पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४५८

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३६१ अहुटाना | पान। ३०---कनक क1ि ग्रहित्रेलि वटाई। लग्वि नहि पर अहिवल्ली--सज्ञा पुं० [सं०] पान । ना बुन्न । नागवती । सुपरन नहाई --तुन मी ( शब्द०)।। ग्रहिवात--ज्ञा पुं० [स० अविचात्य, प्रा० *अइहात अहित] अद्विघ्न-भज्ञा पुं० [म०] ३० प्रवृिघ्न' ।। [ वि० शहिवातीन, अहिती ] म भाग्य । मोहाग । उ•••• अभिय- सच्चा ‘० [म०] १ अपने ही पक्ष के विश्वामान का भय । ( क ) राज करो चित उर गढ राखी पिये अहिवान - जयम २ नप के काट खाने का भय ।। (शब्द॰) । (ख) अचल होउ अहिवात तुम्हारा । जव नगि ।। अभियदा:- सुज्ञा स्त्री० [सं०] माँ को भव देनेवानी । भूम्यामकी । गग जमुन जनधारी [---तुलसी (शब्द॰) । || इवना [को० ।। अहिवातिन--वि० सी० [हिं० अहित] सौभाग्यवती । मधवा । । अहिभान--वि०म०]मूर्य की गति का जो कारण हो ।--जैसे, वायु । अहिवाती--बि० जी० [हिं० श्रहित] सौ युवती । सोहागिन । २ वायु का विषेपण । ३ साँप मा चमकनेवाला [को०] । अहिविपापहा -सजा त्रिी० [म०] गधनाकुनी पौधा को०)। अहिभूक----सबा पुं० [म० अहिभज] १ मोर पनी । २ नेत्रना । ३ अहिमाव--सज्ञा पु० [म० अहिशावक ! माँप का बच्च। 1 पोत्रा । अधूिमाव--सज्ञ: प्र० [na aftrax1 2 || गरुड पक्षी । ४ गधनकु' नामक पौधा [को०] । में ना ।। । अहि भत्--सहा पुं० [४०] मर्चवारी शिव (को०] । अही--संज्ञा पु० [सं०] पृथिवी और प्रकाश (को॰] । ग्रहिम--वि० [अ० अ + हित] जो जीनल न हो। इष्ण [को॰] । अहीक --मज्ञा पुं० [२] वौद्र शास्त्रानुसार दम क्लेशो मे मे एक है। यौ०--अहि कर, अहितनेजा, अहि पदी विपि, अहि गद्युति, अहि- अहीन'---वि० [सं०] १ जो हीन न हो । भ्रानिवज जिने हीन म मझ । मयूख, अहि नरति, अहि नचि, अहि परोत्रिय = मूर्य ।। न्निया जाये । २ जो शोरो से कम न हो । महान् । ३ दोपअहिमर्दनी-नज्ञा स्त्री० [१०] गानाकुनी नामक पध। [को॰] । | रहित ।। पूरः। स ग ! ! जो जानिनुन न हो [को०] । अहिमाशु----संज्ञा पुं० [२] भूयं ।। ग्रहीन.-ज्ञा पु०[स०] १ कई दिनों में पूर्ण होने वा ता यज्ञशिप । अहिमात--सा पुं० [१० अहि = ग1ि + प्रत् - युक्त अहि नान्] चाके २ ले पा साँप । ३ वासुकि (को०] ।। म वह गढा नियुके व न चाक को की न उर रवने हैं। अहीनगु- ज्ञा पु० [म०] एक मूर्यवंशी राजा । देवानीक का पुत्र । अहिमाली--संज्ञा पुं० [सं० अहि तालिन् ]ग की मार ध र करते- अहीनवादी---वि० [० ग्रही नवादिन] जो निरुत्तर न हुआ हो । । । वाले शिव ।। जो बाद में न हार हो । अहिमेछ-मज्ञा