पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४६

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ऐसे समस्त पदों का वर्गीकरण निम्नांकित तीन रूपो में किया जा चन शब्दों के उदाहरण यथाशक्ति दे दिए गए हैं जिनके प्रयोग में लंपगते सकता है। अथवा अर्धंगत विशेषता हैं। मुहावरों के उदाहरण भी, जहाँ अावश्यक (क) वे समस्त पद जिनमें प्रत्येक शब्द का पूरा पूरा अर्थ निश्चित है । है, दिए गए हैं। पुरानी हिंदी के प्रथा, यथा रासों आदि से, | शब्द और अर्थ के साथ उदाहरण भी दिए गए हैं। सभा के स्वीकृत ।। (ख) वे जिनमें अर्थगत दिशेपता सपृक्त है, पर सयुक्त शब्दो द्वारा। नियमों के अनुसार मूल विदेशी शब्दों की वर्तनी भी दी गई 'जिनकी व्याख्या की जा सकती हैं। है और व्युत्पत्ति में शीघ्र उच्चारण सूचित करने के लिये अक्षरों के । (ग) में समस्त पद, जो अपना प्रशस्त इतिहास होने के कारण नीचे विदी आदि भी लगाई गई है। जिन ग्रयों से शब्दचयन किया || विशेष अर्थ के वीवक हो गए हैं और विशेष व्याख्या की अपेक्षा करते गया है, उदाहरण भी उन्हीं से लिए गए हैं। शब्दसागर के अथ | हैं। ये सभी समस्त पद मूल शब्द के अनर्गत अकारादि कम से मन्दसागर के उदाहरण सक्षिप्त किए गए हैं, परतु ध्यान रखा गया है कि || में प्रस्तुत किए गए हैं । ऐसा करने मे संदर्भ की पूर्णता खडित न होने पाए। प्रसिद्ध एवं । मुहाविदो की स्वतत्र सत्ता स्वीकार की गई है और उन्हें मल या प्रचलित शब्दो के नए उदाहरण प्राय. नही रखे गए हैं, पर इस बात का ध्यान रखा गया है कि उदाहरण अर्थच्छाया के विशदीकरण के प्रधान शब्द के रूप मे ग्रहण किया गया है । लिये ही हो । व्युत्पत्तिनिर्देश के सबध में सामान्यतया जिन सिद्धातो का परिपालन । किया गया, है, वे निम्नाकित हैं। समितियों और मंडल द्वारा स्वीकृत इन तत्वो के आधार पर शब्द सागर की रचना हुई। इस कार्य में समा को ११ वर्ष का समय लगा है तथा । (क) जो शब्द संस्कृति में उपलब्ध हैं, उनकी व्युत्पत्ति संस्कृत तक सैकडो व्यक्तियों ने सहयोग प्रदान किया है। इसकी अपनी एक कहानी है। |' ही रखी जाय । सस्कृतेतर शब्दो को मूल स्रोत निर्दिष्ट किया जाय। (ख) हिंदी में कहाँ से शब्द आया, इसका उल्लेख हो । यदि वह । मूल सम्करण की प्रस्तावना भी इस नवीन संस्करण में दे दी गई फारसी आदि से आया हो और फारसी ने संस्कृत ग्रादि से ग्रहण किया। है जिससे मूल संस्करण वा सक्षिप्त इतिहास है। इस नवीन संस्करण हो तो दोनो का उल्लेख हुआ करे। उनकी सीधी व्युत्पत्ति के साथ का संपादन सरकारी अनुदान पर आधारित था। सरकार के अपने यह लिखा जाय कि हिंदी में यह शब्द इस अर्थ में सबसे पहले कब से । अलग विधि विधान होते हैं और सभा का अपना विधि विधान प्रयुक्त हो रहा है। भी है । इसलिये दोनो के ताल मेल के माध्यम से कार्य का रिभ और संचालन हुआ।। यद्यपि इस कोश के सपादन कार्य की पाँच वर्ष ' (ग) भिन्न स्रोत ( मुलधातु ) से आए हुए एकार्थवाचक ऐसे शब्दों में ही पूरा करना था, तो भी यह कार्य लगभग ११ वर्षों में पूरा हुआ । ' की व्युत्पत्ति में प्राय, सभी स्रोत दिए जायें । सभा को इस बात का खेद है कि वह निश्चित समय में कार्य पूरा न (घ) एक शब्द के कई अर्थ हो तो उनकी विभिन्न व्युत्पत्तियों की । कर सकी। किंतु उसे इस बात का सतोष है कि विलब से ही सही, खोज की जाय। यह महत्वपूर्ण काय सपन्न हुआ। इस कार्य की प्रगति की कुछ विस्तृत विवरण यहाँ उपस्थित करना अप्रासंगिक न होगा। | (ड) व्युत्पत्ति रपष्ट करने के लिये अपेक्षित उदाहरण सक्षेप में दिए जायें। १५ जून १९५४ को कोण कार्य प्रारभ हुआ भोर उसके कार्यालय का व्यवस्था की गई। यह कार्य १३ अप्रैल, १६५६ तक चलता रहा । (च) शब्दो की व्युत्पत्ति मुख्यत सस्कृत से दी जाय । इस अवधि के प्रथम वर्ष मूल हिंदी शब्दसागर के ६००० माब्दों पर शब्दसागर का व्युत्पत्ति भी विचारणीय और परिवर्तनीय ६स ।

