पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४६४

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अखि चक्षुएन। टेकने वाली वस्तु या हि । अाँखो की 85 क = अत्यंत प्यारा व्यक्ति या वस्तु ! अाँख की पुतली = अब के भीतर कनिया और नेम के बीच का रगीन भूरी भिल्ली का वह भाग जो मफेदी पर की गोन काट से होकर दिखाई पड़ता हैं । इमी के बीच में वह तिने या कृशनारा दिखाई पड़ता है जिसमें सामने की वस्तु का प्रतिवित्र झनक्ता है। इसमें मनुष्य का प्रतित्रित्र एक छोटी पुतली के समान दिखाई पडना है, इसी से इमे पुलली कहते हैं। (२) प्रिय व्यक्ति । प्यारा मनुष्य । जैसे,—वह हमारी श्रीख की पुतली है, उसे हम पाम ने जाने न देंगे। प्रॉस की पुतली फिरना == अाँख की पुतनी का चढ़ जाना । पुत नी का स्थान बदलना । अव । पथराना ( यह मरने का पूर्व क्षण हैं )। अब की बदी भी के आगे = किसी के दोप को उसके इष्ट मित्र या माई बधु के सामने ही कहना। अखि को । सूइयाँ निकालना= किमी काम के कठिन और अधिक भाग के अन्य व्यक्ति द्वारा पूरा हो जाने पर उसके शेप अल्प और मरल भाग को पूरा करके सार फल लेने का उद्योग करना, जैसे,—इतने दिनो तक तो मर मरकर हमने इनको इतना दुरुस्त किया, अब तुम अाए हो अाँप की मुइयां निकालने । विशेप-इम मुहावरे पर एक कहानी है । एक राजकन्या कर विवाहू बन में एक मृतक से हुआ। जिसके सारे शरीर में सूईयाँ चुनी हुई थी। राजकन्या नित्य वैठकर उन सूइयो को निकाला करती थी। उसकी एक लीडी भी साथ थी जो यह देखा करती यी । एक दिन राजकन्या कहीं बाहर गई । लौडी ने देखा कि मृतक के शरीर की सारी सुइयां निकल चुकी हैं, केवल अखिो की बाकी हैं । उमने आखो की सूइयाँ निकाल हाली और वह मृतक जी उठा। उस लौडी ने अपने को उसकी विवाहिता बतलाया, और जब वह राजकन्या माई, तब उसे अपनी लौटी कहा। बहुत दिनों तक वह लौडी इस प्रकार रानी बनकर रही। पर पीछे से सब बातें खुल गई और राजकन्या के दिन फिरे । अखिो के आगे अंधेरा छाना= मस्तिष्क पर अाघात लगने या कमजोरी से नजर के सामने थोड़ी देर के लिये कुछ न दिखाई देना । बेहोश होना । मूच्र्छा अना। आँखों के आगे अंधेरा होना = समार मूना दिखाई देना । विपत्ति या दुख के समय घोर नैराश्य होना । जैसे,—-डके के मरते ही उनकी अखिो के अागे अंधेरा हो गया। पंखो के लागे उजाला होना= प्रकाश होना । ज्ञान होना । अखिो मे चमक अना= प्रसन्न होना । fौ के आगे चिनगारी छूटना= अाँखी का तिलम नाना । तिन् मिली लगना। मस्तिक पर ग्राघात पहुंचने पर चकाचौंध सी लगना। खिो के आगे नाचना=३०'अघो में नाचना'। अखि के प्रागे पलको की बुराई = किसी के इप्ट-मित्र के ग्रामे ही उनकी निंदा करना । जैसे---नही जानते थे कि झाँया के आगे पलको की बुराई कर रहे हैं, नव दाते खुल जायेगी ? आखिो के अागे फिरना= दे० 'अखिो में फिरना' । आखिो के आगे