पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/५०१

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४३४ अातुरालय प्रतिशजन यौ०-- आतिथ्यसत्कार, आतिथ्यसत्श्यिा = अतिथि का ममान या प्रतिशजन--वि० [फा० प्रतिशजन] अाप लगानेवाला [को०] । स्वागत आदि करना । अतिशजनी--संज्ञा स्त्री॰ [फा० प्रतिशजुनी ] आग लगाने का काम। अतिरश्चीन-वि० [सं०] थोडा तिरछा (को॰] । प्रतिशदान-- सज्ञा पुं॰ [फा०] अँगीठी । वोरसी।। प्रतिशपरस्त----१० पुं० [फा०] १ अग्नि की पूजा करनेवाला मनुष्य । आतिरेक्य, अतिरेक्य--सज्ञा पुं० [स०] अतिरेक होना । प्राधिक्य २ अग्निपूजक । पारसी । [को०)। आतशफिश-वि० [फी तशफिश ] आग उगलनेवाला (को०] । प्रतिवाहिक- सज्ञा पुं० [०] मरने के पीछे का यह निगशरीर जिसे धारण करके जीव यमलोकादि में भ्रमण करता प्रतिशफिग --संज्ञा पुं० अग्निपर्वत । ज्वालामुखी पहाड [को०] । प्रतिशवाज-- -सज्ञा पुं॰ [फा० अतिशबाज ] तशवाजी वनाने है। यह शरीर वायुमय होता है। इनका दूसरा नाम वाला । हुवाई गर ।। ‘भोगशरीर' भी है। अतिशवाजी---सज्ञा स्त्री० [फा० प्रतिशबाजी ] १ वारूद के बने हुए आतिशाज्ञा स्त्री० [फा० प्रतिश] दे० 'अतिश' ।+इक पर खिलौनो के जलने का दृश्य । २ बारूद के बने हुए खिलौने । जोर नही, है यह वो अातिण गावि । कि गाए न लगे जैसे,---अनार, महताबी, छछू दर, वान, चकरी, दमगोला, और वुझाए न वदे |--शेर०, पृ० ५३६ । फुलझडी, हवाई आदि । ३ अगौनी ( बुदेल ० )। प्रातिशुदान--संज्ञा पुं० [फा० प्रतिशदान] दे० 'शात शदान' । उ6 - अतिशमिजाज----वि० [फा० छातश + अमिजाज ] शीघ्र उत्तेजित अति दान के कानिग पर घरे हुए वक्म और वोनल चमक या क्रुद्ध होनेवाला । विगल [को॰] । उठे ।-अाकाश०, पृ० ५० ।। अतिशी----बि०[फा०] १ अग्नि संवधी । र अग्नि उत्पादक । जैसे, अतिशयक--वि० [सं०] अत्यधिक कि]। तशी शीशा जो सूर्य किरणो की उष्णता एकत्र करके आग प्रातिशय्य--सा पुं० [सं०] अतिशय होने का भाव । अधिवये । पैदा करता है । ३ जो अाग में तपाने से न फूट, न तडके, वहुतायत । अधिकाई । ज्यादती । जैसे,---अतिशी शीशा । श्रातीपाती--संज्ञा स्त्री० [हिं० पाती = पत्ता] पढ़त्रा । पहाडी डिनो । एक से न । यौ०-.