पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४८३

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अखुिकरीष अगिता मूमाकानी लता । आलुग, आबूपत्र, खुभुक् = बिनार। खु विशेष -इमका प्रारभ कथा के किसी अश में कर सकते हैं, पर रथ = आखुवाहन = गण श ।। पीछे से पूर्वापर सवध खुन जाना चाहिए। इसमें पायो की २ देवताल । देवहाड । ३.. सूअर । शूकर । ४ कुदाल । फावडा बातचीत बहुत लबी चौडी नहीं हुआ करती । चूकि कथा [को॰] । ५. चोर (को०)। ६ कृपया । कजूस [को०] । कहनेवाला कवि ही होता है और वह पूर्व घटना का वर्णन खुकरीष—मक्षा पु० [सं०] वाल्मीक [को०] । करता है, इससे इसमें अधिकतर भूत कातिक क्रिया का प्रयोग खुघात-सज्ञा पुं० [सं०] मूस पकडने यो मारनेवाला । मुसहर [को०] । होता है, पर दृश्यो को ठीक ठीक प्रत्यक्ष कराने के लिये कभी खुपाषाण -- सज्ञा पुं० [सं०] १ चु वक पत्थर । २ सखिया कमी वर्तमानकालिक क्रिया का भी प्रयोग होता है । जैसे,—| नामक विष । सूर्य डूब रहा है, ठळी हवा चल रही है, इत्यादि । अाजकल के श्रखवाहन---संज्ञा पुं० [सं० खुवाहत] गणेश । उ०—-अभिलाप नए ढंग के उपन्यास इसी के अतर्गत ग्रा सकते है । लाख लाहन समुझि राखु खुवाहन हृदय ।-भिखारी० ग्र०, | ४ जवाव । उत्तर को०] । ५ भेदक धर्म कि०' । ६ प्रर्वधक भा० १, पृ० १ । काव्य का अध्याय या मर्ग [को०] । ७ पौराणिक कथा [को०] । आखभुक् सज्ञा पुं० [स०] विडाल । विनार [को॰] । ऋख्यिानक-संज्ञा पुं० [म०] १ वर्णन । वृत्तात । वयान । १ कथा । श्राखूविषहा--संज्ञा पुं० [म०] देवताली लेता [को॰] । किस्सा | कहानी। ३ पूर्ववृत्तात । कथानक । आखेट--सज्ञा पुं० [सं०] अहेर । शिकार । मृगया । प्राख्यानको संज्ञा स्त्री० [म०] इद्रवज्रा तथा उपेंद्रवज्रा के मेन से आखेटक–संज्ञा पु० [सं०] शिकार 1 अहेर । निमित छदविशेप (को०) । आखेटक-वि० [सं०] शिकार करनेवाला। शिकारी । अहेरी । आख्यानिकी- सज्ञा पुं० [सं०] दडक वृत्त के भेदों में से एक जिसके शाखेटिक-वि० [स०] १ कुशल शिकार करनेवाला । २ भयानकी। विपम चरण में , त, जे, ग, ग, और सम में ज, त, ज, ग डरावना (को॰) । ग हो । उ०—गोविंद गोविद सदा रटौ जू! अमार से मार तबै आखेटिक--संज्ञा पुं० १ शिकारी। २ शिकारी कुत्ता [को॰] । तरी जू । श्रीकृष्ण राधा भजु नित्य भाई । जु भत्य चाहो अपनी श्राखेटो-वि० [सं० श्राखेटिन][वि० सी० आखेटिन] शिकारी 1 अरे । भलाई (शब्द०) । अखिोट--संज्ञा पु० [स ० क्षोट] अखरोट । विशेष---इसके विरुद्ध अर्थात् इनके विपम चरण का लक्षण नम श्राखोर--सज्ञा पुं० [तु० खोर] १ जानवरो के खाने से बची। चरण में प्राने ग्रौर सेम चरण का लक्षण विषम चरण में हुई घास या चारा 1 पखोर। २ चरनी । ३ जानवरो के ग्रावे, तो उस वृत्त को व्यानिकी कहेगे । पानी पीने का हौद 1४ कूडा करकट। ५. निकम्मी वस्तु ।। अख्यिापक–वि० [म०] [ीप श्राख्यायिको] कहनेवाला । सडी गली चीज । अख्यिायक-सज्ञा पुं० दूत । मुहा०-- अखिोर की भरती =(१) निकम्मों का समूह । (२) । अख्यिापन--संज्ञा पुं० [सं०] प्रकट करना । प्रकाश करनी । कहना। निकम्मी चीजो का अटाला । कथन । अखिोर-वि० १ निकम्मा । वेकाम् । २. सडा गला । रद्दी । ३. प्रख्यायक–वि० [सं०] बतानेवाला । सूचना देनेवाला (को०] । | मैला कुनै ना ।। आख्यायक---सज्ञा पुं० १ दूत । २ नेता 1 प्रवक्ता (को०)। आख्या- सज्ञा झ° 1 स ०] १ नाम २ कति ! यश । ३ विवरण। प्रख्यायिका--संज्ञा स्त्री॰ [4] १ कथा | कहानी। किगा। २ व्याख्या । ४ प्राकृति । चेहरा [को०] । ५. सौंदर्य । गरिमा कल्पित कथा जिससे कुछ शिक्षा निकले । ३ एक प्रकार का [को०) । अाख्यान जिसमे पात्र भी अपने अपने चरित्र अपने मुह में कुछ प्रख्यात--संज्ञा पुं० [सं०] १ तिङत क्रिया 15 राजवंश के लोगो कुछ कहते हैं । का वृत्तात । ३ प्रयाणकाल का अनुमानिक सूचन [को०) । आख्यात-वि ० १ प्रसिद्ध । नामवर । विख्यात । २ कहा हुअा।। विशेष--प्राचीनो में इसके विपय में मतभेद हैं । अग्निपुराण के उक्त । अनुसार यह गद्य काव्य का वह भेद है जिसमें विस्तारपूर्वक कर्ता प्रख्यातव्य-वि० [सं०] वर्णन करने योग्य। कहने योग्य । बयान को वशप्रपा, कन्याहरण, संग्राम वि रोग और विपत्ति का | करने लायक । वर्णन हो, रीति, आचरण और स्व व विशेप रूप में दिखाए अाख्याता---वि० [स० स्यात] कहनेवाला । उपदेशक । शिक्षक गये हो, गद्य मरल हो और कही कही छद हो। इसमे परिच्छेद [को॰] । के स्थान पर उच्छवास होना चाहिए । वाग्भट्ट के मत से वह आख्याति----संज्ञा भी० [सं०] १ नामवरी । ख्याति । शुहरत । २ गद्य काव्य जिसमे नायिका ने अपना वृत्तात श्राप कहा हो, कथन । भविष्यद्विपयो की पूर्वसूचना हो, वान्या के अपहरण, समागम आख्यान--सज्ञा पुं० [सं०] [वि० स्यात, प्रख्यातव्य, आय] और अभ्युदय का हाल हो, मित्रादि के मुह से चरित्र कहनाए १. वर्णन । वृत्तात । बयान । २ कथा। कहानी । किस्सा। गय हो और वीच बीच में कही कही पद्य भी हो। ३ उपन्यास के न भेदों में से एक है वह कथा जिसे कवि ही आख्येय-- वि० [सं०] दे० 'प्रारुतिव्य' । कहे, पात्रो से न कहलावे । आगता–वि० [सं० भागन्तु] आने की इच्छावाला [को०] ।