पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४६६

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अखि अच्छा न लगना, जैसे,--ये बातें हमे एक अखि नहीं भाती । प्रख नाक से डरना = ईश्वर में डरना जो पापियों को प्रधा और नकटा कर देता है । पाप में इरना जिममे अ व ना जाती रहती है, जैसे--'भाई, मुझ दीन से न डर तो अपनी अखि नाक से तो डर । अखि निकालना = अखि दिखना । क्रोध व दृष्टि से देखना, जैसे,—इम पर वया अखि नि का नते हो, जिसने तुम्हे कुछ कहा हो उमके पास जाग्रो ---(२) अब के हेलें वो छुरी से काटकर अन्दग कर देना । ग्राख फोहना,जैसे - उम दुप्ट सरदार ने शाह अनम की ग्राख निकाल ली। अखि नीची करना = दृष्टि नीची करना । सामने न ताकेना जैसे-वहाँ अब नीची किए चला जा रहा था । (२) लज्जा या से कोच से बराबर नजर न करना । दृष्टि न मिलाना । जैसे,कब तक अखे नीची किए रहोगे ? जो पूछते हैं, उसका उत्तर दो । अखि नीची हो १ = सिर नीचा होना। नज्जा उत्पन्न होना । अप्रनिष्ठा होना, जमे,-कोई ऐसा काम न करना चाहिए जिस प हर अादमी के पामने ग्राखे नीची हो । प्राय नीली पीली कर = हुन कर नः । तेव' बद ननः । 'प्रेज दिख नाना । श्रॉस पटपटा जा । - (१) ग्राख फू? जाना (त्रियाँ गाली देने में प्रकि बोनी हैं) । (२) नवधिक भूत या प्याम से व्याकुल होना । श्रोत पट्टम होना = प्र व फू! जान। अाँख पडा =(१) दृष्टि परना। नजर पड़ना, जैसे,—गयोग से हमारी प्राव उमपर पड़ गई नहीं तो वह वि कुन पास प्रा जाता । (२) ध्यान जान । कृपादृष्टि होना, जैसेगरीबो पर किसी की आख नही पडती । (३) चाह की दृष्टि होना 1 पाने की इच्छा होना, जैने,-जमती इम किताब पर बार वार अाच पड़ रही है ।(४)कुदृष्टि पडना । घ्यान जाना, जैथै,-जिम वरतु, पर तुम्हारी शाख पई, भला बह रह जाय ? अखि पथराना = पलक का नियमित गति से न गिरना और पुतली की गति का मारा जाना । नेत्र स्तन्ध होना (यह मरने का पूर्व क्षण है), जैसे-() अब उनकी श्रा से पथरा गई हैं, और वोनी भी बद हो गई है । (ख) तुम्हारी राह देखते देखते ग्रा से पधरा गई। अखिों पर अाइए या चैठिए = दिन के साथ प्राइए । सादर पधारिए । (जब कोई बहुत प्यारा यी वडा प्राता है या अाने के लिये कहता है, तव लोग उसे ऐसा कहते हैं ) । अखिों पर ठिकरी रस लेना=(१) जान बूझकर अनजान मनना । (२) रुख।ई करना । वेमुवती करना । ल में करना । (३) गुण न माननः । उपकार न मानना । कृतघ्नता करना । (८) लज्जा व्रो देना । मिर्लज्ज होना । वेह होना । अखिों में पट्टी वांपैना = (१) दोनो आखों के ऊार कपडा ले जाकर सिर के पीछे बाँध- जिमसे कुछ दिखाई न पड़े । अँखो को ढकना । (२) अा' ख बद करना । ध्यान न देना, जैसे--तुमने खूब अखो पर पट्टी बाँध ली है कि अपना भला बुरा नही मूझना । अखिो पर परदा पडना = अज्ञान का अधकार छाना। प्रमाद होना । भ्रम होना, जैसे,तुम्हारी आखो पर परदा पडा है, सच्ची बात क्यो मन में वैसेगी । (२) विचार का जाना रहना । विवेक का दूर होना, जैसे,-क्रोध