पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५२५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

पमिदनी अामालनामा ४५८ महा०—आमद आमद होना=(१) अाने के समय अत्यंत निकट श्रमिदंकी-सच्चा स्त्री० [सं०] १. अमिनको । प्रमिला । आंवला । २. होना । (२) याने की खबर फैलना या धूम होना। फाल्गुन शुक्ला एकादशी का नाम ।। २ आय । आमदनी। उ०--इन्ने थोडी आमद में अपने घर अमिर्दन--संज्ञा पुं० [सं०] [वि० अमदत] १. जोर से मलना । ३ का प्रवध बहुत अच्छा वाँध रक्खा है। -श्रीनिवास ग्र०, खूब पीसना या रगहना। अमिर्प-सज्ञा पुं० [सं०] १ क्रोध । कोप । गुम्सा । उ०—ग्रामपं को पृ० ३०४। जगानेवाली शिखा नई दे |--माम० पृ० ५७। २. असहनअमदनी- सज्ञा स्त्री० [फा०] १ आय । प्राप्ति । अानेवाला छन । शीलता । ३ रस में एक मचारी भाव । दूसरे का अहूकार न उ०-इन्की आमदनी मामूली नहीं है, तथापि जितनी आमदनी | महकर उसको नष्ट करने की इच्छा। अाती है उस्से खर्च कम किया जाता है ।-श्रीनिवास ग्र०, मिलक-सग्ना पु० [सं० 11 सी० अपा० आमलकी ] प्रामन्ना ! पृ० ३०४।२ व्यापार की वस्तु जो और देशो से अपने देश विला । घाफल । उ०—जानहि ननि कान्न निज ज्ञाना । में अावे । रफ्तन का उलटा । करतल गत मन्नक रमना ।—मानस, १३० । मिन-सच्चा स्त्री॰ [देश॰] १ वह भूमि जिसमें साल भर में केवल आमलकी-मझा ब्री० [म०] १ छोटी जाति का अवला । प्रदिनी । एक ही फसल उत्पन्न हो । २ वगाल के धान की जाड । २ फागुन सुदी एकादशी ।। की फसल ।। अामला--- संज्ञा पु० [हिं०] दे॰ 'अविला'। ग्रामनघमना(७–वि० [हिं०] दे॰ 'ग्रामण दुमण’। उ०—यह मन प्रमिलेट–मझा पु० [अ०1 अहे का बना नेमकेन पैदाय । इ9 आमनघूमना, मेरी तन छीजत नित जाई ।-कवीर छ ०, चाय ग्रामनेट इटाने में ही कितने रुपए खर्च कर देते पृ० १६० ।। हैं।--सन्यानी, पृ० १७४।। आर्मनस्य--संज्ञा पुं० [सं०] अनमनापन । दु ख । रज । आमवात-सा पु० [म०] एव रोग जिम में प्रवि गिरती है और आमना- क्रि० अ० [हिं० श्रावना] दे॰ 'प्राना' । जोड़ों में पीडा तथा हाथ पैर में सूजन हो जाती है मुह भी मनाय--सझा पुं० [घु० ग्राम्नाय] दे० 'आम्नाय । सूज जाता है और शरीर पीला पड़ जाता है। यह रोग आमनासामना- सज्ञा पुं॰ [ आमना-सामना का अनु० + हि० मदाग्निवाले को अजीर्ण में भोजन करने से होता है। सामना]मुकाबला । भेट । जैसे,—इस तरह झगडा न मिटेगा । प्रमशूल--संज्ञा पुं० [सं०] अव मुडेरे का रोग । अव के कारण तुम्हारा उनका आमना सामना हो जाय । "पेट में मरोड होने का रोग । आमनी--मज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १ वह भूमि जिसमे जाडे का धान ऋामश्राद्धसज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का था जिसमें f/इदान के | बोया जाता है । २ जाडे में वोए जानेवाले धान की खेती ।। बदले में ब्राह्मणों को कच्चा अन्न दिया जाता है । आमनेसामने--क्रि० वि० [ आमने सामने का अनु० +हिं० सामने ] आमाँ---संज्ञा पु० [हिं०] दे॰ 'ग्राव।। एक दूसरे के समक्ष । एक दूसरे के मुकाबिले। इस प्रकार अामाजीर्ण--संज्ञा पुं० मि० अव का अजीर्ण । कच्चा नपच । जिसमें एक का प्रमुख या अग्रमाग दूसरे के मुख या अग्रभाग | तुरुमा । इस रोग में खाया हुअा अन्न ज्यों का त्यो गिरता है। की अोर हो। इस प्रकार जिसमें एक वस्तु के अग्र माग से श्रामातिसार-संझ” पुं० [सं०] अाँव के कारण अधिक दम्तो का खीची हुई सीधी रेखा पहले पहल दूसरी वस्तु के अग्रभाग ही को स्पर्श करे। जैसे,--सभा के बीच में दोनों प्रतिद्वदी आमने | होना । अब मुरेडे के दस्त । सामने बैठे । (ख) वे दोनो मकान आमने सामने हैं, सिर्फ एक अमात्य---मझो पुं० [सं०] दे० 'अमात्य' । सडक बीच मे पड़ती है। मादगी--मज्ञा स्त्री०[फा०] तैयारी । मुस्तैदी। मौजूदगी । तत्परता ! मामय-सज्ञा पुं० [सं०] रोग । व्याधि । बीमारी। आरजा ।। अमादा--दि० [फा० आमादह] उद्यत । तत्पर । उतारू ! तैयार। अभियावी--वि० [म० अामयाविन्] १ रोगी । २ मदाग्नि रोग से सनद्ध। उ०--आज वेदकुशी करने पर आमादा है अाकाश । पीडित [को॰] । -ठडा०, पृ० ६३ ।। प्रामरक्तातिसार--संज्ञा पुं० [म०] अाँव और लहू के साथ दस्त होने क्रि० प्र०—करना ।—होना। का रोग। श्रीमाना--सज्ञा पुं० [स०] व के कारण पेट का फनना। व अमरख -सज्ञा पुं० [म० ग्रामपं] दे॰ 'ग्रामपं ।। | का अफरी । मिरखना - क्रि० प्र० [ ५० ग्रामर्ष = क्रोध, हिं० आमरख +ना आमान्न--सच्ची पुं० [म०] कच्चा अन्न । बिना पका अनाज । कोरा (प्रत्य॰)] क्रुद्ध होना । दु खपूर्वक क्रोध करना । उ०--(क) अन्न । सूखा अनाज । सुनि अमरखि उठे अवनीपति लगे वचन जनु तीर ।—तुलसी आमाल-सज्ञा पुं० [अ०] कर्म । करनी 1 करतूत । (शब्द०) । (ख) तव विदेह पन व दिन प्रगट सुनायो । उठे यौ०--प्रासालनामा । भूप आमरखि सगुन नहिं पायो।—तुलसी (शब्द०)। आमालक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० श्र+माल या देश॰]पहाड़ के पास की भूमि । अामरण-क्रि० वि० [म०] मरणकाल तक। जीवन की अवधि तक । आमालनामा--संज्ञा पुं० [अ० आमाल+फा० नामा] वह रजिस्टर मृत्यु पर्यंत । जिसमे नौकरी की चालचलन और कार्य करने की योग्यता भामरससवा पुं० [हिं॰] दे॰ 'अमरस' । झादि का विवरण रहता है।