पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५०६

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दिम आदि अदम---सज्ञा पुं० [अ० श्रादम, तुल० स० आदिम १ इबानी और आदर्य----वि० [सं०] अदिर के योग्य । अादरणीय । अरबी लेखकों के अनुसार मनुष्य का श्रादि प्रजापति । उ०- आदर्श--संज्ञा पुं० [सं०] १ दर्पण । शीशा । प्राईना । २ वह जिससे अदम श्रादि सुद्धि नहि पावा। मामा हौबा कहेते अावा --- अथ का अभिप्राय झलक जाय । टीका । व्याख्या । ३ वह कवीर (शब्द॰) । २. अदिम की मृतान । मनुष्य । जैसे, जिसके रूप और गुण आदि का अनुकरण किया जाय । चलते चलते वह एक ऐसे जगल में पहुंचा जहाँ न कोई आदम। नमूना । जैसे,—उसका चरित्र हम लोगो के लिये अादर्श है । था न अादमजाद । यौ०.-आदर्शमडल । आदर्शमदिर। आदर्शरूप । यौ०–आदमकद । श्रादमखोर । अादमचश्म। आदमजाव । आदर्शक---सज्ञा पुं० [सं०] दर्पण । शीशा [को० । आदमकद-वि० [अ० आदम+कद} अादमी के कद के वरावर । अादर्शन--संज्ञा पुं० [म०] १ प्रदशत करना । दिखलाना। ३ ३०-कैमरे में बड़े बड़े अदमकद शाइने रखे जाते हैं --- शशि। शीशा । दर्पण (को०] । गबन, पृ० १०६ ।। प्रदर्शबिव--संज्ञा पुं० [ स० अादर्श विम्ब ] गोला शीशा [को॰] । आदमखोर-वि० [अ०दम +फा० खोर] आदमी को खानेवाला। आदर्शमडल---संज्ञा पुं० [ स० श्रादर्श मडल ] १. एक तरह का मानवभक्षी (शब्द॰) । | सप । २ गोल आईना । ३ दर्पण का तल को०] । आदमचम--- सझा पु० [अ० श्रादम +फा० चश्म== चक्षु ] वह घोडा दमदरसा पु° [ स आदी मादर ] शीश महुल ।। जिसकी अखि की म्याही मनुष्य की अाँख की स्याही के समान भावाद-सज्ञा पुं॰ [सं० स्वादश +वाद][अ० पनि प्रदर्शवाद--सज्ञा पुं० [सं० अादर्श +वाद] [ अ० आइडियलिज्म ] हो । ऐसा घोडा वडा नटखट होता है। वस्तु के ज्यो के त्यो वर्णन को प्रमुखता या महत्व न देकर श्रादमजाद - मज्ञा पुं० [अ० प्रादम+फा० जाद= पैदा] १. आदम न करके उनके प्रदर्शरूप का वर्णन करना । पश्चिम के दर्शन, शिक्षा दर्शन और साहित्यिक वादो अदि में प्रचलित विशेष | की संज्ञान । २ मनु की संतान । मनुष्य । विचारधारा । भादमियत--सज्ञा पुं० [अ०]१ मनुष्यत्व । इसनियत । २ सभ्यता । प्रदर्शवादी --वि० [सं० प्रदर्शवादिन] [अ० आइडियलिस्ट] अादर्शवाद क्रि० प्र०-पकड़ना ।—सीखना। को मानने वाला या उसके अनुसार रचना करनेवाला । अादमी--- संज्ञा पु० [अ०] अादम की सतान । मनुष्य । मानव जाति । आदर्शात्मक-वि०स०] काल्पनिक अादर्श के रूप मे विषयो के चित्रण मुहा०---आदमी बनना = मभ्यता मीखना। अच्छा व्यवहार मा निरूपण से युक्त । आदर्शवाद से संबध रखनेवाला। सीखना । शिष्टता मीखना । आदमी बनाना = शिष्ट और सभ्य आदर्शपरक । करना ।। श्रादहन-सज्ञा पुं० [सं०]१ ईष्य । जलन। २ श्मशान । चिताभूमि । २ नौकर । सेवक । जैसे,—जरा अपने प्रादमी से मेरी यह आदा-सुज्ञा पुं० [सं० द्रिक ] अदरक । चिटठी डाकम्वाने भिजवा दो। आदान---संज्ञा पुं० [सं०] १ लेना। ग्रहण करन । २ अर्जन । ३. अदमीयत- सज्ञा स्त्री० [अ०] १ मनुष्यत्व । इमानियत । उ०--- रोग का लक्षण । ४ वाँधना । सुनियोजित करना । ५ घोडे गर फरिश्तावश हुमा कोई तो क्या। आदमीयत चाहिए इसान को फँसाना या वधनग्रस्त करना । जकडवेदी । ६ क्रिया या मे |--कविता को०, भा० ४, पृ० ५५१ । २. सम्यता । कार्य । ७. पराभूत करना कि०) । अादर--सज्ञा पुं० [सं०] [वि० श्रादरणीय श्रादृत, दयं] समान है आदानप्रदान--संज्ञा पुं० [सं०] लेना देना ।। सत्कार । प्रतिष्ठा 1 इज्जत । कदर । जैसे,—(क) वै वडे आदानसमिति-सज्ञा स्त्री० [स०] जैनों के अनुसार प्रचारनियंत्रण के अादर के साथ हमें अपने घर ले गए । (ख) तुलसीदास के लिये स्थापित पचसमिति में से एक जिससे यह ध्यान रहता है। रामचरितमानस का समाज में वही अादर है । कि किसी जीव को कष्ट न हो [को०)। आदरणीय--वि० [सं०] ग्रादयोग्य । अादर करने के लायक । अदापन-सज्ञा पुं० [सं०] कोई वस्तु ग्रहण करने के लिये किसी को समाननीय । बुलाना या अभिप्रेरित करना [को०] । अादरना —कि०स० [सं० आदर से नाम०] अादर करना । मानना। दाव--सज्ञा पुं० [अ०] १. नियम । कायदा । २ लिहाज । अनि । उ०--जो प्रवध बुध नहि आदरही। सो श्रम वादि बाल कवि ३ नमस्कार | प्रणाम । सलाम । जोहार । | फरही ।—मानस, १1१४ ।। मुहा०--अदाव अर्ज करना = प्रणाम करना । श्रादाब बजा