  • पुत्पत्तिसाधन तथा अपभ्रश, हिगल, राजस्थानी, हिंदी आदि के नए मानी गई है और निर्देश के पहले हिदी या सस्कृत या अन्य का निर्देश ५

पुराने ग्रथों से ७२,६०० शब्दो का सकलन किय गया। किया गया है। उन शब्दो को, जिनकी व्युत्पति अप्राप्य है और जो भिन्न | उद्गम के हैभूखों के सबधवशात् देशी निदष्ट किया गया है । दूसरे वर्ष प्रथम वर्ष के संकलित शब्दको अक्षरक्रम से संयोजित किया गया तथा ३३,३६८ नए सगृहीत शब्दो का अयलेखन किया अप्रचलित और प्राचीन भादो के अर्थलेखन में केवल निर्देश करके अर्थ गया। संगृहीत शब्दो में ५,०६८ शब्द अनावश्यक होने के कारण ग्रादि की व्यवस्था की गई है । अर्थों में अनावश्यक विस्तार को रोका गया निकाल भी दिए गए और १०,००० शब्दों पर व्युत्पत्तिश धन का हैं और उसकी पुष्टि साहित्य के प्रयोग से की गई है। एसे तद्भव शब्द कार्य हुआ। मूल हिंदी शब्दसागर के ६,५११ शब्दों पर व्यत्पत्ति | का भी निर्देश किया गया है, जिनको अथ परिवर्तित हो गया है । साधने तथा अयसमधन कार्य भी किया गया। इस वर्ष से विभागीय के सुबघ मै यथासीघ्य उदाहरण दिया गया है। मादो के विविध, नवीन, समस्याओं पर विचारार्थ साप्ताहिक बैठकों की व्यवस्था आरभ मथ रखे गए हैं और विभिन्न प्रथा से पूरे सकत के साथ उदाहरण की गई। दिए गए हैं । जो अर्थ मुले में अस्पष्ट हैं उन्हें अधिक स्पष्ट किया गया है तथा तीसरे वर्ष, अर्थात् सवत् २०१३ विक्रमी में, पुराने सगहो त शब्दों मथ की भाषा सरल रखी गई है। शब्दार्थ म व्याख्या के साथ अत्यत पर मथलेखन काय चलला रहा। व्युत्पत्ति के क्षेत्र में १२,०३८ मावश्यक होने पर अंगरेजी शब्द भी देवनागरी लिपि में रखे गए हैं। व्युत्पत्तियाँ पूरी की गई। इस अवधि तक प० करुणपति त्रिपाठी