पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४९३

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माछी आच्छाक ४२६ आच्छाक---सज्ञा पुं० [सं०] नील का सा एक पौधा जिससे लाल रंग भंवर श्राइ वनखंड सन, लेइ कमल के वास । दादुर वास में वनता है। शाल । पावई, मलहि जो अछे पास । —जायसीग्र २, पृ० १ ।। पर्या०-रंजनद्रुम । पक्षीक । पक्षिक । अाच्छुक । विशेष---इस क्रिया के प्रौर सव रूपो का व्यवहार अब बोलचान अाच्छाद-सज्ञा पुं॰ [सं०] वस्त्र । परिधान [को०] । से उठ गया है, केवल छत, ग्राछते ( होते हुए ) रद्द आच्छादक--संज्ञा पुं० [म०] ढुकनेवाला। जो ढाँके । गया है । आच्छादन--सज्ञा पुं॰ [म०] [वि० आच्छादित, आच्छन्न] ढकना । छरि)- सच्चा स्त्री० [सं० अप्सर प्रा० श्रच्छरा] दे० 'अमर' । प्रावरण । उ०—धीरे धीरे हिम आच्छादन हटने लगा धरातल छा)---वि० [हिं॰] दे॰ 'अच्छा' 1 उ0-हरि अबित गाइ नि के से 1--कामायनी, पृ० २३ । २ वस्त्र । कपडा । ३ छाजन । पाछे । मोर मुकुट मकराकृत कु डन नैन विमाल के मन ते छवाई । ४. छिपाना [को०] 1 ५ परिधान [को०] । ६ ठाठ । | अाछे --मूर०, १० | ५०७ । । ठाठर [को॰] । ७ लोप (को०] । श्राछादित--वि० [सं० श्राच्छादित] दे॰ 'झाच्छादित' । उ०-~आच्छादित---वि० [सं०] १ ढका हुआ 1 वृत्त । उ०—फिर देखी | गज चर्म छादित, भ्रम नाम, रहै वीर मैरो गन प्रास भीमो मूर्ति आज रण देखी जो आच्छादित किए हुए संमुख पास }-पृ० रा०, १ । ३८६ । । समग्ने नभ को ।—अनामिका, पृ० १५२ । ३. छिपा हुआ । छिी'.--- वि० स्त्री० [हिं० अच्छा] १ अचछी । मली । उत्तम । तिरोहित । उ०---लै पौढी अगन ही मृत कौं छिटकि ग्ही अछी उजियआच्छादी-वि० [सं० आच्छादिन्] अाच्छादान करनेवाला [को०] । रिया । सूर०, १० । २४६ । २ स्वस्थ । नीरोग । ठीक । आच्छाद्य–वि० [सं०] १ ढकने योग्य (स्तन) । २ गोप्य । उ०—तव विट्ठन श्री गुमाँई जी मो विनती करे, जो | गोपनीय (को०] । महाराज | मेरी देह अछी नाही --दो मी वावन०, भा०१, अच्छिन्न-वि० [सं०] १ हटाया हुया । २ नष्ट किया हुअा [को०] । पृ० १४० । अच्छुक-सज्ञा पुं॰ [सं०] अच्छाक । प्राक्षिक [को०] । | प्राछी –वि० [म० अशिन्] खानेवा ना । उ०—-पान फून ग्राछी अच्छरित--वि० [सं०] १ मिश्रित । मिला हुआ । २ नख से । सव कोई । तुम कारन यह कीन रसोई ।