रखना=अखिो के सामने रखना। भाँखो के फोए अधिो के डेले। अखिो के डोरे आखो के सफेद डेको पर लाल रग की बहुत बारीक नसे । आँखो के तारे १४८ दे० 'ग्रयों के आगे चिनगारी छूटना' । । के म नाचना = दे० 'खो मे नाचना' । प्राको के सामने राना निकट रा ना । पाम में जाने न देना । जैप-इम तो लट वो अरु के सामने ही राना चाहते हैं। असो सामने होना = म मुख होना। आगे आना । वो से बैठना= ऋग्वो को वो देना । अघ्रा होना, जैसे, यदि यहीं रोना धोना रहा तो अग्ाि को वैठेगी (बी० अाँख पटकना = (१) अब टीमन) । अाँख किरकिरान उ०--कुमकुम मारो गु नान, भ६ जू के कृष्णनान, ज कहूगी कमराज से आँख खटक मोरी मई है लाने हो (शब्द॰) । (२) किसी से मनमुटाव होना । स तुलना (१) पलक खुलना । परम्पर मिनी या चिपकी हुई पन्नको अलग हो जान, जैसे,--(क) बच्चे की आँखों धो डालो दुल जायें ।--(ख) विरली के बच्चों ने भी अांखें न खोली । (२) नीद टूटना, जैम,--तुम्हारी आहट पाते ही में अाँखें खुल गई। (३) चेत होना। ज्ञान होना । भ्रम दूर होना, जैसे,—पश्चिमीय शिक्षा से भारतवासियों की प्रा खुल गई । (४) चित्त स्वस्थ होना । ताजगी अाना । है। हवास-दुरुस्त होना। तवियत ठिकाने अाना । जैसे,-- शरबत के पीते ही अाँखें खुल गई। आँख खुलवाना=( अख वनवाना । (२) मुसलमानों के विवाह की एक रीति ।। दुलहिन के सामने एक दर्पण रखा जाता हैं और वे उस एक दूसरे का मुंह देखते हैं । अत खोलना=(१) ।। उठाना। ताकना । (२) अँाख बनाना । ख का जाला मा हा निकालना । श्राख को दुरुस्त करना, जैसे,--डाक्टर यहाँ बहुत से अधों की शाखें योनी । (३) चेताना । सध करना। ज्ञान की गचार करना । वास्तविक बोध करने जैसे -- उस महात्मा ने सदुपदेश मे हमारी प्रा] ७. दी। (४) ज्ञान का अनुभव वरना । वाकिफ होना । माव। होना । उ०—-माई वंबु ग्रौर कुटुव कबीला झूठे मित्र गिनावे ख खोल जव देब वावरे ! नव सपना कर पावे ।--- (शब्द०)। (५) सुध होना। स्वस्थ होना, जैसेचार दिन पर ग्राज वन्चे ने प्राय पोती है । अपि गड़ना (१) "ख किरकिराना । अाए दुखना, जैसे-हमारी प्रा कई दिनो से गड़ रही है, श्रावेगी क्या ? (२) मा धेगना खि बैठना, जैम,--उमकी गडी गडी ग्रा में देखकर , उसे पहचान लेना । (३) दृष्टि जमना । टयाटकी व धना जैसे,--(क) किस चीज पर तुम्हारी में इतनी देर से गड़ हुई है । (य) उराकी में नो जिले में गटी हुई है, उ” इधर £धर की क्या प्रवर । (४) वी चाह होना।२।। की उत्कट इच्छा होना, जैसे,—जिन व+तु पर तुम्हारी प्रा। गडती है, उमें तुम निए विना नहीं छोइने । प्रापगडना = (१) टकटकी वाँधना। स्तव्ध दृष्टि में तानी । (२) • रखना। चाहना । प्राप्ति की इच्छा करना । जैसे,—-अब तुम इमपर श्राव गड़ाए हो, काहे को बने । ग्र में घुल = चार में होना । चूर चूर होना । दृष्टि नै दृष्टि मिलना, जैसे, घटों से पूर्व प्राधे घुन रही है। प्रा।