के समय मनुष्य की अँखिो पर परदा प्रड जाता है। (३) कम नोरी से आँखों के सामने अँधेरा छाना, जै मे--भू पास के मारे हमारी प्राखो पर परदा पड़ गया है। आखों पलको का चोझ नहीं होता = (१) अपनी चीन का रखना भी नही मालूम होती (२) अपने कुटुंबियो को खिलाना पि ।। नही खलती । (३) काम की चीज महुँ । नही मी नूम होती अखिों पर विठा = वहुत आदर सत्कार करना । श्राव उगन प्रीतिपूर्वक व्यवहार करन!, जैमे--वह हमारे घर तो । हम उन्हें खो पर बिठावेगे । यो पर रख ना = वहुत f कर के रखना । बहुत शारराम से रखना, जैसे,—ग्रा । नि५१ रहिए, मैं उन्हें अपनी प्राखो पर रखूगा । अखि पसारना फैलाना= दूर तक दृष्टि वढाक र देखना। नजर दौड़ाना । " फटता = चोट या पीडी से यह मालूम पडना कि अखे नि । पडती हैं, जैसे,—सिर के दर्द से अखे फटी पड़ती हैं। (२) (' श्रा बढ़ना । अाख की फ क का फैनन। उ०--दौरत - ही मे थकिए, थहरे पम, अवित जैघि मटी सी । होत घरी ५ छीन खी कटि, और है पाप मुबास अटी सी । हे रघुनाथ वि तोकिवे को तुम्हे प्राई ने खेतन सोच पट्टी । मैं न जनति हान कहा यह काहे ते जाति है अखि फटी सी। रघुनाय(शब्द०)। अखि फड रुना = अाख की पलक का बार व हिना । वायु के सवार से ख की पलक को बार बार के पड़ना । (हिनी या वाई शख वे पडव ने से रोग 7 [वी शू अशुभ का अनुमान करते हैं) । उ० सुनु मरा यात फुर तोर दहिन अखि नित फरकइ मोरी ।—मानस, २२० । अखि फाड कर देखना = खूब अखि खोलकर देखना । उत्सुकता देखना । जैमै उ र क्या है जो अखि फाड फड कर देख रहे है आँखे फिर जाना=(१) नजर वद न जाना । पहले की । कृपा या स्नेह दृष्टि न रहना । वेमुवती । 'नाना, जैसे जवमे थे हम लोगो के बीच से गए, तवसे तो उनकी अ ही फिर गई ।--(२) चित्त में विरोध उत्पन्न हो जाना । मे बुराई अाना । चित्त में प्रतिकू उता आना, जैसे,—उस अखें फिर गई वह बुराई करने से नहीं चूकेगा । अ फूटना=(१) अाँख का जाता रहना। अखि की ज्योति । नष्ट होना । (२) अाँख रहते कुछ दिखाई न पड ना, जैसे तुम्हारी क्या अाँखें फूटी हैं, जो सामने की वस्तु नहीं दिख। देती । (शाख एक बहुत प्यारी वस्तु है इपी में स्त्रिया” प्र, इस प्रकार की शपथ खाती हैं कि मेरी अखे फूट जायें, ५ मैंने ऐसा कहा हो) (३) बुरा लगना । कुढ़न हो । उ० (क) उसको देखने से हमारी आंखे फूटती हैं । (ख) किमी सुखी देखकर तुम्हारी शाखें क्यों फटती हैं । आँख फेर । (१) निगाह फेरना । नजर बदलना। पहले की सी कृपा स्नेहदृष्टि न रखना। मित्रा तोडना । (२) विरुद्ध होना प्रतिकून होना । वाम होना । (३) अनुकून होना । कृ करना । उ०.- फेर दी “ख जी प्राया जैसे रसील बौराया --गीतगुज, पृ० ४० | प्राव फैला 1 = 21 वर्य से स्तब्ध है न। अपचर्यचकित होना । अाँध फैला १ = दष्टि है 31न । द पसारना। देर तक देख ना । नजर दौडना । १ व फोड । (१) श्राखो को नष्ट करना । अबो की ज्योति का नाश करने (२) कोई काम ऐसा करना जिसमे अखा पर जोर पड़े


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