पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५२०

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श्रीफतव ४५३ विदार तू इसे व्यर्थ छेडकर अपने सिर ग्राफत लाया । (२) भकट मे (शब्द०) । ३ शोभा । रौनक । छवि । उ०--वे ने इहाँ पहना । दु ख की बुनाना । अपने को भझट में डालना । जैसे नागर बढ़ी जिन अादर तो अावे । फूल्यौ अनफूल्यौ भयौ तुम तो रोज रोज अपने मिर पर एक ने इक श्राफत लाया गवई गाँव गुलाव -विहारी र०, दो० ४३८ । करते हो । क्रि० प्र०--उतरना। --जाना। --बिगडना । ---वदना । -- अफताव-सझा पु० [फा० श्राफताव] [वि॰ अाफनावी] १ सूर्य । -~-चढ़ाना।--देना। उ०---जाहि के प्रताप सो मलीन अाफनाव होत, ताप तजि आवसमा पु० १ पानी। जल । २. मदिरा [को०] । ३ किसी वस्तु दुजन करत बहु ख्याल को ।--मूपण ग्र ०, पृ० १०८।२ धूप । का अर्क [को०) । ४ प्रस्वेद 1 पसीना [को०)। ५. अश्रु । आँसू घाम को । कौ०] । ६ मवाद । पीप कौ०] । ७ फून का रस (को०] । अफतावा- सज्ञा पु० [फा० ग्राफतावह,] एक प्रकार का गड ग्रा। मुहा०—- अब शाव करना = पानी मांगना। उ०—कावुल गए जिसके पीछे दस्ती और मुंह पर सरपोश या ढक्कन लगा रहता मुगन्न हो अाए, बोले वोन पठानी। अब श्राव करि पूता मर गए बरा सिरहाने पाने ।- (शब्द०)। है । यह हाथ मुह घुलाने के काम आता है । आफताबी-सच्चा स्त्री॰ [फा० अाफुतावी] पान के प्रकार का या गोल यौ०-प्राव व हवा = जलवायु । सरदी गरमी के विचार में जरदोजी का बना पखा जिसपर सूर्य का चिह्न बना रहता देश की प्राकृतिक स्थिति ।। है। यह लकडी कै डडे के सिरे पर लगाया जाता है और श्रावकार-सच्चा पुं॰ [फा०] मद्य वनाने या बेचनेवाला। कलवार । कलाल । राजाओं के साथ या वरात और अन्य यात्राग्रो में भडे के अविकारी--सज्ञा स्त्री० [फा०] १ वह स्थान जहाँ राव चुसाई माय चन्नता है । २ एक प्रकार की अतिशवाजी जिम के जाती हो। होली। शराबखाना । कनवरिया । भट्टी । २,मादक छूटने से दिन की तरह प्रकाश हो जाता है । ३ किसी वस्तुयो से सवध रखने वाला सरकारी मुहकमा ।। दरवाजे या खिड़की के सामने का छोटा मागवान या मारी यौ०–आबकारी कानून । प्रावकारी मुहकमा = एक सरकारी जो धूप के बचाव के लिये लगाई जाय । | बिभाग विशेप जिसे अग्रेजी मे ‘एक्साइज' विभाग कहते हैं । अफतावी’--वि० १ गोल । २ सूर्यमवधी । अावखुर्द-मज्ञा पुं० [फा० आवखुर्द] १ भाग्य । किस्मत । २ भाग । यौ----अाफनावी गुलकद् = वह गुलकद जो धूप में तैयार की। | हिस्सा 1 ३ पेय जल का तालाव [को०)। जाय । प्रावखोरा -संज्ञा पुं० [फा० आवखोरह.] १ पानी पीने का वरतन । श्राफर-संज्ञा पुं० [स० श्राफर] प्रदान करना । प्रस्तुत करना। मामने गिलास । २. प्याला । कटोरा ।। रखना । उ०---पर जब कभी कोई श्राफर करता तो दो एक श्रावगीना-सज्ञा पुं० [फा० विगीनह] १ शीशे का गिलास । २. दम लगा लेता था --सन्यामी, पृ० ५१ । अाईन । ३ हीरा ।। शाफरी--अव्य० [फा० अाफी] शवाग | वाह वाह । उ0--कीन्हे प्रावगीर--सज्ञा पु० [फा०] जुलाहो की कूची ।। कूचा । ते ग्रफिताव खलक अफरी । कलमा विन पढ ने कहँ कुफर बिजोग - सच्चा पु० [फा०] गरम पानी के साथ उबाला हा काफी |-- घट०, पृ० २०६ ।। मुनक्का । लाग्न मुनक्का । दे० 'अंगूर' । श्राफरीनिश-सज्ञा स्त्री॰ [फा० अाफोनिज्ञ] उत्पत्ति 1 सृष्टि [को०)। अविड---सच्चा स्त्री॰ [देश०] आवरण । घेरा। श्राफियत--सच्चा छौ० [अ० आफियत] कुपाल । क्षेम ।। वताव–मल्ला झी० [फा०] तडक भडक । चमक दमक । यति । आफिस--- सज्ञा पुं० [अ० अॉफिस] दफ्तर । कार्यालय ।। काति । शो मा ।। अाफू- सज्ञा स्त्री० [हिं० अफीम, तुल० मरा० अफू] अफीम । उ०— | मीठी कोऊ वम्तु नहि मीठी जाकी चाह । अमली मिसरी छोहि अवदस्त-मसा पु० [फा०] १ मलत्याग के पीछे गुर्देद्रिय को वोना। सौंचना । पानी छूना । २ मलत्याग के अनतर मन धोने का के अफू खानु सराहि ---स० सप्तक, पृ० ३२२ । जल । हाथपानी । आफूक--सज्ञा पु० [सं०] दे॰ 'आफू' (को०] । क्रि० प्र०—लेना। श्रावंघ-सज्ञा पुं० [अ० प्रवन्ध] १ बघन । वाँधना । २ गाँठ । ग्रावदाना-- सज्ञा पुं० [फा०] १ अन्नपानी। दानापानी । अन्नजल । ३ प्रेमवधन । प्रेम । ४ हल के जुए का चधन ( नाधा )। ५ २ जीविका । जैसे,—अविदाना जहाँ जहाँ ले जायगा, वहीं ५ अलकार की सजावट । अल करण [को॰] । | वहाँ जायेंगे । श्रावघन--सहा पुं० [म० अरवन्धन] दे० 'अवध' [को०] । श्राव'- सच्चा झी० [फा०] १ चमक । तडक भडके। भाभा । छटा । मुहा०—प्रावदाना उठाना = जीविका न रहना । रहायश न होना। द्युति । काति । झलक । पानी । उ०—(क) साधू ऐसा चाहिए म योग टलना । जैसे,—जैव यहां से हमारा अवदानी उठ ज्यो मोती की अव |--कवीर (शब्द॰) । (ख) चहचही चहल जायगा, तब अपना रास्ता नेंगे । चहध चारू चदन की चद्रक चुनीन चौक चौकन चढी है भावदार-वि० [फा०] चमकीला । कातिमान् । द्युतिमान् । भड़कोना । अव ।---पद्माकर ग्र०, पृ० १२५। २ प्रतिष्ठा । महिमा। श्रावदार- सज्ञा पु० वह अदिमी जो तोप में सेवा और पानी का गुण । उत्कर्ष । उ०—गंवई गाहक कौन केवरा अरु गुराव पुचा देता है । उ ०--केतेक जानदार अावदार लाबेदार को । हिना पानी वेल कौन बूझिहै अब को ।---व्यास हो ।---सूदन (शब्द०)।