पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४८५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भाग ४१६ मागतत्व हर घडी कष्ट हुआ करे। आग में पानी डालना = झगडा अाना । जैसे,--क)जरी वैठो 'भाई, क्या प्राग लेने आए हो ? मिटाना । बढ़ते हुए क्रोध को धीमा करना । आग लगना = (ख) भाग लेने आई, घरवाली बन बैठी। आग से पानी होना या अोग से किसी वस्तु का जलना उ०--नयन चुवहि अस मह्वट' हो जना= क्रुद्ध ने शात होना । रिस का जाता रहना। नीरू। तेहि जल प्राग लाग सिर चीरू |---जायमी जैसे,—उसकी बातें ही ऐसी मीठी होती हैं कि अादमीप्रग से (शब्द०)। जैसे---उसके घर में आग लग गई। (२) क्रोध पानी हो जाय । श्रग होना=(१) गर्म होना। लाल अगार उत्पन्न होना । कुढे न होना। बुरा लगना । मिर्ची लगना । होना । २ ऋद्ध होना । रोप में 'मरना । जैसे,—यह बात जैसे,—(क) उसकी वडवी बातें सुनकर आग लग गई। सुनते ही वे आग हो गए। किसी की आग में कूदना या (ख) तुम तो मनमाना वके, अव हमारे जरा सी कहने पर पड़ना = किसी की विपत्ति अपने ऊपर लेना । तलवों से प्राग अाग लगती है। (३) ईष्य होना । डाह होना । जैसे,—किसी लगाना-शरीर भर में क्रोध व्याप्त होना । रिस में भर को सुख चैन से देखा कि वस आग लगी । (४) लाली फैलना। लाल फूलो का चारो ओर फूलना । उ०-वागन बागन उठना । जैसे,= उसकी झूठी बात में और भी तलवों से अाग आग लगी हैं (शब्द॰) । (५) महेगी फैलाना । गिरानी होना । लग गई । पानी में भाग लगाना=(१)ऐसी अनहोनी बात कहना जैसे,--(क) बाजार में तो आजकले अाग लगी है। (ख) जिनका होना सभब न हो । (२) अ स भव कार्य करना । सब चीजो पर तो आग लगी है कोई ले क्या । (६) (३) जहाँ लड़ाई की कोई बात न हो इहाँ भी लडाई लगा वदनामी फैलना । जैसे,--देखो चारो शोर आग लगी है, देना । पेट की आग = मूख । जैसे,—कोई दात ऐमा है जो पेट संभलकर काम करो (७' हटना । दूर होना । जाना । उ०--- की अग वुझाबे । पेट में आग लगना = भूख लगना । जैसे - कभी यहाँ से तुम्हे प्राग भी लगेगी (स्त्री॰) । (८) किसी इस लडके के पेट में सवेरे से ही प्राग लगती हैं। मुह में आग तीव्र भाव का उदय होना । जैसे,—उसे देखते ही हृदय मे लगना मरना । जैसे,—उसके मुह में कव अगि लगेगी । (शवदाह के समय मुर्दे के मुंह में आग लगाई जाती है । ) आग लग गई। 6 सत्यानाश होना। नष्ट होना । जैसे,---अाग लगे तुम्हारी इस चाल पर ( यह मुहाविर स्त्रियो मे अधिक प्राग लगे मेह मिलना या पाना = तात्र पर किसी काम का प्रचलित हैं। वे इसे अनेक अवसर पर बोला करती हैं, कमी चटपट होना । उ० --याके तो अजु ही मिलौं कि ग्ररि जाऊ चिढ़कर, कभी हावभाव प्रकट करने के हेतु और कभी यो ही ऐसे । अागि लागे मेरी माई मेहू पाइयतु है-केशव ग्र , वोल देती हैं) जैसे,—(क) अगि लगे मेरी सुध पर, क्या करने भा० १, पृ० ६६ । आग पर अग मेलनी =जले को जनता । आई थी, क्या करने लगी । (ख) माग लगे, यह छोटा मा दु ख पर दु ख देना । उ०-विरह अागि पर मेले अागी । विरह लडका कैसा स्वाँग करता है । (ग) अाग लगे, कहाँ से मैं इसके घाव पर धाव वजागी --जायसी ग्रे ०, पृ० १०६ । पास आई। आग लगाना=(१) प्राग से किसी वस्तु को यौ०---आगजंत्र= तोप ।