पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४५९

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प्रहल अहुठ अहुठ)--वि० [स० अध्युष्ठ या अर्धचतुर्थ प्रा० *प्रद्वअउत्य *ग्र द्वउ प्रहै--क्रि० अ० [सं० अस्ति, प्रा० अहइ> अहैं] है। उ०—अहै कुमार अध्यु प्रदु] माढे तीन । तीन और प्राधा । ३०--( क ) मोर लघु भ्राता ।-नानस, ३ । ११ । अहुइ हाथ तन-मरवर हिया कवन तेहि माँह-जायमी ग्र०, अहो--प्रव्य ०[सं०]एक अव्यय जिसका प्रयोग कभी मनोधन की तरह औगाह । पृ० ५० । अहुठ पैर वसुधा सब कीन्ही धाम अवधि । ग्रौर कभी करुणा, वेद, प्रशमा, हर्प र विस्मय सूचित करने विरमावन |--सूर (शब्द॰) । (ग) कबहू क ग्रहू5 परग करि के लिये होता है, जैसे, (सवोधन) जाहु नहीं, अहो जादू चले। बमुधा कबहु क दे हरि उन घि न जानी ।--पूर (श३ ०)। हरि जीत चले दिनही वनि वागे ।-केशव (शब्द०)। अहुत-संज्ञा पुं० [सं०] जप । ब्रह्मयज्ञ । वेद-पाठ । यह मनुस्मृति के (करुणा, खेद) अहो । कैसे दुख का समय है। (प्रशसा) | अनुसार पाँच यज्ञो में से है। अहो । धन्य तत्र जनम मुनीना 1-नुनी (शब्द०)। (हर्ष) अहुत--वि० १ विना होप किया हुआ । २ अविहित ढग से हवन अहो भाग्य ! अाप अाए तो । (विस्मय) दूनो दुनो वाढत सुपून किया हु प्रा ६ जिने हो न माग या शाहूत न मिली हो[को०] । की नि सा मे, अहो अनैद अनूप रूप काहू बेज वाल को । अहुर--संज्ञा पुं० [स०] जठराग्नि [को० । पद्माकर (शब्द०)। कभी कमी केवन पादपूरणार्थक भी प्रयोग अहुरमज्द-सज्ञा पुं॰ [ पह अहुर मज्द] पारमी धर्मशास्त्र के अनुसार होता है । जैसे, 'भारत कहो तो अाज तुम क्या हो वहीं भारत धर्म, ज्ञान और प्रकाश का देवता । अहो ।- परित०, पृ० ८५ । अठा--वि० [हिं०] दे० 'अछ' । अहोई१---सज्ञा स्त्री० [हिं०]भानप्रान्ति के निये नियों द्वारा की जाने अहुरनावहुरना- क्रि० ग्र० [देश॰] आना जाना । अाने जाने | वाली वह पूजा जो दीपावली से प्राठ दिन पहले होती है । की क्रि ।। अहोई?--वि० [म० अभाविन्, प्रा० *ग्रहोई] न होनेवाली [को०] । अहठन--सज्ञा पुं० [सं० स्थूण] जमीन में गाडा हुआ। काठ का कुदा अहोनस--क्र० वि० [सं० हनिश] रान दिने । जिसपर रखकर वि मान गैडामे से चारा काटने हैं । ठीहा।। अहोरत्न- सज्ञा पुं॰ [सं०] मूर्य को०] ! अहृदय- वि० [सं०] १ हृदयहीन । अरमिक 1 २ खनुनहवाम ।। अहोरात्र- मज्ञा पुं० [अ०] दिनन्। दिन और रात्रि का नाम । | झक्की (को०) । । अहोरावहोरा–ज्ञा पुं॰ [ हि० अहुरना + बहुरना ] विवाह की अहृद्य वि० [स ०] १ जो हृदयहारी न हो । अरुचिकर । २ जो एक रीति जिसमें दु नहुन मसुराल में जाकर इमी दिन अपने बलकारक न