-तशी श्राईना, तशी शीशा = वह शीशा जिसके नीचे | रखी हुई रुई अादि सूर्यताप से जल जाती है। विगेप–इसमें बहुत मे लडके जमा होकर एक लडके को चोर प्रातस ---सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'प्रातश' । उ० ---ज्यो छिन एक ही बनाकर उसे किसी पेड़ की पत्ती लेने भेजते हैं। उसके चले में छुटि जाति है तस के लगे अतिसवाजी पद्माकर ग्रे ०, जाने पर मव लडके छिप रहते हैं। पत्ती लेकर लौट अाने पर पृ० २४६ । वह लडेका जिमको ढूंढकर छू लेता है, फिर वही चोर कहलाता है । उस लड़के को भी उसी प्रकार पत्ती लेने जाना प्रतिशवाज -सज्ञा पु० [हिं०] दे॰ 'आतशबाज' । उ०-आतसवाज पडता है । यह खेल बहुधा चाँदनी रातो में खेला जाता है ।। अनेक मिले वारूद वनावत ।-प्रेमघन० भा० १, पृ० ८२० । | आतुर–वि० [सं०] १ व्याकुल । व्यग्र । घबराया हुअा। जैसे, प्रतिशवाजी--मज्ञा स्त्री० [हिं॰] दे॰ 'आतशबाजी'। उ०--ज्यो । इतने अतुर क्यों होते हो, तुम्हारा काम मव ठीक कर दिया छिन एक ही में छुटि जाति है आतंस के लगे आतसवाजी -- जायगी । २ अधीर । उद्विग्न । वेचैन । पद्माकर ग्र, पृ० २४६ ।। यौ०- आतुरसन्यास । कामातुर। क्रोधातुर । तापि, अातापी- संज्ञा पुं० [स०] १ एक असुर जिसे अगस्त्य मुनि । ३ उत्सुक । दुखी। रोगी । ने अपने पेट में पचा लिया था। २ चील पक्षी । आतुर--क्रि० वि० शीघ्र । जल्दी । उ०-मर मज्जन करि असुर आतायी-सज्ञा पुं० [ स० तायिन् ] चील पक्षी [को०] । प्रावहू । दिदया देउँ ज्ञान जिहि पावहू -मानस, ६॥५६ । शातार–संज्ञा पुं॰ [सं॰] दे॰ 'तर' । आतुरता सच्चा स्त्री॰ [स०] १ घबराहट । वेचनी । व्याकुलतः । आतासदेश- -संज्ञा पुं० [सं० अातु+व० सवेश] एक प्रकार की बँगला व्यग्नतः । उ०-तिथे की लखि अातुरता पिय की अखियाँ अति | मिठाई । इसमें प्रत (शरीफा) की सी सुगध माती है और चारु चली जल च्वे ।—तुलसी ग्र०, पृ० १६४ । २ जल्दी । कभी कभी शरीफे के अकाश फी भी इसमें थोडी झलक शीघ्रता । आती है। यह छैने की बनती है। आतुरताई-संज्ञा स्त्री० [ स० आतुरता+हि० आई (प्रत्य०) ] आति, श्राती---संज्ञा झी० [सं०] एक पक्षी । अाडी (को०] । उतावलापन । शीघ्रती। जल्दीवाजी । उ0-उठि कह्यो भोर आतिथ्य-सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० तिथेयो ] १ अतिथि के भयो अँगुली दै मुदित महरि लखि आतुरताई । विहंसी ग्वालि सत्कार की सामग्री । २ अतिथिसेवा मै कुशल मनुष्य । ३. जानि तुलसी प्रभु संकुचि चले जननी उर धाई ।-नुलमी ग्र०, मेजवान । • पृ० ४३५। । अतिथेयी--वि० [स ० तिथेयिन्] अतिथिसेवा करनेवाला [को०]। आतुरशाला--सच्चा पुं० [सं०] चिकित्सालय । अस्पताल [को०] । आतिथ्य-संज्ञा पुं० [सं०] १ अतिथि का सत्कार । पहुनाई । मेह- आतुरसन्यास-- सज्ञा पुं० [सं०] वह सन्यासु जो मरने के कुछ पहले मानदारी। २ अतिथि को देने योग्य वस्तु । ३. मेहमान । त्वरापूर्वक धारण कराया जाता है। अतिथि। आतुरालय----संज्ञा पुं० [सं०] अस्पताल । चिकित्साह [को०] ।