-(हिं०)। अागबाण = अग्निबाण । जलाना । जैसे,--उसने अपने ही घर में आग लगा दी। आग लगन= हाथी का एक रोग जिससे उसके सारे शरीर में (२) गरमी फरना । जलन पैदा करना । जैसे,—उस दवा ने फफोले पड़ जाते हैं। तो बदन मे आग लगा दी। (३) उद्वेग वढाना । जोश आग --क्रि० वि० [हिं०] दे॰ 'गे'। उ०--चित डोले नहि बढाना। किसी भाव को उद्दीपित करना। भड़काना । ४ खूटी टरई पल पल पेखि अाग अनुसरई ---जायसी (शब्द०)। ईष्र्या उत्पन्न करना। ५ क्रोध उत्पन्न करना । ६ चुगली भाग -सज्ञा पुं० [सं० अग्न, प्रा० अग्ग] १ दे० 'अगि' । उ० करना । जैसे,—उसी ने तो मेरे भाई से जाकर आग लगाई है। तू रिसभरी न देखेसि आगू । रिस महँ को कर भयउ सोहागू ।७ बिगाडना । नष्ट करना । जैसे,—जो चीज उसे बनाने को । जायसी अ ०, पृ० ३७ । २ ख का अगौरा या अगला हिस्सा । दी जाती है, उसी में वह अगि लगा देती है। (स्त्री)। उ०-जोरी भली वनी है उनको, राजहसे अरु काग। सूरदास ८ फूकना । उहाना। वरवाद करना । जैसे,—वह अपनी प्रभु ऊख छाँडिक, चतुर'च चोरत अगि |-- सूर0, १०॥३६५२ । सारी सपत्ति में आग लगाकर बैठा है। ६. खूब धूमधाम | ३ हल के हरसे की नोक के पास के खड्डे जिनमें रस्सी अटका करना । बड़े बड़े काम करना। (व्यंग्य) जैसे,—तुम्हारे कर जुआछे से वंधते हैं। पुरखो ने विवाह में कौन सी अाग लगाई थी कि तुम भी आगजनी--सज्ञा स्त्री० [ हिं० आग +फा० जन+हि० ई (प्रत्य॰)] लगाओगे । आग लगाकर पानी को दौडाना= झगडा उठा: अग्निकांड । उपद्रवियों द्वारा लगाई जानेबानी आग । कर फिर सबको दिखाकर उसकी शाति का उद्योग करनी । आग आगडा- संज्ञा पुं० [सं० अ नहीं +f० गाढ़= पुष्ट] ज्वार इत्यादि भी न लगाना = बहुत तुच्छ समझना । जैसे,-उससे बोलने की वह बाल जिसके दाने मारे गए हो । की कौन कहे, मैं तो उसको आग भी न लगाऊँ। (जी०)। आगण-सज्ञा पु० [स० अग्रहापण] अगहन । मार्गशीर्ष । (डि०) । आग लगने पर कुआ खोदना=(१) कोई कठिनाई कार्य शा पडने आगत-वि० [सं०][ली० मागता] अयि हुग्रा । प्राप्न। उपस्थित । पर उसके करन क साध उपाय छाह बहा लवी चौद्ध। युक्ति यी० - अभ्यागत । अागतपतिका । क्रमागन। स्वागत । देागेन । लगाना । (२) ऐन मौके पर कोई कार्य करने लग जाना। गतागत । तयाग । माग लगाकर तमाशा देखना = झगडा या उपद्रव खड़ा करके आगत सज्ञा पुं० मेहमान । पाहुना। अतिथि। अपना मनोरजन करना । आग लेने आती = अकिर फिर थोडी गित सज्ञा पुं० दे० 'आपात' । जैसे,—प्रागत कर। देर में लौट जाना । उलटे पाँव लौटना । थोड़ी देर के लिये प्रगतत्व--संज्ञा पुं० [स०] उरम । मून । उद्गम (को०] ।