पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५११

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प्रानंदी आध्मात आध्मात-सज्ञा पुं० १ उदर में होनेवाली वायु रोग । २ युद्ध (को०] । अनिंदघन-मज्ञा पुं० १ श्रीकृष्ण भगवान् । ३ दिदी के एक कवि आध्मान-सज्ञा पु० [सं०] एक वातव्याधि। पेट का फूलना । अफरा का नाम । आध्मानी-सज्ञा स्त्री॰ [म०] १ नलिका नामक गघद्रव्य । २ श्रानदज-वि० [सं० आनन्दज़ 1 " " [२] उपत्र, जैम, फु'कनी । वह धातु या बाँस की नली जिममे हवा की । अश्रु [को०)। जाय को॰] । प्रानदना--क्रि० प्र० [ ri० प्रानन्द में नाम० ] प्रगत होना। आध्यात्मिक--वि० [सं०] [स्त्री० आध्यात्मिकी] १ अात्म सबधी । ग्रानंदयुग्त होन। ३०-या चक्र प्रति देzि है, पान | २ मन संवधी । ३ अध्यात्म से सबध रखनेवाला (को०] । पिय जानि । मुर पवन मिनि निन् मित्रानो, न न कि उन यौ०-अध्यात्मिक ताप = वह दु खै जो मन अात्मा और देश अनि ।-मूर०, १०१३२६८ | | इत्यादि को पीडा दे, जैसे,—-शोक, मोह, ज्वर ग्रादि । अान्दपट-मज्ञा पुं० [१० अानन्द्रपट] वैवाहि के 71 वोट। चामा प्राध्यापक-संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ अध्यापक' [को०] । | (को०] । आध्यायिक--वि० [सं०] [स्त्री० आध्यायिकी ] वेदो के अध्ययन में आनंदपुण–वि० [सं० प्रानन्दपूर्ण अधिक प्रगन १० ।। | संलग्न रहनेवाला (को॰] । शानदप्रभव-सज्ञा पुं॰ [4० प्रानन्दप्रभ3] वयं । शृश् [F] । आध्यासिक-वि० [सं०] वेदातदर्शन में भ्रमात्मक (ज्ञान) (को॰] । शानदबधाई---मज्ञा दी० [३० आनन्द +हि० चवाई 1 १ मगर अनतर्य-संज्ञा पुं० [स० पानन्तर्यं] १ अचानक होनेवानी सफ नता । उत्सव । २ मगन अवमर। मग१ कर बधाई । | २ तात्कालिक अनुमान । शानदवन-सच्चा पु० [म० अानन्दवन] काजी 1 7tणगी। प्रविमुन अनित्य-सया पु० [सं० श्रानन्त्य ] १ अत या समाप्ति का अभाव । क्षेत्र | बनारम | सप्तपुरियो में में नथी । । अनतता । २ स्वर्ग । ३ अविनश्वरता । शानदभैरव-रक्षा पुं० [सं० प्रानन्दभैरव ] १, गिरे या ए नाम नद-सज्ञा पुं० [सं० आनन्द] [वि॰ नदित, नदी] १ हर्ष । (को०) । २ वैद्य में एर रम नाम जो प्राय उरादि की प्रसन्नता । खुशी । सुख । मोद । श्रानाद ।। चिकित्। म घाम आना क्रि० प्र०—-आना ।—करना ।---देना ।- पानी ।-- भोगना । विशेप--इसके बनाने की यह ति है-शुद्ध पारा और मृद्ध मनाना - मिलना ।—रहना 1- लेना । जैसे,—( क ) कल गघक की फजली, शुद्ध मिगी मुहर, गिरफ, ठ, काली हुमको सैर मे बहा आनद अायो । ( ख ) यह हवा में बैठे मिर्च, पीएन, भूना गुहागा, न मया नृर्ण कर मैंग के खूब आनद ले रहे हो । ( ग ) मूर्यों की सगति में कुछ भी में तीन दिन रन पर प्राधे अध उनी । ।