष के विकु म अादि २३ किमी व्यक्ति के विषय में भविष्यकथन करते है (को०)। भेदों में से एक । आयुर्वेद सझा पु० [अ०] [वि० श्रायुर्वेदीय] अायु सवधी शास्त्र । प्रायुष्य--मुज्ञा पुं० [१०] अायु । उम्र । चिकित्साशास्त्र । वैद्य विद्य।। अयिसमझा पु० [म० अायुस् ] अायु । उ०—-ग्रायुम किंकर गए। विशेप--इस शास्त्र के अदि अाचार्य अश्विनीकुमार माने जाते तव पावे |--कवीर मा०, पृ० ४६२ । हैं जिन्होंने दक्ष प्रजापति के घड मे बकरे का सिर जोडा था। योग–सच्चा पु० [सं०] १ साहित्य में विप्रल म के दो पक्षों में से अश्विनीकुमारों से इद्र ने यह विद्या प्राप्त की । इद्र ने धन्वतरि प्रथम जिस मे अविवाहित अवस्था में प्रेम हो जाने पर मिलन को मिखाया। काशी के राजा दिवोदाम धन्वंतरि के अवतार न होने से विरह दु.ख उठाना पड़ता है। पूर्व राग की अवस्था । कहे गए हैं। उनने जाकर सुश्रुत ने आयुर्वेद पढा । अत्रि और २ हुन या बै नगाडी का जुपा । ३ पुष्पादि मेंट करने की मरद्वाज भी दम शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते है। चरक क्रिघा । ४ किनारा । तट । ५ नियुक्ति । ६ कार्य विशेष की सहिता भी प्रसिद्व है। आयुर्वेद अथर्ववेद का उपाग माना जाता है । इसके अाठ अग है। (१) शल्य (चीरफाड), को पूर्ण करना । ७. ताल्लुक । सवध । ८. कमीशन (को०] । (२) शालाक्य ( मलाई ), (३) कायचिकित्सा (ज्वर, आयोगव -मज्ञा पुं० [सं०] वैश्य स्त्री और शूद्र पुरुप से उत्पन्न एक अतिसार अादि की चिकित्सा ), (४) मूत विद्या ( झाड वर्णसकर जाति जिसका काम विशेषकर काठ की कारीगरी | है। वढई ।। फूक ), (५) कौमारतत्र (चान चिकित्सा ), (६ ) अगदतत्र प्रायोजक- वि० आयोजन या व्यवस्था करनेवाला । तैयारी करने ( विच्छू, मपि अादि के काटने की देवा ), (७) रमायन काला । प्रवधक [को॰] । अौर (८) ब्राजीकरण । आयुर्वेद शरीर में वात, पित, तः प्रायोजन - सज्ञा पु० [ स०] [स्त्री० आयोजना [वि० प्रायोजित] १ कफ मानकर चुनता है। इसी से उनका निदानखड कुछ। किमी कार्य में लगाना । नियुक्ति । २. प्रवध । इतजाम । मकुचित मा हो गया है। आयुर्वेद के प्राचार्य ये हैंअश्विनीकुमार, धन्वतरि, दिवोदास ( काशिराज ), नकुल, सामग्रीमपादन । ठीक ठाक । तैयारी । उ०--राका रजनी | प्रायोजन रस लोकोत्तर छविशाली ।---पारिजात, पृ० १० । महदेव, अकि, 'यवन, जनक, बुध, जवान, जांजलि, पैन, ३ उद्योग । ४ सामग्री । सामान । फरथ, अगम्त, अत्रि तथा उनके छ शिष्य ( अग्निवेश, भेड, विश, भड। ग्रायोजित---वि० [स०] ठीक किया हुआ । त यार । जानूकर्ण, परशर, मीरपाणि हात ), मुझुन अौर घरके । प्रायोधन--सच्चा पुं० म०] १ युद्व । लडाई । २ रण भूमि । लाई अायुर्वेदिक-- वि० [म०] १ आयुर्वेद सवधी । २ अायुर्वेद में होने | का मैदान । । | वाना [को॰] । प्रारजित--वि० [सं० आरञ्जित] सृम्यक् रूप से रजित । अच्छी आयुर्वेदी-सज्ञा पुं॰ [मं० श्रायुर्वेदिन्] वैद्य । श्रायुर्वेदानुसार चिकित्सा तरह रंगा हुआ। । उ०—नब नव उप राग आरजित मनरंजन | करनेवा ना व्यक्ति [को॰] । वनमाली --पारिजात, पृ० १० । आयुर्वेदी-वि० अायुर्वेद सवधी [को०] । श्रारभ-सज्ञा पुं० [सं० श्रारम्भ] किसी कार्य की प्रथमावस्या का श्रायुर्वं द्वि--सा स्त्री॰ [म०] अायु की वृद्धि । उम्र वढना [को॰] । संपादन । अनुष्ठान । उत्थान । शुरू। समाप्ति का उलटा । अायुप -सी पु० [स० झायुष्] अायु । उ०—-तौ अर्बु नामदेव ३०--प्रारम और परिणामों के सवधसूत्र से चुनते हैं । युप ते होहु तुम्हहि प्रभु दाता 1-मवतमाला, (श्रो०)। कामायनी, पृ० ७५।। क्रि० प्र०—करना । जैसे,--उमने कल से पढ़ना अारभ किया। अायुपमान -वि० [स०अायुष्मान्] दे॰ 'अयुष्मान' । उ०--ताते । —होना । जैसे,--अभी काम प्रारमें हुए के दिन हुए हैं ?! मरजा विरद भो सोभित मिह प्रमाने ( रन-भूति सुभौसिला, २ किसी वस्तु का अादि । उत्थान । शुरू का हिस्सा । जैसे,— अायुपमान वुमान ।-भूपण ग्रं॰, पृ० ७ ॥ हमने यह पुस्तक प्रारभ से अत तक पढ़ी है। ३. उत्पत्ति । आयुष्कर-वि० [सं०] आयुवर्धक । उम्र बढानेवाला [क] । अादि । ४ वेव (यो०)। ५ गर्व (को॰) । प्रायुःकाम--वि० [म०] वी उम्र की कामना रखनेवाला (को॰] । ग्राभक-वि० [ म० घारम्भक अरभ करनेवाला । श्रीगणेश घायुष्कौमारभृत्य-संक्षा पुं० [भ] बच्चों के रोग का इलाज । करनेवा [को॰] । वीमार बच्चो की दवा [को०] । श्रीरभण--सच्ची पु० [प्रारम्भण] १ प्रारभ करने की क्रिया ! प्रारभ प्रायुप्टोम--सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का यज्ञ जो आयु की वृद्धि के होने की क्रिया या भाव। २ अधिकार में करना। ३. मूठ नि? किया जाना है। (हैंडिल) [को॰] । प्रायुप्मन्--मज्ञा पुं० [सं०] अनुमान् का संबोधन झा । उ०- आरभत अव्य० [म० प्रारम्भस्] प्रारम से । मूत्र से । मूलत, । कल्याण हो अायुष्मन्, तुम्हारे युवराज अपने अधिकारों से नए सिरे से (को०) । उदासीन हैं।--द० पृ० ६ । आरभना—क्रि० अ० [सं० प्रारम्भण 1' शुरू होना ।