पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४८७

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श्रीगर ४२३ अगर : आगर-मज्ञा पु० न० श्रागार= घर] १ घर 1 गृह । २. छाजन की उन्नति में रुकावट डालना । जैसे,—किमी का प्रोगा मारना । मा एक भेद जिसमे फूम या खर की जडे अोलती की ग्रोर अच्छा नहीं । अागा मारा जाना = 'भावी उन्नति में विघ्न पड़ना। कर के हवाई होती है। ३ छाजन । छप्पर । उ०-तृत तृण गम मारा जाना । जैसे,—परीक्षा में फेन होने में उसका वरि मा झूखी। भा वरपा अगर सिर परी ।-- अागा मारा गया । अागा रुकना= मावी उन्नति में बाधा पडना । जायसी (शब्द॰) । आगा रोकना=(१) अाक्रमण रोकना । (२) कोई वडा कार्य अगर--वि० [सं० श्राफर=अप्ठ] [ स्त्री० झागरि, अगरी ] १. प्रा पड़ने पर उसे में मानना । मुडा से मानना । जैसे,—इतनी श्रेष्ठ । उत्तम । बढकर । उ०---(क) दई दीन्ह असे जगत वही बारात ग्रावेगी, उसका अागा रोकना भी तो कोई महज अनूपा । एक एक ते ग्रागर रूपा --जायसी (शब्द०)। (ख) वात नही है । (३) किमी के सामने इस तरह खड़े होना कि जिनको साँई रंग दिया कत्र न होय कुरग । दिन दिन वानी अोट हो जाय । ग्राड करना । जैमें,- गा मन को, जरा अगरी चढे सवाये। रग ।-- कबीर (शब्द॰) । २ चतुर । किनारे खड़े हो ।(४)किसी की उन्नति में बाधा डानना । आगा होशियार । दक्ष । कुशल । उ०-जो लाँघे सत योजन सागर । लेना = शत्रु के अाक्रमण को रोकना। मिडना । प्रागी सँभाकरें सो रामकाज ग्रति अागर --तुलसी (शब्द०)। लना=(१) मुहडा सँभालना । कोई वडा कार्य प्रा पड़ने पर आगर--सज्ञा पुं० [म०] अमावस्या (को॰) । उसका प्रबंध करना । (२) किमी खुने गुप्त अंग को ढकना । अगरवधु--संज्ञा पुं॰ [म० अा+गल + व इ] कठमाला (दि०)। (३) बार रोकना । भिडना । जैसे,—राजपूताने की लड़ाइयो शागरी- संज्ञा पु० [हिं० श्रागा] नमक बनानेवाला पुरुप । लोनिया ।। में पहले भी न ही लोग अागा से भागने थे । प्रागल-सज्ञा पुं० [स० अगल] अगरी । व्योडा। बेंडा । गा--सज्ञा पुं० [तु० गा] १ मानिक 1 सरदार । २ काबु नी । मागल’---क्रि० वि० [हिं० अगला] मामने । अागे (लश०)। | अफगान । ३ ज्येष्ठ भाई को०] । अगल--वि० अगता। उ०---अगल से पाछन भयो, हरि सो । श्रागाज-सज्ञा पुं० [फा० आगाज] प्रारभ । ग्रादि । शुरू। कियो न भेट। अब पछताने का भया, चिड़िया चुग गई। श्रागात--वि० [सं० आगा] नाकर पाने या कमानेवाला [को॰] । खेत ।- (शब्द॰) । अगाध-वि० [स०] १ अत्यत गहरा । २ जो कठिनाई से प्राप्त आगला- क्रि० वि० [हिं०] दे० 'अगला' । | हो [को॰] । भागवन---सज्ञा पुं० [हिं॰] दे० 'आगमन' । उ०--जिमि तुम्हार --जिम तुम्हार श्रागान'-.