निय प्रना । अनिद नहीं मिलता। एक गोनी नित्य दम दिन पर्यंत विनाने में अनि, भय, यौ०.- आनदमगल। मग्रहणी, सनिपान ग्रौर मृगी के न रोग नष्ट हो जाते हैं। मटा०-ग्रानंद के तार या ढोल बजाना = अनद के गीत गाना । nी । । निर्दभैरवी-मया मी० [सं० आनन्दभैरवी] नैव रोग की दागिनी . उत्सव मनाना । जिममे मेवे कोमल स्वर नगर्ने हैं। इनके गाने का समय प्रात २ प्रसन्नता या खुशी की चरम अवस्था जो ह्म की तीन प्रधान | कोल १ दड मे ५ दर तय है । विभूतियो में से एक है । उ०-सत्, चित और शानद, ब्रह्म के अनिदमंगल-- सज्ञा पुं० [सं० प्रानन्द + मङ्गल] मुय धन । इन तीन स्वरूपों में से काव्य और भक्तिमार्ग 'नद' स्वरूप ग्रनिदमत्ता--सज्ञा स्त्री० [सं० प्रतिन्टमन गरी शशिका को लेकर चले ।--रस०, पृ० ५५ । ३ मद्य । शरीव । ४ | भेद । आनद से उन्मत्त प्रौढा । दे० 'ग्रानदम मोहिना' । शिव (को०)। ५ विप्ण (को०)। ६ बुद्ध के एक प्रधान शिप्य निदमय'--वि० [सं० आनन्दमय] अनिदपूर्ण । प्रसन्नता से युपर्ने (को०) । ७ दडक छद का एक भेद (को०)। ८. ४८ वें [को०)। सवमर का नाम (को॰) । यौ०–मानंदमयकोप = ग्राम के पनरोपों में से एक (वेदांत) । पानद-वि० सानद । अनदमयं । प्रसन्न । जैसे,—अनद रहो । अानंदमय-सपा पुं० ग्रह्म [को०] । विशेष—यह विशेषणवत् प्रयोग ऐसे ही दो एक नियत वाक्यो नदमया-सा री० [k० आनन्दमय दुग का रि के रूप [को॰] । में होता है । पर ऐसे स्थानों में भी यदि शानद को विशेषण आनंदलहरी–सा सी० [म० आनन्दलहरी] शकराचार्य विरचित न मानना चाहे, तो उसके प्रागै 'से' लुप्त मान सकते हैं। एक ग्न थ जिसमें पार्वती जी की स्तुति है (फो०] । आनंदक-वि० [सं० आनन्दक] मानद प्रदान करनेवाला [को०] । विशेष—इसे सौदर्यलहरी भी कहते हैं। शानदकर--सज्ञा पु०[स० प्रानन्दकर] चद्रमा [को॰] । आनंदवाद-सा पुं० [सं० आनन्दवाद] आनद को ही मानव जीवन प्रानंदकला-- संज्ञा स्त्री० [सं० अानन्दकला] ब्रह्म की शानदमयी सत्ता ! का मूल लक्ष्य माननेवाली विचारघारी या सिद्धान । ईश्वर का आनंदमय स्वरूप । उ०-भगवान् की अनदकलो के आनदसमोहिता-सज्ञा स्त्री० [सं० प्रानन्दसम्मोहिता] वह नायिका विकास की ओर बढती हुई गति है ।-रस०, पृ० ६० । जो रति के शानद मे अत्यत निमग्न होने के कारण मुग्ध हो अनिदकानन----सज्ञा पुं० [सं० श्रानन्दकानन] दे॰ 'प्रानंदवन' । रही हो । यह प्रोढ़ा नायिका का एक भेद है। पानघन--वि० [सं० मानन्द+घन] अनिद से भरा हुमा । मानदा--सा स्त्री॰ [स० मानन्दा भौग [को०] ।