पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४६८

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में ख' ४०१ में खि में बना । जैवना । पमंद अता । ध्यान पर चढ़ना, जैसे,-- बह वस्तु तो तुम्हारी ग्रंाव में गडी हुई है। उ०—जाहु मले हो, कान्ह दाने प्रेग अग को मागत है हम यौवन । अखि इनके गडि लागन --नूर (शब्द॰) । कि की अों में घर करना=(१) प्राँस्य में बसना | हृदय मे म माना। ध्यान पर चढना । (२) किसी को मोहता या मोहित करना, जैसे -पहली ही भेट में उसने राजा की अाँखो में घर कर लिया। प्राणों में चढ़ना = नजर में जें बना। पाद आना । अतो मे चरवी छाना = (१) घम इ, वैारवाही या अमावधानी से मामने की चीज न दिखाई देना। प्रमाद से किसी वस्तु की और ध्यान न जाना, जैसे,—-देखते नही वह सामने किताव रात्री है, आँखो में चरबी छाई है ? (२) मदाय होना । गर्व में किसी की अोर ध्यान न देना । अभिमान मे चूर होना, जैसे,—प्राजकन उनकी श्रींखो में चरवी छाई है, क्यौ किमी को पहचानेंगे । 'खो में चुभना = (१) अखि में इँमना । (२) ग्रीख में खटकना । नजरो मे बुरा लगना । (३) दृष्टि में ऊँचना । ध्यान पर चढना। पसंद आना, जैसे,—तुम्हारी घडी हमारी आँखों में चुने हुई हैं, हम उमे विनातिए न छोड़ेगे । प्रो मे चुभना = (१) नजर में खटकना। बुरा लगना । (२) ग्रन्।ि म जैवता । पसद प्रोना । (३) श्री पर गहूरा प्रभाव डानना, जैसे,—उसके दुपट्टे का रग तो अम्।ि में चुना जाता है। प्रख मे चोय माना = चोट आदि लगने से प्रात: मै ननाई ग्राना । शाखा में अई पड 7 = मुँह का थक जाना । उ०-बीमाडियाँ झाई परी, पय निहारि नि इारि। जीभडियँ छान परयो, राम पुकारि पुकार |--कवीर (शब्द०)। शासों में टेसू फूलना, सों में तीसी फूलना, आलो में सरसो फूलना = चारो ग्रोर एक ही रग दिखाई पड़ना । जो वात जी में ममई हुई है, उभी का चारो ! दिमाई पड़ना । जो बात ध्यान में चढो है, चारों ओर बही नूझना । (२) नशा होना । तरग 35ना, जैसे- पीने ही अँखो में सर मो फू ने लगी । (३) घमई होना। गर्व से कमी को न देना। प्रों में तकलर या टेकुली चुभोना = अखि फोडना । ( स्त्रियाँ जब किसी पर उम की दृष्टि की वजह से बहुत कुपित होती हैं, तब कहती हैं कि 'जी चाहना है कि इसकी प्री में टे सुग्रा चुभा दू” ) । यो मे तराइट आना = अँख में कुढ़क ग्राना । तबीयत का ताजी होना । वो में धूल देता, घयो में धूल डालन = मरासर धोखा देना । भ्रम में डानना, जैसे,-7 मी तुम किताब ले गए। हो, अब हमारी प्रेम में बूल डानते हो। उ०--(क) हरि की माया कोड न जानै अँसि धूरि सी दीन्ह । लान ढिनि की भारी ताको पनि उढनिया कीनी । मूर (शब्द०) । (८) सोइ अव अमृत पिवति है मुरली, मवहिनि के मिर नासि । नियो छैडाई मक न सुन सुरज वैनु दूरि दै अँखि नूर (शब्द॰) । सो मे नाच = दे० अंत में फिरना' । सो मे नून देना = अँ; फोइन ।