पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४९५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अाजादगी ४२६ ग्राजुदगी यौ०--आजाद तबीयत, आजाद मिजाज = स्वेच्छाचारी। मन- जिगमिपू-वि० [१०] माने की इच्छा पुर्नवाला [को०] । मौजी । श्रीनदी। प्राजिगीपु--वि० [सं०] जय की इच्छुक [को०] ।। आजादगी-सज्ञा स्त्री॰ [फा० आजादगी ] स्वतंत्रता । | श्राजिग्रह--वि० [स०] ग्रह्ण या एग्ण हारनेपानी [2] । आजादाना--क्रि० वि० [ फा० आजादानह, ] आजाद की तरह । अजिज--वि० [अ० आजिज ] [ सं अजिजी ] १ दीन । | स्वतत्रतापूर्वक 1 स्वच्छतापूर्वक ! विनीत । २ हैरान ! तग । उ०—दिन में शाजिश तुम रहते आजादी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० आजादी] १ स्वतंत्रता । स्वाधीनता । २ इद्री मारि गिरा - न० पानी, भा० ३, पृ० ५८ ।। निरङ्कुशता [को०] । क्रि० प्र०-साना ।—होना । जान--संज्ञा पुं० [सं०] १ जन्म । जनन । २.उत्पत्ति या जन्म का जिजी-सज्ञा जी० [अ० भाजिजी] १ दीनता । विनीत भाव । कारण । ३ जन्मस्थान (को०] । नम्रता । २ हैरानी । ३. निराश । ४. कमजोरी । जान--क्रि० वि० [सं०] सृष्टिकाल से [को०] ! जिमुख--संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध की प्रगति [को०)। आजान' (–वि० [हिं० अजान] अनजान । न जाननेवाला । ननवाला । अाज- राजा सी० [स० अायिका, प्रा० अजिब्रा या हि० प्रजा उ०-करतलह सु कवि कित्तिय सुवर, पय थक्के जाने दादी । पितामहीं। जिम ।--पृ० रा०, २५ । ५६८ 1 . श्राजीव-ज्ञा पुं० [सं०] १ जीपिका । ४ । २ जीविका या जानज---वि० [सं०] सृष्टिकाल में उत्पन्न, जैसे देव अादि [को०] ।। | साधन या उपाय । ३. उचित नभ या अपि । वाघि जानदेव-संज्ञा पुं० [सं०] वे देवता जो सृष्टि के अदि मे देवता रूप नामदनी। मे ही उत्पन्न हुए थे । । विशेप-जो लोग कारीगरों और श्रमिकों की ग्रामदनी को घटाने विशेप---देवता दो प्रकार के होते हैं-एक कर्मदेव, जो कम से का यत्न करते थे, उनके ऊपर वाय य ने १००० पण देवता हो जाते हैं और दूसरे जानदेव जो देवता रूप में ही जुरमाना निया है । उत्पन्न होते है। ४ राज्यकर् । सरकारी टैपन या महसून । जानि--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ जननी । माता । २ जन्म । उत्पत्ति । | ३ अच्छा व श [को०] । बिशेप-यह भिन्न भिन्न पदाथों पर नगता दा । झाजीवक-ज्ञा पुं॰ [सं०] १ गोगन द्वारा प्रतित धार्मिक संप्रदाय जानु–वि० [सं०] जाँघ तक लबा । घुटने तक लवा। यो ०.-आजानुबाहू । श्राजानुभुज । जानुलवी । का साधु (जैन)। उ०-उतने में एक प्राजीवक उमी स्याने आजानुबाहु--वि० [सं०] जिसकी वाहू जाँघ तक लंबी हो। जिसके पर आकर चदन से पूछने नगा ।-इo, पृ० ७२ । २. | हाथ घुटने तक लबे हो । भिखमगा । भिक्षुक (को०] । आजानुभुज --वि० [स०]दे० 'आजानुबाहु' । उ०—प्राजानुभुज सरवाप अाजावन --क्रि० वि० [म०] जीवनपर्यंत । जिदगी भर। जब तक धर सामजित खरदूपन -तुलसी ने ०, पृ० ४७८ । जीए तब तक । जानुलवी-वि० [स० जानुलम्विन्] घटने तक लबा [को॰] । श्राजीवनिक - वि० [सं०] उपिका के लिये प्रयत्न फरवाना [फो०] जानेय-सज्ञा पुं० [स०] घोडे की एक जाति जो उत्तम मानी जीवात-क्रि० वि० [सं० अजीदान्त मरने की घड़ी तक । प्राण जाती है । | निकलने के क्षण तक । आजानेय-वि० १ अच्छी नस्ल का (घोडा) । २. उच्चकुल में आजीविक----सज्ञा पुं० [सं०] १० श्राविक' (को०] । उत्पन्न 1 ३ निर्भय [को०] । श्राजीविका---संज्ञा स्त्री॰ [स०] वृत्ति । रोजी । रोजगार । जीवन का अाजार- सज्ञा पुं० [फा० आजार] १. रोग । बीमारी । व्याधि । सहारा । जीवननिर्वाह का अवलव । उ०--तेरी बहुत अच्छी उ०- उस मसीहा को दिखा दो तो कुछ प्राजार नहीं, अभी | आजीविका है ।-शकु तला, पृ० १०१ । हो जाय शिफा ।--श्यामा०, पृ० १०१ ।। अजीवितात--क्रि० वि० [सं० श्राजीवितान्त] जीवनपर्यंत (को०] । क्रि० प्र०—देना । २ दु ख । कष्ट । तकलीफ । उ०--तेरे वीमार सा बीमार न । श्राजीवी-वि० [सं० प्राजोविन्] जीविकायुक्त। २ एक प्रकार के होगा कोई । जिसको जाहिर मे जो देखा तो कुछ अाजार भिक्षुक (एकदडी) [को०] । नहीं 1-- कविता कौ०, 'मा० ४, पृ० २२६ । आजीव्य-वि० [स०] १ जीविका योग्य । जीविका बनाने योग्य । क्रि० प्र०—देना ।—पहुचना !--पाना ।—लगाना । ३ निवास योग्य । ४. उपजाऊ (को०] । जि--सुज्ञा पुं॰ [सं०] १ युद्ध । रण। संग्राम । लडाई । उ०-- आजीव्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] जीविका या रोगी का साधन [को०] । चतुरग सैन भगाइके, तव जीतियो वह् प्राजि ।-रामच०, पृ० माशुक्रि० वि०, संज्ञा पुं० [हिं० श्राजु] दे० 'आज'। उ०—(क) १७४ । २ दीड (को०] । ३ युद्ध क्षेत्र या दौड का स्थान अाजु अनरसेहि मोर के, पय पियत न नीके ।—तुलसी में 0, पृ० [को॰] । ४, सीमा । घेरा को०]। ५ पथ । मार्ग की। २७४ । (ख) वहुत काल में कीन्हि मजूरी । ग्राजु दीन्ह विधि ६ क्षण [को०] । ७. निदा [को०] । पनि 'मलि भूरी --मानस, २ । १०२ ।। प्राजिक्रिया--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] युद्ध (को०] । अाजुर्दगी--सज्ञा स्त्री॰ [फा० माजुर्दगी ] रज । खेद । दुःख।