पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५०७

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४४० अादिप्लुत मुहा०—ादि से प्रत तक= ग्राद्योपात । शुरू से खीर तक। आदित्यकेतु-सज्ञा पुं० [सं० आदित्य + केतु] १ एक राजा जिसके सपूर्ण । समग्र । सव ।। वशजों ने नौ पीढ़ी तक ३७५ बर्ष दिल्ली में राज्य किया था। आदि-- अव्य० वगैरह । श्रादिक । उ०---सिंहसावक ज्यो तर्ज गृह, २ धृतराष्ट्र का एक पुग्न [को०] । ३ सूर्य का सारथि [को०] । इद्र अादि हरात सूर०, १।१०६ ।। | आदित्यगति -सच्चा जौ० [सं०] १ सूर्य का मार्ग (को०] । आदिक-ग्रव्य० [सं०] अादि । वगैरह । उ०—कौसिल्या आदिक आदित्यगर्भ- सज्ञा पुं० [सं०] एक बोधिसत्व [को०] । महतारी, आरति करहि वनाइ ।--सूर० ६।२६ । आदित्यज्योति-वि०स०] जिसमें सूर्य जैसा तेज या ज्योति हो(को०] । शादिकर-वि० [सं०] अादि करनेवाला । स्रष्टा [को॰] । आदित्यदर्शन--संज्ञा पुं० [स०] चार मास के बालक को सूर्यदर्शन आदिकरणी-सज्ञा स्त्री० [स०] एक पौधा [को०] । कराने का एक संस्कार (को०] । आदिकर्ता-वि० [सं०] यादिकर । स्रष्टा [को०] । आदित्यपत्र--सज्ञा पुं० [१०] १ एक पौधा । २ क का पत्र या आदिकर्म--संज्ञा पुं॰ [सं०] कर्म का ग्रादि या आरभ [को०] । पत्ता [को०] । अादिकवि--संज्ञा पुं० [सं०] वाल्मीकि ऋषि । उ०—-जान आदि आदित्यपाक--वि० [सं०] सूर्यताप मे पकाया हुआ [को०] । कवि नाम प्रभाऊ । भएउ सुद्ध कहि उलटा नाऊँ ।-- श्रादित्यपुष्पिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] लाल फून का मदार। मानस, ११६ । २ शुक्राचार्य । आदित्यभक्ता-सचा जी० [सं०] हुरहुर । आदिकाड-सज्ञा पुं० [सं० श्रादिकाण्ड] वाल्मीकि रामायण का पहला आदित्यमडल--सझा पुं० [सं० श्रादित्यमण्डल] सूर्य के चतुदिक् झाड (को०] । पडनेवाला वलय या घेरा (को०] । अादिकारण-सज्ञा पुं० [स०] पहला कारण जिससे सृष्टि के सव आदित्यलोक--संज्ञा पुं० [स०] सूर्य लोक [को०] । व्यापार उत्पन्न हुए । मूलकारण । आदित्यवार- सच्चा पुं० [म०] एतवार। रविवार । विशेप-साख्यवाले प्रकृति को प्रादिकारण मानते हैं। नैयायिक श्रादित्यव्रत–सच्चा पुं० [सं०] [वि० श्रादित्यव्रतिक] सूर्य का व्रत [को०] | पुरुप या ईश्वर को अादि कारण कहते हैं। आदित्यशयन--सज्ञा पुं० [सं०] सूर्य की निद्रा या शयन (को०] । अादिकाल--सज्ञा पुं० [सं०] प्रारभिक काल या समय [को०] । आदित्यसंवत्सर-संज्ञा पु० [सं०] सौर वर्ष [को०] । अादिकालीन–वि० [स] प्रारंभिक या अादिकाल से संघ श्रादित्यसूनु--सज्ञा पुं० [स०] सूर्य का पुत्र–१ . शनैश्चर । २ यम। रखनेवाला [को॰] । ३ कर्ण । ४ सुग्रीव । ५ मनु [को॰] । आदिकाव्य-सज्ञा पुं० [सं०] वाल्मीकि रामायण । आदित्यानुवर्ती--वि० [सं० आदित्यानुवतिन्] सूर्य का अनुवर्तन या । विशेष—यह महाकाव्य सबसे पुराना या पहला माना जाता है। अनुगमन करनेवाला (को०] । आदिकृत्--वि० [सं०] स्रष्टा [को॰] । श्रादित्व--संज्ञा पुं० [स०] पूर्वता । प्राथमिकता [को०] । अादिकेशव--सझा पु० [म०] १ काशी स्थित एक देवविग्रह । २. आदित्सा–संज्ञा स्त्री॰ [स] लेने की इच्छा (को०] । विष्णु [को०] । आदित्सु–वि० [सं०] ग्रहण करने या लेने का इच्छु [को०] । अादिगदाधर-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु कौ०] । दिदीपक-संज्ञा स्त्री० [म०] छद की विशेप व्यवस्था ( जिसमे श्रादिजिन-सज्ञा पुं० [सं०] ऋषभदेव (जैन) (को०] । | क्रियापद वाक्य के अदि में आता है ) (को०] । अादित -क्रि० वि० [सं०] प्रारभ से । श्रादि से [को॰] । आदिदेव--संज्ञा पुं० [सं०] १ ब्रह्मा । २ विष्ण। ३ शिव । ४ आदित –ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'श्रादित्य' । उ०--हरि दरमन | गणेश । ५ सूर्य [को०] ।। सत्राजित अायौ । लोगनि जान्यौ श्रादित प्रावत हरि सौं जाइ आदिदैत्य--सज्ञा पुं० [सं०] हिरण्यकशिपु [को०) । सुनायौ ।--सुर०, १०५४८०८। आदिनव-सज्ञा पुं० [सं०] १. अभाग्य । २ जुए की हार (को०] । आदिताल- सज्ञा पुं० [सं०] सगीत मे ताल का प्रकार विशेष [को०]। श्रादिनाथ--संज्ञा पुं० [सं०] १ अादिबुद्ध । २ एक जैन तीर्थंकर आदितेय-सझा पुं० [सं०] १ अदिति का पुत्र । २. देव । ३. [को०)। सूर्य (०] ।। आदिपर्व--संक्षा पुं० [ स० प्रदिपर्वन् ] महाभारत के पहले पर्व का श्रादित्य-संज्ञा पुं० [म ०] १ अदिति के पुत्र । २ देवता । ३ सूर्य । नाम (को॰] । ४ इद्र । ५. वामन । ६ वसु । ७ विश्वेदेवा । ८ बारह आदिपर्वत--संज्ञा पुं० [सं०] मुख्य पर्वत (को०] । मात्राशो के छदों की सफा, जैसे--तोमर लीला । ९ मदार आदिपुराण--सा पु० [सं०] १. ब्रह्मपुराण । २ एक जैन धर्मग्रंथ मदार का पौधा । [को०] ।। यौ०-- श्रादित्यपुराण = एक उपपुराण । श्रादित्यपणिका, आदिपुरुष, श्रादिपूरुष---ज्ञा पुं० [सं०] १ परमेश्वर । विष्णु । २ प्रादित्यपणनी, श्रादित्यपण, आदित्यवल्लभा = एक जलीय हिरण्यकशिपु [को०] 1 नता । श्रादित्यसूक्त, श्रादित्यस्तोत्र, आदित्यहृदय = सूर्य स्वधी अादिप्ले –स अवधी श्रादिप्लुत-वि० [सं०] (शब्द०) जिसका अादिस्वर प्लुत हो सूक्त या स्तोत्र । (व्या०) कौ] ।