पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४६३

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अखि मकडियो की आठ अखें सिद्ध हैं ।। रीढवाले जीवों की अखें खोपडे के नीचे गड्ढ़ों में बडी रक्षा के पाथ वैठाई रहती हैं और उनपर पलक और बरौनी अदि का प्रायरा रहता है। वैज्ञानिकों का कथन है कि सभ्य जातियाँ वर्णभेद अधिक कर सकती हैं और पुराने लोग रंगों में इतने मेद नही फर सकते थे। अखि बाहर से लवाई लिए हुए गोल तथा दोनो किनारो पर नुवली दिखाई पड़ती है । सामने जो मफेद रवि की भी भित्ती दिखाई पड़ती है उसके पीछे एक अौर फिल । है जिसके बीचोबीच एक छेद होता है । इनके भीतर उमी में लगा हुशा एक उन्नतोदर काच के सदृश पदार्थ होता है जो नेत्र द्वारा ज्ञान का मुख्य कारण है, क्योकि इसी के द्वारा प्रकाश भीतर जाकर रेटिना पर के ज्ञानतनुओं पर कम वा प्रभाव डालता है। पय०-नोचन । नयन । नेत्र । ईधाग। अदित । दृक् । दृष्टि । अवके । विद्रोचन । वीक्षण । प्रेक्षण । चनु । यो०- उनींदी अखि = नीद से भरी वा । वह अप जिम में नींद अाने वेः लक्षण दिखाई पड़ते हो। फजी = नीती प्रार भूरी प्रॉस । विल्ली की मी अछि । फेंटीली प्रख = पाया करनेवाली अप । मोहित र नेवानी अz । गिलाफी अखि = पपोटो से ढकी हुई अग्नि, जसे ए बूतर की ! घचत झण= यौवन के उमग के कारण स्थिर न रवानेवाली अखि । चरवाँक आखि= चचल प्रख । चियर सी श्री रा=बहुन छोटी अखि । चोर भारा=(१) वह अखि जिसमें मुरमा या का जन मालूम न हो । (२) वह अप जो लोगों पर इम नरहू पडे nि मालूम न हो । चॅसी अखि = भीतर की ओर धंसी हुई अनि । मतवाली अखि = मट में भी अख। मदभरी से, रसभरी आँख = वह शाँख जिसमे भाव टपाता हो । रमीती अाज, शरवती = गुनावी ग्राख । मुहा०—असि = (१) ध्यान । लक्ष्य । जैसे, उनकी श्राप बुराई ही पर रहती हैं। (२) विचार । विवेक परख । शिनान। जैसे—(क) उमके आव नही है, वह क्या सौदा नगा । (ख) राजा के श्राख नही कान होता है । (३) कृपादृष्टि । दया भाव, जैसे,—व तुम्हारी वह अब नहीं रही। (४) सतति । सन । लडका वाला, जैसे—(क) सोगिन मर गई, श्रख छोड गई । (ख) एक आख फूटती है तो दूसरी पर हाय रखते हैं । ( अर्थात् जव एक २६ का मर जाता है तब दूसरे को देखकर धीरज धरते हैं और उनकी रक्षा करते है ।) (ग) मेरे लिये तो दोनों ग्रावे बराबर हैं। आप अना= प्रख मे नानी, पीडा और सूजन होना । श्रस उठ १ = अँछ अन । ग्राख में लाल और पीडी होना । झाँख उठानी : ताकना । देखना । सामने नजर करना । जैसे-त्रा उठाई तो चारो और मैदान देख पडा। ( } बुरी नजर में देना । बुरा बर्ताव करना । हानि पहुंचाने की चेष्टा करना । जैसे-- हमारे रहते तुम्हारी छोर कोई प्रख उठा सकता है ? अखि उठाकर न देखना = (१) घ्यान न देना । तिरस्कार