  • लेना = नियमानुसार प्रणाम करना । दिर भाव-सज्ञा पुं० [सं० श्रदर+ भा] सत्कार । स माने । फदर । प्रतिष्ठा । जैसे,-----जहां अपनी अादर भाव नहीं, वहीं क्यों दि'-वि० [सं०] प्रथम । पहला। शुरू की।

वाल्मीकि प्रादिकवि माने जाते हैं। उ०---गाइ गाउँ के जायें ? उ०-ऊधौं, चलौ विदुर के जइये । दुरजोधन के कौन वत्सला मेरे अादि सहाई –सूर०, १२३८।। काज जहँ अादर भाव न पइये ---सूर०, १५२३९ । । आदरस -ससा पु० [ सु० श्रादर्श ] दे० 'आदर्श' । उ०-५-दरसों आदि संज्ञा पुं॰ [स]१ अरभ । वनियाट । मल न सारसरम 'मरे दृग अादरस मैगाय ।--स० सप्तक, पृ० २५८ ! (क) इस झगडे का अादि यही है । (ख) हमने इस पुस्तक को अादि से अत तक पढ़ हानी । २ परमात्मा । परमेश्वर । या-अादरसमदिर= शीशमहल । उ०--ग्राछे अवलोकि रही आदरसे मदिर में इंदीवर मु दर गुविद को मुखारविंद --- उ-मादि किएउ आदेश सुन्नहि ते अस्थूल भए ।---जायमी पद्माकर ग्र २, पृ० १०१ । । । । प्र॰, पृ॰ ३०८ ।