पुं० [सं०] मर्पयज्ञ । | अहीर---राज्ञा पुं० [१० अभीर] [स्त्री० अहीरन] एक जाति जिनकी अहिर--संज्ञा पुं० [हिं०]३० 'अहीर' । ०- -अहिर जाति गोधन को काम गाय मेंस रखना अौर दूध वेचना है। ग्वाला । उ०— | माने --सूर०, १०1१६२५.। नोइ निवृत्ति पात्र विम्वामा । निर्म र मन अहीर निज दाभाअहिराई--सुझा पु०० अहिराज, प्रा० अहिराइ] सर्पराज । उ०-~ मानस, ७१११७ ।। | गर्व वचन कहि कहि मुख भापत, मोकौ नहि ‘नासत अहिराइ != अहीर णि - संज्ञा पुं० [म०] दो मुवान साँप [को०) ।। मूर०, १०1५५५।। अहीरी'--राज्ञा पुं० [न०]क राग जिसमें सब कोम ने स्वर लगते हैं। अहिरिन -संज्ञा स्त्री० [हिं० अहिर] अहिर की स्त्री । उ०—अहि- अहोरी..-सज्ञा स्त्री० [हिं० अहीर] ग्वालिन । अहोरिन । रिनि हाथ दहेडि सगुन लेइ अावइ हो ।--नुनमी प्रे०, पृ० ४। अहीश-सज्ञा पुं० [म०] १ साँपो का राजा । शेर्पनाग २ शेप के महिन--सच्चा पुं० [सं०] १ ११ रुद्रो में से एक । २ उतरी | अवतार नश्मण और व नराम श्रादि । | भाद्रपद नक्षत्र, जिम के देवता अत्रुिघ्न है । अहीस---मज्ञा पुं०[स० अहीश] शेषनाग । ३०---दानव देव अहीम अहिर्बुध्न्य-सज्ञा पुं० [सं०] दे०,'अहिर्बुध्न । महीस महामुनि तापम मिद्व समाज 1-नुतमी ग्र० पृ० २२० । अहिलता--सच्चा स्त्री० [सं०] नागवल नी । पान । अहठ--वि० [हिं०] माढे तीन । तीन और प्रात्रा ! हिना-सच्ची पुं० [सं० अभिनय, प्रा० अहिग्लो, हि० होन, चहना अहुजी--सज्ञा स्त्री॰ [देश ०] घीए के महीन दरडी को मिलाकर | 5 फीच] १ पानी की बाइ । बुडा । २ गड़बड़ । ३ दगा । पकाया हुआ चावन । भाहलादपु-भज्ञा पुं० [म० प्रहलाद] दे० 'श्राहाद' । उ०——'काम अहुटना)---क्रि० प्र० [म० श्र+हठ, हि°हटना] हटना । दूर होना । ज्या न कर मन मुईि अहिलेद 1 नीद न मांग मथर भुपे अलग होना । उ०---(क) विरह भयो घर अगन कोने । हम | न माँगै स्वाद ।-- वीर ग्र०, पृ० ४१।। अब ना अति दीन हीन मति तुमही हो विधि योग । मू' बदन अहिलोलिका--मानी० [सं०] भूम्यामन की क्रिो०] । देखन हो अहुट या शरीर को रोग 1--दू' (शब्द॰) । (ख) अहिलीचन-- मक्षा पुं० [म०] शिव का एक मर्प [को०] । देवि द टित हात झटत जा; लपटन धा। फिरि फे अहिल्या--संज्ञा स्त्री० [सं० अहवा] ० 'अदुवा' । अहुटत चैन ।, चुटत दुई पुटत अ -मूदन (३०) । रचना पु० [म०] दोहे का एक ने नव व गुरू ग्रौ ३= अहुटाना--० म० [० ग्रे + हि हटाना) हटाना। लघु होते हैं, जैसे---फन क वरण नन मृदुन अनि ऊ म मरिम कर नः । अलग करना। भगाना । उ०---उमडि किले कनु चोट . रसात् । नबि ! दुरि छकि रहे विमाई सब बा । ' च ताइ । ममिडिनि मारि दए हुदाइ ।- मुदन (शब्द०)। -