पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४९२

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प्राचांति ४२५ आच्छन आचाति--सज्ञा स्त्री० [सं० श्राचान्ति] अचाने । प्राचारी’--मझी पुं० [सं०] रामानुज संप्रदाय का वैष्णव । प्रावण ! अचान- क्रि० वि० [हिं०] दे॰ ‘अचमन' ।। शाचारी-सघा औ० [सं०] हुरहुर । निमोचि का । अचानक–क्रि० वि० [हिं०] दे० 'अचानक' । प्राचार्य---सज्ञा पुं० [सं०] [रनी० प्राचार्य, प्राचार्याणी] [वि० आचाम- सशी पुं० [म०] १. भात । २. मोड । ३ प्राचमन ।। | आचार्यों] १. उपनयन के समय गायत्री मंत्र वा उपदेश आचामक---सच्चा पु० [सं०] अचमन करनेवाला व्यक्ति [को०) । करनेवाला । गुरु । प्राचार-संज्ञा पुं० [सं०] १ व्यवहार । चलन । रहन सहन । २। विशेप--पाणिनि ने चार प्रकार के शिक्षाको का उल्लेख किया चरित्र । चान्न ढाल । ३. शील ! ४ शुद्धि । सफाई । ५ है । प्राचार्य, प्रवक्ता, श्रोत्रिय, अध्यापक । इनमें प्राचार्य का 'मोजन । अाहार [को॰] । ६ आचरण का तरीका (को०] । ७ स्याने सर्वोच्च था । शिष्य का उपनयन कराने का अधिकार तो नित्य नैमित्तिक नियम (को॰) । प्राचार्य को ही था। स्वयं प्राचार्य का काम करनेवाली स्त्री यौ०-अनाचार । दुराचार । शिष्टाचार । समाचार । सदाचार। प्राचार्य कहलाती है। प्राचार्य की पत्नी को प्राचार्यांनी कुलाचार । देशाचार । भ्रष्टाचार । कहते हैं । प्राचीरज--संज्ञा पुं० [म० प्राचार्य] P० ‘प्राचार्य' । उ०—प्राचारज २. वेद पढानेवाला। ३ यज्ञ के समय कमपदेशक ४ पूज्य बासिष्ट भी ऋत्वज बत्म प्रवीन |--हम्मीर रा०, पृ० ५६ । पुरोहित । ५ अध्यापक । ६ ब्रह्मसूत्र के चार प्रधान आचारजी--सज्ञा स्त्री० [सं० प्राचार्यां] पुरोहिताई । प्राचार्य होने भाष्यकार--(क) शकर, (२) रामानुज, (ग) मध्य प्रौर का भाव । उ०---उनके घर किमकी प्राचारजी है ? (घ) वल्लभाचार्य ७ वेद का भाष्यकार । ८. मास्त्रीय श्राचारतत्र--सज्ञा पुं० [म० आचारतन्त्र] वौद्धों के चार तत्रो मे से व्याख्या करनेवाला 1 तात्विक दृष्टि से गुण दोष का विवेचन एक [को॰] । करनेवाला । ६. किसी महाविद्यालय का प्रधान अधिकारी प्राचारदीप-सज्ञा पुं० [सं०] भारती आदि पूजन विधियों में प्रयुक्त और अध्यापक । प्रिमिपल । प्राचार्य (को०] । १ किमी होनेवाला दीप [को०] । पास्त्र या विपये का घुरघर पडिन या ज्ञाना [को०] । आचारपतित--वि० [स०] अचार भ्रष्ट (को०] । यौ०-प्राचार्य कुल = गुरुकुल । प्राचार्यवान् ='उपनीत । अाचारपूत--वि० [सं०] शुद्ध आचरण करनेवाला [को०] । प्राचार्यक--संज्ञा पुं॰ [सं०] १. प्राचार्योपदेश, शिक्षा, पाठ ग्रादि । प्राचारभेद-सच्चा पु० [सं०] अाचार या आचरण सवधी नियमों का २ व्याया करने की शक्ति या योग्यता । व्यापातृत्व । ३. अतर [को०) । आचार्य का पद (को॰) । आचारभ्रष्ट-वि० [स०] प्राचार या आचरण की मर्यादा से रहित । प्राचार्यकरण-संज्ञा पुं० [सं०] माणवक या बटु को उपनीन करने पतित [को॰] । | का कार्य [को॰] । प्राचारलाज-सज्ञा पुं० [म०] राजा अादि पर डाला जानेवाला प्राचार्यदेव-वि० [म०] अाचार्य को देव माननेवाला (को०] । लावा [को॰] ।। प्राचार्थी-वि० सी० [सं०] प्राचार्य की । प्राचार्य मधिनी । जैसेआचारवजित--वि० [सं०] १ आचारविरुद्ध या अचारशून्य । २. प्राचार्यां दक्षिणा । जाति से बहिष्कृत । जातिच्युत (को॰] । | ग्राचित-वि० [स० अचिन्त्य] (परमेश्वर) जो विनन में नहीं प्राचारवान्-वि० [सं० आचारवत् ] [वि० ग्त्री० प्राचारवती] पवित्रता प्रा मकना। उ०—तेज अड़ प्राचिन का, दीन्हा मकन्न पगार। से रहनेवाला । शुद्ध प्रचार का 1 उ०—'शुचि प्राचारवती अड शिरजा पर बैठकर, अधर दीप निर्धार 1-7ीर (शब्द०)। कल्याणी गिरजा जब अभिजाता । सूर्यवदना अरुणाचल पर ऋचित्य'.- वि० [१० प्राचिन्त्य] गप प्रकार ने चितन करने योग्य। करती सद्य नाता ।- पार्वती, पृ० ६१ । चिज्ज-सज्ञा पुं० [म० श्राश्चर्य, प्रा० चिज्ज्ञ] "० "मचर्य' । अाचारविचार--सज्ञा पुं० [सं०] प्राचार और विचार । पवित्र । उ०—एह वह झाचिज उपजि मो पित तु तन्य ।-- | प्राचरण । पृ० रा०, ३।२० ।। विशेष----इस शब्द का प्रयोग अकमर प्राचार ही के अर्थ में होता चित'-मज्ञा पुं० [म०] प्राचीन काल का एक मान जो दम भार वा हैं । जैसे,—वह वडे प्राचारविचार में रहता है । २५ मन की होता था । २ गाडी नर फ बोझ । एक चारवेदी----सा लौ० [अ०] अाचार की वेदी । प्रायवर्त को०] । छव का भार । प्राचारहीन--वि० [सं०] अचिभ्रष्ट । जिसमें प्राचार विचार न चित--वि० १ पाप्त । २. एकत्र किया है। [को०)। ३ भर | हो । पतित [को०) । हुआ [को०] ! ४ बँधा हुग्रा (०] } ५ फैलाया । []। प्रचारिक-सपा पुं० [सं०] स्वास्थ्य स हिता । स्वास्थ्य मंत्रधी नियम आचीर्ण-वि० [सं०] वाया हूँग्रा । प्राग्वादिन (०३ । [को०] । आचूपण---मज्ञा पुं० [न०] १ चूनन । २ जून र ‘राहर निकालना। श्राचारी-वि० [म० प्रचारिन्] [वि० सी० आचारिणी आचारवान् । रक्त चूमने का यत्र लगाकर चूमना [१०] । चरित्रवान् । शुद्ध प्राचार का । ३०-सोई सयान जो परघन अच्छद-सा पुं० [सं० च्यद् अवर । उम्र । हारी । जो कर दंग मो वड वारी ।---मानस, ७ । ६६ । भाच्छन्न--वि० [२०] १ का हुआ। धार्न । २ दिन है । ५४ तिरोहित !' की वारिणी] भावाचन प्रच्छन-14 ट