पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५१४

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अनाकानी ४४७ आनुवंशिक प्रयोग होता है, वहाँ केवल 'से' अती है।) कोई काम करने पर अनाय--सच्ची पुं० [सं०] जाल । फदा (को०)। मीना कोई काम करने के लिये उद्यत होना । कोई काम नाह--संज्ञा पुं० [सं०] १ एक उदर व्याधि । मलावरोध से पेट करने के लिये उतारू होना । जैसे,--जब वह पढ़ने पर प्राता का फूलना ! मलमूत्र रुकने से पेट फूलना। २ चाँधना [को॰] । है तो रात दिन कुछ नहीं समझना। जूतो या लात घूसों ३ लवाई (कपडे आदि की) (को०] । ५ विस्तार [को०)। प्रादि से आना = जूतो या लात घूमो से अाक्रमण करना । अनि-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'अन' । जूते या लात घूमे लगाना । जैसे,—अव तक तो मैं चुप रहा, तर म चुप रहा श्रानिल-- वि० [भ०] [वि० सी० अनिली] वायु से संबधित या अब जूनों से ग्राऊँगा । ( पौधे का } आना = ( पौधे का ) उत्पन्न [को०] । बढ़ना । जैसे,—खेत में गेहू' कमरे बराबर आए हैं (मूल्य ) अनिल अनिलि- संज्ञा पुं० [सं०1१ हनुमान। २ 'भीमें । ३ स्वाती को या मे आना :- दामों में मिलना । मूल्य पर मिलना । मोन नक्षत्र [को॰] । मिलना । जैसे,—ह किताव कितने को अाती है । (ख) यह सानिला–सज्ञा पुं० [अ०] जहाज के लुगर की कु डी । किताब कितने में आती है। (ग) यह किताब चार रुपए की नीजानी--वि० [हिं० ना+वाना ] अस्थिर । क्षणभगुर। आती है । (४) यह किताब चार रुपए में आती है। (इस) मुद्दाविरे तृतीया के म्यान पर ‘की' या 'म' का प्रयोग ३०----दुनिया भी अजब सराय फानी देखी । हर चीज यहाँ की अनी जानी देखी । जो अाके न जाए वह बुढ़ापा देखा। होता है।) विशेप---‘ग्राना' कि ग्रह के अपूर्ण भूत रूप के साथ अधिकरण में । जो जाके न अाए वह जवानी देखी 1-- अनीस (शब्द०) । नीत-वि० [सं०] लाया हुआ (को०} । भी ‘को' विभकिन नगती है, जैसे,—वह घर को प्रो रहा था। नील---वि० [सं०] हरे रंग का 1 हल्का नीला (को०] । इम क्रिया को आगे पीछे लगा कर मुक्त क्रियाएँ भी वनती हैं । नियमानुसार प्राय मयुक्त क्रिया में अर्थ के विचार से । अनीन-सज्ञा पु० काला घोडा [को० । आना पद प्रधान रहता है और गौण क्रिया के अर्थ की हानि हो अनुकूलिक--- वि० [सं०][वि॰ स्त्री० ग्रानुकूलिकी] अनुकूल [को॰] । जाती है, जैम, दे डालना, गिर पडना ग्रादि । पर 'ग्राना' अनुकूल्य--सज्ञा पुं० [सं०] १ अनुकूलता की स्थिति या भाव । २. और जाना' क्रियाएँ पीछे लगकर अपना अर्थ बनाए रखती है, कृपालुता । दयालुता (को०] । जैसे,—इस चीज को उन्हें देते अशो।' इस उदाहरण में अनुक्रमिक-वि० [सं०] क्रमानुसार [को०] । देकर फिर अाने का भाव बना हुआ है। यहाँ तक कि जहाँ प्रानुगतिक - वि० [सं०J[ वि० जी० पानुगतिकी अनुगत या अनुति दोनो क्रियाएँ गत्यर्थक होती हैं वहाँ 'अना' का व्यापार प्रधान दियाई देता है, जैसे,—-चन्ने अग्निौ । बर्दै साम्रो । कही कही अनुगये---सच्चा पु०सं०] १ अनुगन होने की क्रिया । २ अनुकरण । शानी का सयोग किसी अौर क्रिया का चिर फाल से निरतर ३ परिचय । घनिष्ठता । उ०—-पा लिया है सत्य-शिव-मदर-सा सपादन सूचित करने के लिये होता है, जैसे,—(क) इस कार्य पूर्ण लक्ष्य इष्ट इयं सेवको इसी का प्रानुगत्य हैं 1--पाकेन को हम महीनो से करते आ रहे हैं । (ख) हम अाज तक अप पृ० २०१।। के कहे अनुसार काम करते छाए हैं। गतिमूचक क्रिपाम्रो में | निग्रहिककरनीति---सज्ञा स्त्री० [सं०] राज्य की बहू नीनि जिसके 'अना' क्रिया धातुरूप में पहले लगती है और दूसरी क्रिया के अनुसार कुछ विशेष मालो पर रियायत की जाती हैं । अर्थ में विशेपता करती हैं, जैसे,--- खपन, मा गिरना, | प्रानुग्रहिक दारो देय शुल्क---संज्ञा पुं० [सं०] वह चुगी जो कुछ खास श्री घेरना, शा झपटना, अ टूटना, आ ठहरना था धमकना, खास पदार्थों पर कम ली जाय । (अर्थशास्त्र, पृ० ११३ में यह अर निक नना, श्री पडेना, आ पहुचना, प्रा फैनना, या रहना । | द्वारादेय शुल्क या ग्रानुग्रहिक कहा गया है ।) । पर 'श्रा जाना' क्रिया में जाना' क्रिया का अर्थ कुछ भी नही है। अनुग्रामिक--वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० भानुयामिकी] ग्रामसबंधी । इससे मदेह होता है कि कदाचित् यह 'अ' उपसर्ग न हो, जैसे,—प्रायान, अमन, प्रानयन, पतन । ग्रामीण [को०) । आनाकानी-संज्ञा स्त्री० [सं० अनाकर्णन] १ सुनी अनसुनी करने का अनुपदिक–वि० [स०] [स्त्री० भानुपादि की] १ पीछा करनेवाला । कार्य । ने ध्यान देने का कार्य । उ०—आनाकानी अरिसी २ अनुकरण करनेवाला [को०) । निहारिनो करोगे को लौं ?-इतिहास, पृ० ३४१ । २. टाल- प्रानुपातिक-वि० [सं०] अनुपात सत्रधी (को० ।। मर्न । हीली हवाला । जैसे,—माल तो ले अाए, अब कृपया देने अनुपूवी- वि० [सं० अनुपूर्वीय क्रमानुसार । एक के बाद दूसर । में आनाकानी क्यों करते हो ? अनुमानिक-वि० [स०[ अनुमान सवधी । खपाली । क्रि० प्र०—करना ।---देना । अनुयात्रिक-सज्ञा पुं० [सं०] सेवक । नौकर । अनुचर (को०] । ३ कानाफूमी । धीमी बातचीत । इशारों की बात । उ०-- अनुरक्ति--संज्ञा स्त्री० [सं०] १० 'अनुरक्ति (को०] । निकिनी कठ हँसी मुहाचाही होने लगी देखि दसा कहत विदेह भानुलोमिक-वि० [स०] १ नियमित । क्रमित । २ अनेक विलय के ।—तुलसी (शब्द०) । उपयुक्त को०] । श्रानाथ्य---सा पुं० [मं०] असहाय या अनाथ होने की अवस्था या आनुवंशिक-वि० [सं०] वर रंपरा में पाया हप्ता । वाभाव (को०। नुक्रमिक [को० ।