पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५२१

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श्राबेदारी श्रावेरवां विशेप--पुरानी चाल की तोपो में जब एक बार गोला छूट वशिनास-सज्ञा पुं० [फा० अावशनारी] जहाज का वह कार्यरत जाता था, तब नल को ठढ़ा करने के लिये एक छड मे लपेटे। जिसका काम गहराई जाँचकर धत नाना होना है। हुए चीथडो को भिगोकर उसपर पुचारा दिया जाता था, वहवा--सजा झी० [फा०] नदी गरमी आदि के विचार में किमी जिसमे नल के गरम होने के कारण वह गोला आप ही प्राप देश की प्राकृतिक म्प्रिति । जलवायु । न छूट जाये ।। श्रावाद--- वि० [फा०] १ बमा हुा । २ प्रगन । 'म पूर्वक । जैमै,अाबदारी---संज्ञा स्त्री॰ [फा०] चमक । जिला । श्रोप । काति । उ० चाद रहा चावा )वाद रहो । ३ कि । जोतने यौने अाबदारी से है " हर मिसरए तर अबेहयात |--प्रेमघन०, योग्य (जमीन) । जैसे,---ॐार जमीन को अाबाद मारने में भी० २, पृ० ६३ ।। बहुत खच पड़ता है । अविदीदा--वि० [फा० आबदीदह,] अनुयुक्त । रोता हु को०]] क्रि० प्र०-फरना ।--होना ।- रहना। अबिदोज-सज्ञा पुं० [फा० अबदोज] पानी के भीतर चलनेवाली यो०--शावादार । | नाव या जहाज [को॰] । पनडुब्बी । अावादकार---भज्ञा पुं०[फto] १ एक प्रकार के कान कार जो जगन श्राबद्ध-वि० [सं०] १ बंधा हुआ । २ कैद । पाटकरे श्राबाद हुए हैं । २ एयः प्रचार के जमीदार जिनकी आबद्ध--संज्ञा पुं० १ अलकार । २ छून। जुआ। ३ दृढ था कठोर मालगुजारी उन्हीं में वसूद की जाती हैं, नवरदार के वघन [को०)। द्वारा नहीं । शाबन --संज्ञा पुं॰ [फा० श्राव+अ० नुजूल] फोते मै पानी उतरने | श्रीवादानी-संज्ञा स्नी० दे० 'अबादानी' । भावादानासना रना इ० 'अचादान | का रोग । अडवृद्धि । अोवादी-संज्ञा स्त्री० [फा०]१ उत। ३ जनमयी। मई मशुमारी । आबनूस-सज्ञा पुं॰ [फा०] [ दि० बनूसी एक पेड जिसे तेंदू कहते ३ वह भूमि जिसपर रोती होती हो । हैं और जो जगलो में होता है । प्रवाधा-सज्ञा जी० [म०] १. पो।। मानसिक पीटा। चिंता विशेष----यह पेड जद बहुत पुराना हो जाता है, तब इसकी लवडी [को॰] । की हीर बहुत काना हो जाता है। यही काकी लकडी अविनस विलिअव्य० [अ०] बाल दो ने लार । सडक नेर । जैसे, के नाम से बिकती है और बहुत वजनी होती है। अविनूस की। अावालवृद्ध । बहुत सी नुमाइशी चीजें वनती हैं,--जैसे---छडी, कलमदान, | वालq-सज्ञी फ़ी० युवती । नायिका । उ0---नगन दमा अविन रूल, छोटे वक्स इत्यादि । नगीने मे बनूस का काम अच्छा तन उजियारी किमि होति । विना नेह नहि बढ़त है तिय-तन होता है । दीपनि जोति 1-० गप्तक, पृ० ३४६ ! यौ०--अवनूस का कु दा= अत्यंत काले रंग का मनुष्य । । शाबिल-वि० [म०] १ पकिन । गदा।३ तोडनेवाना। भंग वरनैअविनूसी--वि० [फा०] भावनूस सा काला । अत्यत श्याम् । गहरा वाला । ३ माफ पर नेपाली फिी०] । | काला ! २ अावनूस का । अविनूस का बना हुआ । वी--वि० [फा०] १ पानीसवयी । पानी या । ३ पानी में अाबपोशी-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] पिचाई । रहनेवाला । ३ रग में हल्का । फीका । उ०—-दुर्ग वने गुनाबी श्रावरव--सज्ञा पुं० [फा०] १ एक प्रकार का बारीक कपडा। बहुत मद भरे लखि अरि मुख वी करत - गोपान (ब्द०)। महीन मलमल । २ वहता हुआ पानी । ४ पानी के रग की। हल्का नीली या अभिमानी । ५ आबरू-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] इज्जत । प्रतिष्ठा। बेडप्पन । मान । जलतटनिवासी । क्रि० प्र०-- उतरना। --उतारना । --खोनी । --गंवाना । वीरे---सज्ञा पुं० १. खारी नमक जो मूर्य के ताप से पानी उठाकर ---जाना ।---देना ।--पर पानी फिरना । --बिगड़ना ।--मे बनता है । लवण । सी भर नमक । २ जल के किनारे रहनेबट्टा लगना । --रखना। •-रहना । --लेना । --होना। वाली एक चिडिया जिसकी चोच और पैर हुरे होते हैं और दे० 'इज्जत' । ऊपर के पर भूरे और नीचे के सफेद होते हैं। ? एक प्रकार अविरूह | मी अगेर।। -सज्ञा स्त्री० [फा० अबिरू+ हि० है (प्रत्य०) ] दे० प्रावी-सज्ञा स्त्री॰ वह भूमि जिसमें किसी प्रकार की ग्रावाशी होती 'आबरू' । ३०--हमरे सुवद बिवेक लगहि चूतर में सोटा । श्रावरूह ले भागु, पकरि के, फटिहैं झोटा ।-- पलटू०, भा० । हो । (खाकी के विरुद्ध) । ती०--बी रोटी = रोटी जिसका अाटा केवल पानी से सना ३, पृ० ८६ । अविना-संज्ञा पुं॰ [फा०] छाला । फफोला । फुटफा । हो । अावी शोरा ।। क्रि० प्र०--पड़ना ।। मुहा०- --आवी पारना= दूध, पानी और लाजवर्ट मे बने हुए अवलोच -सज्ञा पुं० [फा० अधि+हि० तोच] सुदरती का रस । रग से किमी कपडे के यान को तर केरके उसपर चमक लाना। 30-हम गुलाब मे अवलोच घोल्या है ।-दक्खिनी, अधूि-सज्ञा पुं॰ [म० अबुद] अरावली पर्वत पर का एक स्थान ।। बेरवां--संज्ञा पुं० [फा०] बहता हुया पानी या आँसु । उ---देखें पृ० ४०५ । विल्य-संज्ञा पुं० [सं०] अबलता। निर्वलता । चलहीनता (को०] । , तब सरवर मजलूम वेकस । वहा अँखियाँ सेती अवेरवाँ को असबसे ।—दक्खिनी॰, पृ० १६१ ।