पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५२४

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माम ४५७ आमदं जाति के कलमी ग्रामो की गुठली बहुत पतली होती है और माधारणत वह चीज सस्ती विकती है । ( यह ऐसे अवसर उनका गूदा बँधा हुआ, गाढा तया विना रेशे का होता पर कहा जाता है जब कोई किसी वस्तु का इतना कम दाम है। ग्राम का फल खाने में बहुत मीठा होता है । पक्के ग्राम लगाता है जितने पर वह वस्तु जहाँ पैदा होती है, वहाँ भी ग्राषाढ़ से भादो त के वहुतायत मे मिलते हैं । नहीं मिल सकती । ) केवल वीज से जो ग्राम पैदा किए जाते हैं उन्हें 'वीजू आम-वि० [सं०] कच्चा । अपक्व । असिद्ध । उ-विगत मन सन्यास कहते हैं। ये इतने अच्छे नहीं होने । इमी में अच्छे म कलम लेत जल नावत आम घरो मो -तुलसी ०, पृ० ५४५।। और पैबंद लगाकर उत्पन्न किए जाते हैं, जो ‘कन मी' कहलाते भीम--सज्ञा पुं० [म०] १ खाए हुए अन्न का कच्चा, न पचा प्रा हैं। पैवद लगाने की यह रीति है कि पहले एक गमले में बीज मल जो सफेद और लसीला होता है । रखकर पौधा उत्पन्न करते हैं। फिर उस पौधे को किमी अच्छे यो०--आमातिमार।। पेड के पास ले जाते हैं और उनकी हाल उस अच्छे पेड की दान से बांध देते हैं । जब दोनों की डाल बिलकुल एक होकर ३ वह रोग जिसमे अव गिरती है। यौ०.-मज्वर । अमवात । मिन जाती है, नत्र गुमने के पौधे को अलग कर लेते हैं । इस प्रक्रिया में मन या पौधे में उसे अच्छे पौधे के गुण म्रा ग्राम°---वि० [अ०] १ माधारण । सामान्य । मामूली । जैसे,--- जाते हैं। दूसरी चुचित यह है कि अच्छे ग्राम की डनि को |श्राम अदमियों को वहाँ जाने की आदत नहीं है। उ०० नाटक र वि में बीज़ पौधे वे टूठे में ले जाकर मिट्टी के साथ बा । शाम लोग उनकी सोहबत को अच्छा न समझते थे । देते हैं। ग्राम के लिये हड्डी की बाद बहुत उपकारी होती है। प्रताप० ग्र०, पृ० २७५।। ग्राम के वन भेद हैं, जैसे, मालदहू, बबट्या, दशहूरी यौ०---मखास = महल के भीतर का वह भाग जहाँ राजा मचे टा, चौना, नफानो गटा, सफेद, कृण भोग, रामकेना या वादगाह वैठते हैं । दरवार आम = वह राजस भी जिसमे इत्यादि । भारतवर्ष में दो म्यान ग्राम के लिये बहुत प्रसिद्ध सब लोग जा सकें । सामफहम= जो सर्वसाधारण की समझ -- मालदह ( बगान ) और मझगाँव ( धवई में ) । मे ग्रावे । उ०—इबारत वही अच्छी कही जायगी जो अमफहम मालदहू अाम देखने में बहुत बडा होता है, पर स्याद मे शौर खासपसंद हो । --प्रेमघन॰, भा० २, पृ० ४०९ । फीका होना है। बवइया ग्राम मालदह से छोटा होता है, २ प्रसिद्ध । विख्यात । जैसे,—यह बात अव अमि हो गई है, पर बने में वन मीठा होता है । नंगडा अाम देखने में छिपाने से नहीं छिपती । लचा नव होता है और मवम मीठा होता है । वनारस का विशेप--इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग वस्तु के लिये होता है, लंगड़ा प्रमिद्ध है। ननुन* का मफेदा भी मिठाम मे अपने ढंग व्यक्ति के लिये नहीं। का एक है। इसका छिवकी सफेदी लिए होता है। इसी से ग्रामगधि---संज्ञा स्त्री०सै० मगन्धि] विसायँध गध, जैसे,—चिता के इमे सफेदा कहते हैं। जितने कलमी और अच्छे ग्राम हैं, वे सब धुए या कच्चे माल या मछली की । में काटकर गढ़ाए जाते हैं। मग -सज्ञा पुं॰ [ स० अमार्ग ] कुमार्ग। कुराह । उ0--वह ग्राम के रस को रोटी की तरह जमाकर अवैसठ या पडित श्री चतुर परेवा । ग्राभग न चले जानि पति सेवा ।-- अमावट बनाने हैं। कच्चे ग्राम का पन्ना लू लगने की अच्छी चित्राo, पृ० १६२ । । दवा है । बच्चे ग्राम की चटनी वन ती है तथा प्रचार और अामगर्भ-सा पु० [सं०] भ्रण (को॰] । मुरब्बा भी पड़ता है। ग्राम की फाँको को खटाई के लिये अमचुर--सझा पुं० [ स० आम्रचूर्ण, हि० अमचूर, शामचुर ] ६० मुखाकर रखना है जो प्रमहर के नाम से विकती है। इसी प्रमहर 'अमचुर' । उ०----खड़े कीन्ह आमचुर परा। लौग लायची सौं के चूर ही अमचूर कहने हैं । बॅडबरा |--जायसी ग्रे ०, पृ० २४७ । आम की लव इन के तहते, किवाड़, चौखट आदि भी बनते ग्रामज्वर-सच्चा पु० [सं०] १ वह ज्वर जो अवि के कारण हो । हैं, पर इतने मजबूत नहीं होते । इसकी छाल और पत्तियो से । २ वह ज्वर जिसमे अवि गिरे। एक प्रकार छ न् । 'रग निकलता है। चौपायो को शाम मडासा पुं० [सं० अम्रिात ] एक वडा पेड जिसके फन ग्राम की पत्ती जलाकर कि उनके मंत्र को इकट्ठा करकै प्योरी की तरह खट्टे और बड़े बेर के बराबर होते हैं, फनो का रग बनाते है । याचार पडता है। इसकी पत्तिय शरीफे की पत्तियों से पर्या०-चूत । रसाल । अतिसौरभ । सहकार। माद । | मिलती जुलती होती हैं। यौ०--अमचूर । अमहर। प्रामणदुमण-वि० [म० उन्मन+दुर्मन, प्रा० उम्मण दुमन, राज० मृहा०——ाम के ग्राम, गुठली के दाम = दोहरा लाभ उठाना। प्रामण दूमणी] उदास । खिन्न । उद्विग्नमन । उ०-साहिब ग्राम खाने से काम या पेड गिनने से = इस वस्तु से अपना काम हुँमउ न बोलिया, मुझसू रीस ज अाज । अतरि श्रामण निकालो पके विपथ में निरर्थक प्रश्न करने से क्या प्रयोजन । दूमणा, किसउज इवड काज-ढोना, ६० २१८ । बारी में बारह आम सट्टो में भट्ठारह प्राम= जहाँ चीज महंगी आमद-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ अचाई । अागमन । ग्राना । ।, मिलनी चाहिए, वहाँ उस स्थान से भी सस्ती मिलना जहाँ यौ॰—-मदरफ्त = अाना जाना । आवागमन ।