पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५०५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

आत्मान ४३६ श्रीदेत आसन करनेवाल, जैसे,—इजने । (२) हि शुद्ध, बुद्ध, मुक्न स्वभाब ब्रह्म का अशबिशेष प्रतिमा है । बुद्धदेव आत्मोद्धार--संज्ञा पुं० [सं०] अपनी आत्मा को संसार के दु ख से के मत से एक अनिर्वचनीय पदार्थ, जिसकी आदि और अत | छुहानी या ब्रह्म मे मिलाना । मोक्ष । अवस्था को ज्ञान नहीं है, आत्मा है। उत्तरीय बौद्धो के मत आत्मोद्भव-- संज्ञा पुं० [सं०] १ पुत्र । २ कामदेव ३ दु ख । से यह एक शून्य पदार्थ है । जैनियों के मत से कर्मों का कर्ता पीडा [को०] । फलो का भोवना और अपने कर्म से मोक्ष और वधन को प्राप्त आत्मोद्भवा-सज्ञा स्त्री॰ [स०]१ कन्या । ३ बुद्धि । ३ माशपर्णी[को०]] होनेवाला एक अरूपी पदार्थ है। आत्मोन्नति----सज्ञा पु० [सं०] १ आत्मा की उन्नति । २ अपनी तरक्की । स्वविकास । । मुहा०—प्रात्मा ठढी होना=(१) तुष्टि होना । तृप्ति होना। आत्मोपजीवी---संज्ञा पुं० [सं० अात्मोपजीविन्] १ अपने श्रम से सतोप होना । प्रसन्नता होना । जैसे,—उसको भी दंड मिले तब जीविकोपार्जन करनेवाला । ३ रोजही या दैनिक मजदूरी पर हमारी आत्मा ठढी हो । (२) पेट भरना । भूख मिटना। काम करनेवाला श्रमिक । ३ अभिनेता [को०] । जैसे,-बाबा कुछ खाने को मिले तो अात्मा ठंढी हो । आत्मा लात्मोपम--सज्ञा पु० [सं०] पुत्र को०] ।। मसोसना=(१) भूख सहना । भूख देवाना । जैसे,—इतने आत्यतिक--वि० [स ० आत्यन्तिक] [वि० जी० आत्यन्तिकी १ जो दिनो तक ग्रात्मा मनोसकर रहो। (२) किसी प्रबल इच्छा | वहुतायत से हो । २ जिसका ओर छोर न हो। को दवाना । किसी आवेग को भीतर ही भीतर सहना । यौ०--अत्यतिकदु खनिवृत्ति= मोक्ष । आत्यंतिकप्रलय = पूर्ण ७ देह । शरीर । ८ सूर्य । ६ अग्नि । १० वायु ! ११ प्रलय । स्वभाव । घमं । १२ पुत्र को०) । अत्ययिक-वि[स०][वि०सी० प्रात्यविक्री]१. विनाशक । २ दुमग्यि अत्मिाधीन'–वि० [सं०] अपने वश में । | पूर्ण । ३ . अविश्यकीय । ५. देर किया हुआ । विलवित [को०)। आत्माधीन-सज्ञा पुं० १ पुत्र । २ विदूषक । ३ साला (को०)। आत्रेय'--वि० [स० अत्रि] १. अत्रि के गोत्रवाला । आत्मानद - सज्ञा पुं० [सं० अात्मानन्द ] आत्मा का ज्ञान । प्रारमा अत्रिय-संज्ञा पुं० १ अत्रि के पुत्र-- दत्त, दुर्वासा, चंद्रमा । २ श्रात्रेयी में लीन होने का सुख । नदी के तट का प्रदेश जो दीनाजपुर जिले के अंतर्गत है। ३. अात्मानुभव--सज्ञा पु० [सं०]१ अपना अनुभव या तजुरबा । स्वानु । शिव की एक उपाधि [को॰] । भूति । २ अात्मा की अनुभूति । त्रयी-संज्ञा स्त्री॰ [स०] १ उपनिपद् काल की एक विदुषी आत्मानुरूप-सज्ञा पुं० [म०] जो जाति, वृत्ति और गुण आदि मे । तपस्विनी जो वेदात में बड़ी निष्णात थी । २ पश्चिमी अपने समान हो । स्वानुरूप । बगाल की एक नदी का नाम । तिस्ता । ३ रजस्वला स्त्री । ४ अत्रि गोत्र की स्त्री । अात्माभिमान--सज्ञा पुं० [सं० ] अपनी इज्जत या प्रतिष्ठा का खयाल ! मान अपमान को ध्यान । स्वाभिमान ।

