पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५०९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

४४६ प्राधार प्रदेस आदेस--संज्ञा पुं० [सं०आदेश] दे० 'आदेश' । अद्यत--क्रि० वि० [सं० श्राद्यन्त] आदि से अत तक। अद्योपात । शुरू से खीर तक । आद्य'–वि० [सं०] १ पहना। प्रारभ का । ३ प्रधान । प्रथम । अद्वितीय (को०) । आद्यवि० [सं०५/अद् = (खाना)> आद्य] खाने योग्य । जिसके खाने से शारीरिक या अात्मिक वल बढे ।। आद्यकवि-सज्ञा पुं० [सं०] १ ब्रह्मा । २ वाल्मीकि [को०] । आद्यबीज---सज्ञा पुं॰ [सं०]जगत् या सृष्टि का मूल कारण । साक्ष्य के अनुसार प्रधान या प्रकृति [को०] । आद्यमाषेक-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] एक तोल जो पाँच गुजा या रत्ती के बराबर होता था को०] । आद्यश्राद्ध---सज्ञा पुं० [स] मृतक के लिये ग्यारहवें दिन जो सोनह | श्राद्ध किए जाते हैं उनमें से पहना । अद्या--सज्ञा पुं॰ [स०] १ दुर्गा । प्रधान शक्ति । २ दश महाविद्याम्रो में से प्रथम देवी। आद्युदात्त----वि[स०][सक्षा अद्युदात्तत्व] जिसका पहना वण' उदात्त हो (को॰] । अद्युन-- वि० [स] १ अध्ययन करनेवाला। पेटू । २ बुभुति । भूखा । ३ लोभी । लालची । ४ अादिरहित [को०] । प्रद्योत - संज्ञा पुं० [सं०] प्रकाश । ज्योति । चमक [को०)। आद्योपात--क्रि० वि० [स० अद्योपान्त शुरू से खीर तक [को०] । द्रा----सज्ञा स्त्री० [सं० श्राद्ग[ १ एक नक्षत्र । २. जब सूर्य इस नक्षत्र का हो । इस नक्षत्र में लोग धान बोना अच्छा मानते हैं। उ0-- (क) चित्रा गेहू द्रा धान । न उनके गेरुवी ने उनके घाम । (ख) आद्रा घाम पुनर्वसु पइया । गा किसान जब वोवा चिरइया । (शब्द०)। आद्रिसार-वि० [सं०] लौहनिमित 1 लोहे से बना हुआ (को०] । आवे---वि० [सं० अर्द्ध प्रा० अर्घ हि० अाधा] किसी वस्तु के दो बराबर भागो में से एक । प्राधा। निस्फ । उ0--जै जै कार भयो भूव मापत नीनि पैड भइ सारी। अधिा पैड बसुधा दै राजा नातरु चलि सत हारी।---सूर०, ८१४ । विशेष----यह वास्तव में आधा का अल्पार्थक रूप है और यौगिक शब्दो एवं प्राय तौल और नाप के सूचक शब्दों के साथ व्यवहृत होता है । जैसे,----अघि सेर अघि पाव, अध छटक, य०--अाघा साझा। अधिा सौसी । मुहा०-धो आध= दो वरवर 'माग में । जै---न केला को अघो घ वट नो । [यह क्रि० वि० की तरह प्राता है। जैसे, बीचो बीच] प्रापा तीतर प्रवा वटेर = कुछ एक नई का और कुछ दूसरी तरह । । वेजोड । वैमन। प्रवद्र। क्रमविहीन । प्राधा होन(= दुनना होना । जैसे,—वह मोच के मारे अाधा हो गया। अघि प्राध= दो चराबर हिम्म में बँटा हुा । उ०—लागे जब मग युग में योग धग्यो रम अवे प्राध पाव नले नपुर बजाइ के ।--प्रिया० (शब्द०)। प्राधे फान सुनना = पो ही या ऊपर मे गुन लेना । ०० फैले बरसाने में न रवि कहानी यह् वानी राधे प्राधे पान मुनि पावे ना !-रत्नार, भा० १, पृ० १४७ ।। प्राधी चाल = जरा गी भी अपमानमूचक बात । जैन,-- हमने किसी को ग्राधी बात भी नहीं सुनी । माघे पेट साना भरपेट न जाना । पूरा भोजन न रिना । श्राये पेट रहना= नृप्त होर न पाना । प्रावी यात फहना या मुह से निकालना = जरा मी अपमानमूना वार हुन । जगे,-मेरे रहते तुम्हें कोई अाधी बात नहीं रह सकना । घधी बाते में पूछना = कृ ध्यान न देना । केन्द्र में करना । जैसे,--प्रव वै जहाँ जाते हैं, कोई प्राथो पात भी नहीं पूछा। अाधाज्ञारा-मज्ञा पुं० [म० अघाट] अपामार्ग । प्रोगा। निबटा । | चिचडी। श्राघातासभा ० ( म० प्राचा! ] गिर वो राउनेवार। उधर रखनेवाला। प्राधान--सग्ना पु० [सं०] १. म्यापन । रवाना । यी--अग्न्याधान । गर्भाधान। २ गर्म । ३ गिरवी या वध ग्राना । (को०) ४ अग्न्याधान (को०)। ५ प्रयत्न । चेष्टा (को०)। ६ वह स्थान जहाँ कोई वस्तु रखी जाय (को०)। ७ निश्चयात्मयता । ८ द्रवित करना (को०)। ६ सामीप्य । सनिधि (को०)। १० मैनुन (को०)। घानवता--वि० प्रा० [सं०] गर्भवती । आधार-सज्ञा पुं० [सं०] १ आश्रिय । महा । अवलय । जैसे,-- (क) यह छत चार छ भो के अधिार पर है। (ख) वह चार दिन फलो के ही प्राधार पर रह गया । २ व्याकरण में अधिकरण कारक । ३ योना । भालचाल । ४ पास (नाटक) ! ५ नीव । बुनियाद । मन । ६ योगशास्त्र में एक चक्र का नाम । विशेष—इसे मूलाधार भी कहते हैं। इसमें चार दी हैं। रग लाल हैं । स्थान इसका गुदा है और गणेश इसके देवता हैं । ७ बधी । वाँध (को०)। ६ नहर ! प्रणाली (को०) । ६ सवध । लगाव (को०) १० किरण (को०)। ११ बरतने । पात्र (को०)। १२ आश्रिय देनेवा।। पालन करनेवाला । जैसे,—इस दशा में ही वे हमारे अाधार हो रहे हैं। यौ०-धाराधेय = अाधार और अधेिय का सबध, जैसे,- पात्र और उसमे रखे हुए घी या टेबुल और उसपर रखी हुई किताब का स बघ । प्राणधार जिमकै अाधार पर प्राण हो । पर मप्रिय ! अधि गज।। यौ०-- -एक घ= कुछ थोड़े से । चद। जैसे,---एक अघि | आदमियों के विरोध करने से क्या होता है । (शब्द) धमन- सज्ञा पुं० [सं०] प्रतिज्ञा (को०] । आघमराय–सझा पुं० [सं०] ऋणग्रस्त होना [को०] । आधर्मिक- वि० [सं०] धर्महीन । अधर्मी [को०] । धवन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कंपित करना। हिलाना हुलाना (को॰] । आधा-वि० [सं० अद्ध, वा अद्धो, प्रा० अद्ध] [ लौ० आधी ] किसी वस्तु के दो बराबर हिस्सो में से एक ।