-सज्ञा दे० [सं० अ +गात : बात] वात । प्रसग । प्रायान । अगवन मुनि भए नृपति बलहीन !-—मानस, १॥२३८ । वृत्तात । उ०—ौर कृष्ण के ग्राहू को भू। मुनहु गान् । आगवाह--संज्ञा पु० [सं० अग्निवाह = धूम] धू (हिं॰) । पापहरण भवनिधि-तरण करने सकल कल्याण -गोपाल अगसू-सज्ञा पुं० [स०] १ पाप । २ अपराध। दोप । ३ देड (शब्द०) । सजा को०] । भागान-सज्ञा पु० [सं०] वह पनि जो गाना गाकर उपार्जन करे। अगस्ती-- सज़ा झी० [सं०] अगस्त की दिशा । दक्षिण । गायक [को०)। प्रागस्त्य--वि० [स०] १ दक्षिण दिश।। २ अगस्त्य मवधी (को॰] । श्रागापीछा---सज्ञा पुं० [हिं० प्रगा+पीछा] १ हिबफ । मोर्च आगा-- सज्ञा पुं॰ [स० अग्र, प्रा० अग्ग] १ किमी चीज के अागे का विचार । दुविधा । जैसे,—-इम काम के करने मे तुम्हे अागा भाग । अनाही । २ शरीर को अग ना भाग । जैसे,—-ऊँचे पीछा क्या है ? अागे का हा यी अच्छा होता है । ३ छाती। वक्ष स्थल । ४ क्रि० प्र०—करना । जैसे,—अच्छे काम में ग्रागा पीछा करना ठीक मुख । मुह । मुहरा । ५ ल नाट। माया । ६ लिगेंद्रिय । ७ नही ।--(शब्द॰) ।--होना। अंगरसे कुरते अादि की कट में अागे का टुकड़ा। पगडी २. परिणाम । नतीजा । पूर्वपर मवध । जैसे,-कोई काम का छज्जा । ६. घर के सामने की माग । मुह। १०. सेना या करने के पहले उसका आगा पीछा सोच लेना चाहिए। फौज का अगना माग । सैनामुग्छ । हुरावन । ११ नाव का क्रि० प्र०——देखना ।---सोचना । अगला भरग । माँग । गन्नही । १२ घर के सामने का मैदान । ३ शरीर का अगना और पिछना भाग । शरीर के आगे और घर के धागे का सहन । १३ पेशुखीमा । प्रागडा । १४ पहि पीछे के गुप्त अग। जैसे,—मला इतना कहा तो दो जिसमे नावे का वह भाग जो अागे रहता है। पल्त । अचल । १५ अागा पीछा ढेके । ४ आगे और पीछे की दशा । जैसे,—जरा प्रागे अाने वा ना नमय । भविष्य । परिणाम । जैसे,—(क) अगा पीछा चला करो । उसका ग्रागा मारा गया है । (ख) उसका अागा अँधेरा है। प्रागामि, आगामी--वि० [ स ० अागामिन् ] [ जी० अागामिनी ] मुहा०——ागा काटना= यात्रा या कार्य में विघ्न डालना । अगा भविष्य । होनहार । अानेवाला । तागा लेना = प्राव भगत करना अादर सत्कार करना। अगा अगामिक-वि० [स०] १ भविष्यकालसवधी । २. आनेवाला[को०]! भारी होना=(१) गर्भ रहना। पर भारी होना । जैसे,- आगामुक-वि० [सं०] १ आने वाल।। २ भावी [को०)। ब्याह होते ही उनकी प्रागा नारी हो गया । (२) कहारो की आगार- संज्ञा पुं० [सं०] १ घर । मदिर। मकान । २ स्थान । बोली में राह में ठोकर गड्ढे अादि का होना जिससे गिरने का जगह । जैसे,----अग्न्यागार । ३ जैन मतानुसार बाधक नियम भय हो । आगा मारना= किसी के कार्य में बाधा डालना। किसी और व्रतमंग । ४, खजाना । उ0----खान असी अकबर अली