  • थिG-सज्ञा पुं० [सं० अर्थ] घन । पूजी। उ०—ाथ तेणे अभिआत्माभिमानी-सज्ञा पुं॰ [स० छात्माभिमानिन] जिसे अपनी इज्जत

लाष इम, इण भुजनू आवत ।-चौकीदास ग्रे ०, मा० ३। या प्रतिष्ठा का बडा खयान हो । जिसे मान अपमान का । पृ० ६।। ध्यान हो । स्वाभिमानी । आथना --क्रि० अ० [स0 अस होना, स० अस्ति, प्रा० अस्थि आत्मामिप सधि-सज्ञा की० [सं० त्मिाभिषसन्वि] कामदकीय नीति होना । उ०—(क) कबिरा पढना दूर कर, अाथि पडो ससार। के अनुसार वह सघि जो स्वय सेना के साथ शत्रु के पास जाकर पर न उपजे जीव की, क्यो पावे करतार |--कवीर की जाय । (शब्द) । (ख) काया माया संग न अाथी । जेहि जिङ सौंपा सोई साथी ।—जायसी अ ०, पृ० ६० ! आत्माराम-मज्ञा पु० [सं०] १ अात्मज्ञान से तृप्त योगी । २ जीव। ३ अह्म । ४ तोता । सुग्गा । अथिना --क्रि० अ० [सं० प्रस्त, प्रा० अत्थ] अस्त होना । प्रात्मावलंबी-सज्ञा पुं० [सं० आत्मावलम्विन्] जो सबै काम अपने | डूबना। समाप्त होना । बल पर करे। जो किसी कार्य के लिये दूसरे की सहायता का आथर्वण-सज्ञा पुं० [सं०]१ अथर्ववेद का जाननेवाला ब्राह्मण । २. भरोसा न रखे । स्वादलवी। अथर्ववेदविहित कर्म । ३ अथर्वा ऋषि का पुत्र । ४ प्रय झात्मिक- वि० [स०] [वि० ख० भात्मिका] १ अात्मासवधी। ३ गोत्र में उत्पन्न व्यक्ति । अपना । ३ मानसिक । थी--संज्ञा स्त्री॰ [स० स्थातृ, हिं० थाती अथवा स० अाथ की = आत्मीकृत- वि० [भ] अपनाया हुआ । स्वीकृत। अर्थक स्थिति प्रा० * अत्थिई, *प्राथइ ] पूजी । धन । उ०— साथी माथि निजा यि जो सके साथ निरवाहि [---जायसी श्रात्मीय'--वि० [म०] [वि० सौर्य प्रात्मीया] निज का । अपना । (शब्द०)। । स्वछ । ग्रामोय- संज्ञा पुं॰ [स] स्वजन। अपनी सर्वधी । रिश्तेदार ।। अथी--संज्ञा स्त्री॰ [स० अर्य] अर्थसपन्नता । अमीरी । खुशहाली । आदर्श----सुज्ञा पुं० [सं०] १ दाँत से काटना । २ दाँत काटने से बना इष्टमित्र । निकट का व्यक्ति। हुआ घाव । ३ दाँत किो०] । आत्मोयता-संज्ञा स्त्री० [म०] अपनीयत । स्नेह-सबंध । मैत्री। अदित--सज्ञा स्त्री० [अ०] १ स्वभाव । प्रकृति । २ अभ्यास । टेव । मात्मोत्सर्ग-सज्ञा पुं० [सं०] परोपकार के लिये अपने को दु:ख या वान । उo-तू भी मजबूर हो जाती नही आदत' तेरी । विपत्ति में डानना । दूसरे की भलाई के लिये अपने हिताहित कविता कौo, भा० ४, पृ० ५४५ । का ध्यान छोड़ना। स्वार्थत्याग । क्रि० प्र०—ालना ।—पना लगना ।—लगाना ।