—जायनी (शब्द॰) । चिह्नित या बॅरोचा हुग्रा । क्षुब्ध [को०] । अछी+-- संज्ञा स्त्री॰ [म० आक्षिक] मुगवित फूनवाला एक पेश आच्छुरित–सच्चा पु० १ नखुवाच्च। नखो को रगडकर शब्द करना । जिसकी लकड़ी हल्के पीले रंग की होनी है । २. अट्टहास (को०]। शाछे--क्रि० वि० [म० अच्छ=स्वच्छ, हि० अच्छा] अच्छी तरह। अच्छुरितक-सज्ञा पुं० [सं०] नखक्षत । २ अट्टहास [को॰] । उ०-- तिनके लच्छन-लच्छ अव आछे कहीं बखानि ।—नः० अच्छेत्ता--वि० [म० देतृ] छेदन करनेवाला। काटनेवाला (को०] । ग्र ०, पृ० २९४ । मच्छेद--सज्ञा पु० [सं०] १ काटना । काट डालना। २ किचित् अछे --वि० [हिं०] दे० 'अच्छा' । उ०--जे परमेश्वर पे चढ़े, तेई या कुछ काटना । ३. अपहरण । बलपूर्वक हरण करना (को०)। अछे फूल ।—भूपण ग्र०, पृ० ७१ ।। आच्छेदन-सझा पु० [सं०] झाच्छेद । छेप -संज्ञा पुं० [सं० आक्षेप] आक्षेप नामक अलकार । आच्छेप -सज्ञा पुं० [सं० साक्षेप दे० 'क्षेप' । उ०—पहिले । ३०---तहाँ कहुत अच्छेप हैं कविजन मत उत्सेछ ।-मतिराम कहिए बात कछु, पुनि ताको प्रतिपेघ । ताहि कहत अच्छेप हैं, | ग्र०, पृ० ४०० । भूपन मुकवि सुमेध ।--‘मूपण ग्र०, पृ० ३९ । आर्छ५–क्रि० वि० [सं० अक्षय, प्रा० अच्छ] दे० 'अक्षय' । उ०-- अच्छोटन-सज्ञा पुं० [सं०] १ चुटकी बजाना । २ उँगली फोडना । अाछ सगै रहै जु वा । ता कारणि अनंत सिधा जोगेश्वर बँगली चटकाना ।। हूव ।--गोरख०, पृ० २ ।। प्राच्छोदन-सज्ञा पुं० [अ०] अहेर । आखेट । मृगया [को०] ।। छो -वि० [हिं॰] दे॰ 'अच्छा ' । उ०—के न परत, कमले छढ़ना -क्रि० अ० [देश ०] धक्का देना। उ०—उचित बयम | मुख देखे, भूल्यो काम, घाम छो वदन निहारि ।-नद० ग्र , मोर मनमथ चोर ठेलि अछिढि आकरए अगोर ।-विद्यापति, | पु० ३५२ । । | पृ० ५६२ ।। छोटण---सज्ञा पुं० [स० च्छोदन = मृगया] पिकार । अछुत --क्रि० प्र० [ प्रा०५/अच्छ, हिं० अरछना फो कृदन रूप, आखेट । अहेर ।--(डि०) । जिसका प्रयोग क्रि० वि० वत् होता है । होते हुए। रहते हुए । छोप--वि० [हिं०] दे॰ 'अछोप' । उ०—जाके भागवतु लेखिये, विद्यमानता में 1 मौजूदगी में । सामने । जैसे,—हमारे छत मतकर्म पेखिवे तास की जाति छोप छीपा ।—संत रवि०, उसे धौर कौन ले जा सकता है ।---(शब्द०)। उ०—अखिने पृ० १३२ । माछत अधिरो जीव करे वहु माँति । धीर न बीरज विनु कर अछौ -वि० [हिं०] दे॰ 'अच्छा' । उ---ग्राछौ गात अकारथ तृप्णा कृष्णा राति ।--केशव (शब्द॰) । गरियो । करी ने प्रीति कमल लोचन सौं जनम जुम्रा जप छना)---क्रि० अ० [म० असू = होना अथवा सं० श्रा+क्षि, हारचौ --सूर०, १ । १०१।२ मगल । शुम । उ०--- " प्रा० अच्छ°१ होना।२ रहना । विद्यमान होना । उ० अछौ दिन सुनि महरि जमोदा, सविनि बोलि सुम गान कयौ -सूर०, १० | ८८ ।