प्रह में नून राई = अँखें फूडें । ( स्त्रिया उन नोनो के ये कहती हैं जो उनके बच्चो को नजर लगाते हैं। किसी बच्चे की नजर लगने का मदेह होने पर वे उस का नाम लेकर ग्रौर बच्चे के चारो शोर राई नमक घुनाकर अग में छोड की हैं) । आखो में पालना= बडे मुला चैन में पाना । वडे नाइ पर से पा वन पोपण करना, जैसे,—जो लडके शो में पाले गए उन की यह दशा हो रही है । शो मे फिरता=पान पर चढ़ना । स्मृति में बना रहना, जैसे-उम की सूरत मेरी अँखो के सामने फिर रही है। शो में वरना = ध्यान पर चढ़ना । हृदय में समाना। किसी वस्तु का इतना प्रिय लगना कि उम का ध्यान हर समय चित्त में बना रहे, जैसे,—उस की मूति तुम्हारी आँखो मे बम गई है । प्रो मे बैठा=(१) नजर मे गडना । पसद अाता। (२)मा यो पर गहरा प्रभाव डालना। अँखो मे बँसनाचटकीले रग के विषय में प्राय कहते हैं कि 'इम कपडे का राग तो अखिो में बैठा जाता है ।') । आखो मे भी घुटना= असा पर भाग का खूब नशा छाना । गहागड्इ नशा होना। शो में रा रा (१) लाड प्यार से रन । प्रेम से रसना । मुख से रखना, जैसे,—जाप निश्चित रहिए मैं इस लड़के को प्रों में रखेगा। उ०-अखिान मे सखि राखिावे जोग इन्हें किमि के वनवास दियो है ।-नुन मी ग्र०, पृ० १६६ । (२) सावधानी से राना 1 यत्न श्री र रक्षापूर्वक रसाना । हिफ, नत्र मे रखाना । जैसे,—मैं इस चीज को अपनी आँखों में रखेंगा, कही इधर उध्रर न होने पाएगी । यो में रान फटना = किमी कष्ट, fवता या व्यग्रना से सारी रान जागने बीत ।। सारी रात नीद न पडना । वियोग में तेइ (न। 1 यो में रात काटना = किमी कष्ट, विना या प्रयता के कारण जाग कर रात बिताना । किसी कष्ट, विना या प्रग्नता के कारण रात भर जागना, जैसे-बच्चे की बीमारी से कने प्रावों में रात काटी । अहो मे शी न हो। ='विन १ को रन II हो । दिन में मुरौवन होना, जैसे,—उपकी आँखो मै शील नहीं है, जैमें होगा, वे में अपना रुपा लेगा। प्रा में पाया = हृदय में बेमना । ६पान पर चइ रहे। विन में स्नर । मना रना, जैसे,-दमयती को अँखों में तो न न 'समाए थे, उ ने सभा मे प्रौर किमी राजा की ओर देखा तक नही। असा मोडा= ६० 'अँखा फेरना'। प्रा या राना=(1) न मर राना । चौ रुसी 'करना, जैसे-देखना, इम न्नड के पर मी मॅब 'रसाना ‘कही 'मागने न पावे ।--(२) चाह रखना । इच । राना, जैसे,—हम भी उस वस्तु पर अँखा रखने हैं। (३) असर राना। भ नाई की अाशा राना, जैसे,—उस कठोरहृदय से कोई क्या अब रखे । प्रा डा लगा= नीद लगना। झाकी ना1 सोना । उ०-जब जब वे सुधि कीजिये, तब त । सत्र सुधि जहि । अखिनु अखि लगी रहे, अवै लागति नहि ।विहारी र०, दो० ६२, जैसे,—आँख लगती ही थी कि तुमने जrr दिई । (२) प्रीति होना। दिन नभनी । उ--- (क) धार लगै तरवार लगे पर काहू से काह की अखि नगे ना |--(शब्द॰) । (ख) ना खिन टरत टारे, अखि न लगत पल, अखिन लगैरी प्रम दर सोने से '[---देव (शब्द॰) । (३) टकटकी लगना ! दृष्टि जमना, जैसे-हमारी