पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४७२

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7 टसाँe ४०५ आँधी ४. मुहा०.---"टी काटना = गिरह कार्टन । जेब काटना । सूखना= भूख के मारे बुरी दशा होना । जैसे,—-कने से श्र"टसँाट- संज्ञा स्त्री० [हिं० ट+सदना] १. गुप्त अभिसधि । कुछ खाया पीया नही है, ते सूख रही हैं । साजिश । २ मेलजोल ।। अतिकट्टू-सच्चा पुं० [हिं० त+फटना ] चौपायो का एक र । ओंठी-संज्ञा स्त्री० [म० अष्टि, प्रा अट्ठ] १ दही, मलाई आदि । जिसमे उन्हें दस्त होता है। वस्तु का कछा । थक्का। जैसे-उनके मुह से कफ की सुखी अतर -सबा पुं० [सं० अन्तर = भीतर 1 खेत का उतना , अाठी गिरती है । २ गिग्ह । गाँठ। ३ गुठली । वीज । ४. जितना एक बार जीतने के लिये घेर लिया जाता है। नवोढा कै उठते हुए स्तन । अाँतर- सज्ञा पुं० [स० अन्तर = दो वस्तुओं के बीच का स्थान] १ । डा--संज्ञा पुं० [सं० अण्ड] अ डकोश । । पान के भीटे के भीतर की क्यारियो के बीच का स्थान । श्राडी--मज्ञा स्त्री० [सं० अण्ड] १ अ टी । गांठ । कद । उ०—सेंधा आने जाने के लिये रहता है। पासा । २ ताने में दोनो ।सर । लोन पर सब हाँडी। काटी कद मूर के डी --जायसी की खुटियो के बीच की दो लकडियाँ जो थोडी थोडी दूर । ग्रं०, पृ० २४५। २ कोरहू की जाट का गोला, सिरा वा सायी अलग करने के लिये गाडी जाती हैं (जुलाहे)। ३ मिन्नता । मूट । ३ वैलगाडी के पहिए के छेद के चारो श्रोर जडी हुई अतर । उ०---जीव ब्रह्म अतिर नहिं कोय । एक रूप सपथ लोहे की मामी । वद । होय ।--दरिया बानी, पृ० १६ । ४ दूरी । फासला । उ० आड --वि० [सं० अण्ड = अण्डकोश] जिस ( चौपाए ) के अ डकोश अतिर जनु हो तोहार । तेंदुर का उर हार। वच।* ने कूचे गए हो । अडकोशयुक्त । पृ० ३३० । । विशेष -यह शब्द विशेष कर वैन के लिये ही प्रयुक्त होता है । ।। है । आँतरा--सज्ञा पुं० [हिं० शा तर]० 'अँतर' । उ०—साध स्वाँग श्राड बँड खाना--क्रि० अ० [हिं० अंबड अथवा डाँड = मॅड+ अतरा जैसा दिवस और रात ।-दरिया० वानी, पृ० ३५ । बाध] इधर उधर फिरना। इधर उधर हवा खाना। आँटू-सज्ञा पुं० [सं० अन्दू = वेडी] १ लोहे का कडा । बेडी । उ० चक्कर खाना । हुले इतै पर मैन महावत लाज के अदू परे जऊ पाइन । विशेष-फूल बुझीग्रल के खेल मे जब लडको के दल बँध जाते। पदमाकर कौन कहीं गति माते मतगनि की दुखदाइन । हैं और दोनो दलो के महतो को आपस में किसी फून को पद्माकर ग्र०, पृ० १३० । २ बँधने का सीकड । उ । निश्चित करना होता है, तब वे अपने अपने दल के लडको को अद् सौं भरे जद्यपि तुब गज नैन । तदपि चलावते रहते यह कहकर इधर उधर हटा देते हैं कि 'अडिबाँड खो ' । झुकि झुकि चोट सैन ।