हो, जैसे--ग्रौपध (को०)। । पिता के घर लौट जाती है । हेर फेरी ।। अहे'--पज्ञा पुं॰ [देश०] एक पेड जिम की भूरी लकडी मकानो मे लगती | अहोरावहोरा-क्रि० वि० बार बार है लौट लौटकर। उ०—शरद चद है तथा हन और गाडी अादि वनाने के काम में आती है। अहे--अव्य (स०) १ दे० 'है' । २ खेद, अलगाव या निदा का वाचक महे खजन जोरी । फिरि फिरि लरहि अहोर बहोरी |-जायनी (को०] । अहेडमान---वि० [म ०] जो अनचाहा या अनिच्छित न हो (को०] । अहद-सा मुं० [अ०] दे॰ 'अहद' ।। अहेतु'--वि०(स०) १ विना कारग की । विना सवव को । निमित्त- अह्र--संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'ग्रह' । (समासात में) जैसे -मध्याह्न [को०)। | रहित । २ व्यर्थ । फजूल । अह्निज-वि० [१० अति= सप्तनी रूप + जो दिन में होनेवाला [को०] । अहेतु--संज्ञा पु० एक काव्यालकार जिसमे कारणो के इकट्ठे रहने पर अKि- वि० [सं०] १ अमितलब । स्थून या मोदा । २ बुद्धिमान् । भी कार्य का न होना दिखलाया जाय, जैसे-है सष्पा हूँ विद्वान् । कवि (को०] ।। गियुत दिवमहु से मुख नित्त । होत समागम तदपि नहि विधि अह्निय-वि० [स०] धृष्ट । ढीठ । निर्लज्ज । धमडी [को०] । गति अहो विचित्र । अह्री--वि० [२०] निर्लज्ज [को०] । अहेतुक--वि० [सं०] दे० 'अहेतु' ।। अह्री.संज्ञा स्त्री० निर्लज्जता [को॰] । अहेतुसम-सज्ञा पुं० [सं०] न्याय में जाति के चौवीस भेदो मे से एक । अह्रीक-वि० [म ०] निर्लज्ज । वे शर्म, जैन--भिक्षुक [को०] । विशेप--यदि वाद कोई हेतु उपस्थित करे और उनके उत्तर में अह्नीक—सज्ञा पुं० वौद्ध भिक्षु [को०] । यह कहा जाय कि तुम्हारा यह हेतु भूत, भविष्य या वर्तमान प्रह, नुत-वि० [सं०] १ जो टेढा न हो। शकुटिल । २ अकपित (को०] । किमी काल में हैतु नही हो सकता, तो ऐसा उत्तर अहेतुसम अह्न-वि० [अ०] दे॰ 'अहन' [को०] । कहलाएगी । अह्न जाना-सज्ञा स्त्री० [अ० प्रहलेखा वह,] पत्नी । भार्या । गृहम्बामिनी अहेर--संज्ञा पुं० [सं० आवेट, प्रा० अहेड] [वि० अहेरी] १ शिकार। मृगया । २ वह जतु जिमका शिकार वे ना जाय । अह्न कलम--सचा पुं० [अ०] लेखक। ममिजीवी को०] । अहेरी--सज्ञा पुं॰ [ हि० अहेर+ई (प्रत्य॰)] शिकारी । - अह्नवतन--संज्ञा पुं० [अ०] देश मी । वननवाले [को०] । | खेटक । उ०—चित्रकूट मनु अचल अहेरी। मानस, २१३३। अह्निया--संज्ञा स्त्री० [अ० अहलियह] पत्नी । भार्या । जोरू (को] । अहेरी–वि० शिकार खेलनेवाजा। शिकारी। अाधा। अह्नीयत---सज्ञा स्त्री० [अ०] योग्यता । पात्रता । निपुणता [को०] । अहेरु-जल्ला पु० [सं०] महाशतावरी या शतमूनो नामक पौघाको । अहल-सज्ञा स्त्री० [स०] १ दृढ़ता।२ निलोवा। भल्लातक (को] ।