करना, जैसे—(क) मैं उनके पास घटो वैठी रहीं पर उन्होने अख उठाकर भी नही देखा । (ख) ऐसी चीजो को तो हम शाख उठाकर भी न देते । (२) नागने न नारना । नाजा या मफोन गै वरपर दुटि न Tरना, जैसे--पर 'द र नो प्राव ही ऊपर नहीं उठाता, हर राम कार्य 1 | शांत नट जाना == (१) गुनी का पर पढ़ जाना } मा यिना ( य? मरने के मय होता है), ३ मे,--- उलट गई, अब 7 प्रा। है। (२) घमर से नगर उदन जाम।। अभिमन हो, जै--३ाने ही आन में 1 अ ३२ट गई। 1 ॐ ॥ न होना= नजा में 3 व 7 ने 'ए। 1 में न होना। नजर में दृष्टि नीचे रहना, ३,उग दिन में किर । प्र हमारे 7 मन ॐ ।। ६ । श्रां पर न उठाना = (१) नरजा या भर में नगर ३२ । । । १ ना | दन्टि नीची रन । प्रति प्रोट, पहा घोट =(१) नि मारो। होना । (२) नव ग्रनि । नपने न, तय उपा दूर, या नजदीक । वा फड आना = प्रधिर नने या जागने में एक प्रर यी पर होना । प्रौन का अ पा, गठि । पूरा = शृi धनवान । अनाठो मानदार । नः धनी जिम ऊध विनार या पर न , जैन--(क) गगन भेजे। यो प्राय: अंधा न प पू । (ग) जो छ । ३१ गए, वहीं यः गट। १४। नेगा । प्राँग का पटा होना=(१) ट हैन। । । देना । (कट होना । वध होना । न होना, जैन,-- उगी के मारे नौ हमारी फुल में न। पानी, यह। तर हमारी प्रा रा १।। । ।३। प्रो का मानन नुरानी = गह न तो रन।। च । । । २५ घोरी नी । अग्य का जाना= पूटना, जैन,-न। छात्र जनता में जानी रही। आप पा जाना = सा पो पुती पर एक सफेद किनी जिसके कारण धुध दि६ ना है । आप या इंस1 = मात्र का पट्टा । पा । वह उभा हुभा गइ भाइ जिसपर पुतली रहती है। साप या ताग= (१) 97 । तिन । पनौनिका । (२) वत TI: 27क्ति । (३) गवति । र का तिल == अव म पुत्र है ची नीच धोटा गोद तिन के बराबर का धा जिसमें मानने की येनु का प्रदि fप दियाई पड़ता है। यह पर्व में एक छेद है जिगने प्रान के भयमे पिछने परदे पा झापा र दिग्राः पद है । प्राध का तार । कनौनिका । प्राय का तेल निकालना=ग्न को कप्ट में 1। ऐसा महीने में ना निनन 7 पर बहुत जोर पडे, जैसे सीना रोना, विराना, पटना आदि। इ०- ने ४ा देंगे अाध का तिन चें, स ह । । जो निकानेंगे । - चोमे०, पृ० १७ । अग्यि फान सुला रहना :- सन रहना। माधान होना । होशियार रहनी | प्रति फा परदा = ग्रा है भीतर की झिल्ली जिउने र प्रकाश जाता है। अन्य फा पर्दा ६ठना=ज्ञानचक्षु । उनना । अज्ञान या भ्रम का दूर होना । चेत होना, जैसे-३ग 7 का परदा उठ गया है, अब वह ऐसी बातों पर विश्वास न करेगा। अखि पर पर्दा पनी = कुछ सुझाई न पनी । मोह त्रस्त होना । भाख की पानी ढल जाना= नज़ा धूर जाना। लाज में की जाता रहुन, जैसे--जिमको मात्र का पानी हुन गया है, वह चाहे जो फर डाले । ख का पानी मरना= दे० 'अब फा पानी ढलना' । प्रॉय की किरकिरी = माय का कांटा ।