--स० सप्तक, पृ० १६३ । लडके 'अडि बाँड' कहते हुए इधर उधर चले जाते हैं और फिर श्राध-सज्ञा स्त्री० [सं० अन्व] १ अँधेरा । धुघ । २ रतौंधी । ३ । फून बुझने के लिये आते हैं। अाफत । कष्ट । जैसे,—तुम्हे वहाँ जाते क्यो अँघि आती है । त--सज्ञा स्त्री० [सं० अन्त्र] प्राणियो के पेट के भीतर वह लवी क्रि० प्र०—आना । नली जो गुदा मार्ग तक रहती है। आध -वि० १ अधा । नेत्रहीन । २ कोमाञ्च । मोहित । उ । विशेष--खाया हुआ पदार्थ पेट में कुछ पचकर फिर इस नली में। सकर को मन हरयौ कामिनी, सेज छाडि 'भू सोयौ । १ जाता है जहाँ से रम तो अग प्रत्यग मे पहुँचाया जाता है। मोहिनी आइ अँध कियौ, तब नख ते रोयौ ।-सूर०, ११४३ और मल यो रद्दी पदार्थ बाहर निकाला जाता है । मनुष्य की अाँधना-- क्रि० अ० [हिं० अघी ] वेग से धावा करना। टूटना प्रात उमके डील में पाँच या छ गुनी लवी होती है । मास भक्षी । उ०—भुसुडिय और फुवडिय साधि । परे दुई मोरन ते ५ जीवो की प्रति शाकाहारियो से छोटी होती है । इसका कारण अँाधि ।-(शब्द)। शायद यह है कि मास जल्दी पचता है। धर-- वि० [स० अन्ध, प्रा० अ धल] [स्त्री० घरी] अधा । उ मुहा०.- आत उतरना-एक रोग जिसमे अति ढीला होकर नाभि सूर कूर, अधरौ, मैं द्वार परयौ गाऊँ । सूर०, १।१६६ ।। के नीचे उतर अाती है और अडकोश मे पीडा उत्पन्न होती है । । यौ॰—ा घर अधुम्रा = अ धा। उ०—माया के वैधुमा अ प्रात को बल बुलना-पेट भरना । भोजन से तृप्त होना। अबुप्रा साधु जाने एह जाने एह बातें 1-सं० दरिया, पृ० १४१ बहुत देर तक भूखे रहने के उपरांत भोजन मिलना । जैसे,-- प्राधरा -वि० [सं० अन्व, प्रा० अधरग्र] [स्त्री० घरी] अघा अाज कई दिनों के पीछे अातों का वल खना है। प्रा ती को अधारभ--सज्ञा पुं० [हिं० अविर= अ घी (मूख) जैसा + आरम्भ वल खुलवाना-पेट भर खिलाना । तें अकुलाना, कुल अधेरखाता । विना समझा बुझो आचरण । उ०—करता। कुलाना, कुलबुलाना--भूख के मारे बुरी दशा होना । आते गले कीरतन, ऊँचा करि करि दम । जान बूझ कछु नही, यो । मे यानी–नाको दम होना। जजाल में फँसना । तग होना । अघारम |--कवीर (शब्द०)। जैसे,--इस काम को अपने ऊपर लेते तो हो, पर अतेि गले में अघी-सच्चा स्त्री० [सं० अन्व= अ घेरा, अ धा करनेवाली वडे वेग के आवेगी । ते मुह मे आना-दे० 'आते गले मे आना। हवा जिससे इतनी धूल उठे कि चारो और अंधेरा छा जाय प्रांतों में बल पडना--पेट मे बल पड़ना। पेट ऐंठना । अ धड़। म धबाव । जैसे,—-हँसते हँसते अातो मे बल पड़ने लगा । तें समेटना विशेष-भारतवर्ष में या घी का समय वैमन और ग्रीष्म है । भूख सहनी । जैसे,—रात भर अवें समेटे बैठे रहे। अवें त्रि० प्र०---माना ।उt --वन ।।