पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४९८

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अडिालौट क्रि० प्र०---करना।--होना । अाते हो । (२) कठिन समय में काम प्राना । गाढे में काम मुहा०-आड़े देना=ोट करना । अाड़ के लिये सामने ना । सकट मे खड़ा होना 1 उ०—कमरी थोडे दाम की भाव रना । उ०-भाडे ६ अाले बसने, जाडे हैं की रात्रि । साहसु बहुत काम । खासी मनमल बाफना उनकर राख्ने मान । उनकर कई सनेह बस, सखी सवै ढिग जाति ।---विहारी र०, दोo राख मान वु दे जहे अा अावे । वकुचो वाँधे मोट राति को ' ११३ । २ रक्षा । शरण । पनाह । महारा। आश्रय । जैसे,२०६३ झारि बिछावै ।-गिरधर (शब्द॰) । डा तिरछा होना L ) अब वे किमकी अड़ पड़ेंगे ? (ख) जव तक उनके बिगडना। मिजाज बदलना । जैसे,—ाड़े तिरछे क्यो होते हो, | म पता जीते थे, तब तक वडो भारी अहि थी । सीधे सीधे बातें करो । भाड़े पडना = बीच में पड़ना । रुकावट | | ० प्र०--वैरना ।- पकडना ।—लेना । डालना । उ०—कविरा करनी अपनी कबहु न निष्फल जाप । || ३ रोक । अर्डन । ४,ईट वा पत्थर का टुकडा जिसे गाड़ी के सात समुद आड़ा पर मिले अगाऊ अाय }---कबीर (शब्द०)। • पहिए के पीछे इमलिये भेडाते है जिसमें पहिया पीछे न हट भाड़े हाथो लेना- किसी को व्यंग्यक्ति द्वारा लज्जित करना । सके। रोड।। ५ गीत में अष्टताल का एक भेद । ६ थुनी। जैसे,---बात ही बात में उन्होने बतदेव को ऐसा आडे हाथो ट्रेक । ७ तिल की बोडी जिसमें तिल भरे रहते हैं । ६ एक लिया कि वह भी याद करेगा । भाडा हो = रुकावट डालना। प्रकार का कलछुला जो चीनी के कारखानों में काम आता है। श्रागे न बढ़ने देना ।—-मैं पीछे मुनि धीय के, वह्यौ चलन करि चाव। मयदा अाडी भई, अागे दियो न राव |-- --संज्ञा स्त्री० [सं० प्रल = 'डंक, पा० अङ, प्रा० आड] बिच्छु |' या मिड यादि का इक । लक्ष्मण (शब्द॰) । | इ-संज्ञा स्त्री० [ स० अलि = रेखा ] १ लवी टिकली जिसे आडा-सझा पु० [हिं० अड्डा] दे॰ 'अड्डा'। उ०-होइ निवित वैठे तेहि ग्राडा। तव जाना खोचा हिय गाह' । -जायमी (स्त्रियाँ माथे पर लगाती हैं । उ०~-गौरी गदकारी परे हँसत ग्र ०, पृ० २८ ।। - कपोन्ननु गाट । केमी लसति गंवारि यह सुनकरवा की झाडाखेपटा-सा पुं० [हिं० प्राडा+मटा] मदग का साढे तेरहू ग्राड ।-विहारी र०, दो० ७०८ । २ स्त्रियो के मस्तक पर मात्राम्रो का एक ताल । की प्राडा तिलक । उ०-कैसव, छवीलो छत्र सीसफून सारथी । विशेष—इसमें तीन अघात और एक खा नी रहता है। कोई कोई सो केमर की प्राडि प्रवि रथिक रवी वनाइ ।—केशव ग्र०, इम मे खान का व्यवहार नहीं करते । इउ तान के वो न ये हैंमा० १, पृ० ९० । (व) मंगल विंदु सुरगु, ससि मुवु केसरि घा तेरे केटे धेने धागे नागे वेन । तर के तेरे केटे धेन धागे आड गुरु । इक नारी लहि भगु, किय रसमय लोचन जगत । नागे तैन । विहारी र, दो० ४२ । ३ माथे पर पहनने का स्त्रियों का प्राडाचौताल -सज्ञा पुं० [हिं० डा + चौताल ] मद का एक एक गह्ना । टीका । | ताल । यह ताल सात मात्र ग्रो का होता है ।। अडगीर--संज्ञा पुं० [हिं०+आड़ फा० गीर खेत के किनारे की घास । विशेष - इसमे चार घात और तीन खाली होते हैं। इस तान प्राडण --संज्ञा स्त्री० [हिं० आडना = रोकना] ढाल -(हि०) । के बोल यो हैं-धागे धागे दिता, केटे धागे दिता गदि धेने धा। प्राडना-क्रि० स० [अल= वारण करना ] १. रोकना । छेकना ।। मतातर से इसके बोल यो हैं-धागे तेटे केटे ताग तागे तेटे, उ०-अँचवन दियो ने आजु अलि हरि छबि-अमी अघाइ । के तागे घेता तेटेकता गदि घेने धा।। प्राडयो प्यासे दृगनि को लाज निगोडी प्राइ-भिखारी० ग्र०, डाठेक-सज्ञा पु० [ हि० डा+ठेका ] नौ मात्रा का पृ० ४५।२ बाँधना । ३. मना करना । न करने देना। ४. एक ताल । गिरवी रखना । गहुने रखना । जैसे,—सौ रुपए की चीज विशेष---इसमें चार दीर्घ और चार अणु मनाएँ होती है । चार आड करके तो २५) लाया है ।। दीर्घ मात्राग्रो की अाठ दून मात्राएँ और चार अणु मात्राम्रो आडवंद----सज्ञा पुं० [हिं० ड+फा० वंद] १ फकीरो की लँगोट । की एक मात्रा । इम प्रकार सव मिला कर नौ मात्राएँ २ पहलवानो का लंगोट जिसे वे जपिए के ऊपर कसते हैं । होती हैं। किंतु जब ठेके मे ४ दीर्घ मात्राएँ दी जाती शाडवन-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'आईवद' । हैं तो उनमें से प्रत्येक के माथ एक एक मात्रा अण भी प्राड़ा-संज्ञा पुं० [स० अलि = रेखा प्री० आल, आड अथवा सं० लगा दी जाती है। इसके मृदग के बोल ये हैं-धाकेटे नाग ध अराला प्रा० अलि ] [जी० आडी ] १ एक धीरी + १ + + दार कपडा । २ जहाज का लट्ठा । शहतीर। ६. नवि या ऐन धा धा धिन धि ऐन ताकेटे तोगधि ऐन घा घा तिरोन घा । जहाज में लगे हुए बगनी त । ४ जुनाहों का लकड़ी का अड़ापचतालमा पुं० [ हि० प्राडा+पंच +ताल ] पाँच प्रति वह समान जिसपर सूत फनाया जाता है । र नी मात्राओं का एक तान्न । प्राडा--वि० १ अखिों के समानांतर दाहिनी ओर से दाईं ओर को बाई ओर से दाहिनी शोर को गया हुग्रा । २ वार से पार । विशेष—इमके बोल ये हैं-धि निर किट, धि ना धि धि ना ना तु तक रखा हुआ । ना, कुत्ता' धि धि, ना धि धि ना।। महा०—ार्ड आना = (१) रुकावट डालना । बाधक होना । झाडालोट----सी पुं० [हिं० प्राडा + लोटना] डायनान । कर । जैसे,—जो काम हेम शुरू करते हैं, उमी में तुम बेहतर अड़े क्षोभ (लश०) ।