पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४५६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अहिंसा प्रहरी-सा स्त्री० [सं० आहरण = इकट्ठा होना] १ वह स्थान जहाँ उ0-3हु धेन ने अहमान है, पारी दे । महि । वैद वधू हैंसि ।' पर लोग पानी पिएँ । प्याऊ । २ वह गड्ढा या हौज जो कुएँ । भेद सौ, रही नाह मुख चाहि ।-विहारी (शब्द०) 1 ३. के किनारे जानवरो के पानी पीने के लिये बना रहता है । कृतज्ञता । चरही । ३ हौज जिसमें किसी काम के लिये पानी भरा जाय । अहसानफरामोश--वि० [अ० एह बात+का० फरा गोश ] उपकार अहर्गण- सज्ञा पुं० [सं०] 7 दिनों का समूह । २ ज्योतिष कल्प के को न माननेवाला । कृतघ्न । उ-'अच्छा, मैं बेवफा, अह्वान | आदि से किसी इष्ट या नियत काल तक का समय । फरामोश सही, तुम तो बडे वफादार हो ।--श्रीनिवास ग्र०, अहर्दल-- सज्ञा पुं० [सं०] दोपहर मध्यदिवस [को०] । पृ० १२३ ।। अहर्निश–क्रि० वि० [स०] १ रातदिन । २. सदा । नित्य । अहसानफरोश- वि० [अ० एहसान+फा० फरोश] उपकार कर सबसे अहर्मणि-संज्ञा पुं० [म०] सूर्य । | कहता फिरनेवाला [को०] । अहर्मुख-सझा पुं० [सं०] उप काल । दिनार में । सवेरा । अहसानमंद-वि० [अ० एहसान +फा० मद] कुक्षि । किए हुए को अहल'- वि० [सं०] अकृष्ट । बिना जोता हुअा (खेत) (को॰] । माननेवाला (को॰) । अल---वि० [अ० अल] लायक | समर्थ । योग्य [को०] । अहसानमंदी-मज्ञा स्त्री० [अ० एहसान +फा० मंदी] कृतज्ञता । उ०अहलकार-संज्ञा पुं० [फा०] १ कर्मचारी । २ कारिंदा । ‘वह मदन मोहन की अहमान मंदी के बहाने से हर वक्त वहाँ बना अहलकारी-सच्चा स्त्री० [हिं०] अहन कार का काम । कारिदागिरी। रहता था ।---श्रीनिवास ग्र०, पृ० २११ । म्हलना-- क्रि० अ० [सं० अलहनम ] हिनना। काँपना।। अहस्कर-----सज्ञा पुं० [सं०] १ दिन कर ।। सूर्य । २ मदार (को०] । दहलना । उ०—पहल पहल तन रुइ ज्यो झएँ । अहल अह ।। अहस्त--वि० [सं०] विना हाथवाला। जिसके हाथ कटे हो किो] अधिको हिय कपि --जायसी (शब्द॰) । अहस्पति-: संज्ञा पुं० [म०] दे० 'अहस्कर' ।। अलमद- सन्ना पु० [फा० हलमद अदालत का वह कर्मचारी जो , अहह–अव्य० [सं०] एक अव्यय जिमका प्रयोग आश्चर्य, खेद, क्लेश मुन दृमो की मिसिलो को रजिस्टर में दर्ज करता और रखती है। और शोक सूचित करने के लिये होता है। उ०--अहहै तात अदालत के हुक्म के अनुसार हुक्मनामे जारी करती है तथा दारुन हठ ठानी ।—मानस, १।२५८ । किसी मुक दृमे वा फैसला होने पर उसकी मिमिल की तव अहा-प्रपं० [सं० अहह ! इसका प्रयोग प्रसन्नता और प्रश ता की देकर मुहाफिजखाने में दाखिन करता है। सूचना के लिये होता है, जैने-नहा । यह कैसा मु दर फूल है । अहल्ला--सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] ‘अहिना' । अहाता--सज्ञा पुं० [अ० ]१ घेरा । होता । २ प्रकार। चारदीवारी । अहलाद-संज्ञा पु० [सं० लाद] दे० 'अल्लाद'। उ०—(क) अहान--सज्ञा पुं० [सं० ह्वान] पुकार । शोर । चिल्लाहट । उ०ताको पुत्र भयौ प्रहलाद । भयौ असुर मन अति प्रहलाद । भइ अहान पद्मावति चली। छत्तिस कुल मई गोहन चली ।- मूर०, १४२१ । (ख) टूटा पकरि उठावे पर्वत पगुल करे । जायसी (शब्द॰) । नृत्य ग्रहलाद । जो कोउ याको अर्थ विचार सु दर मोई पावे अहोर--सज्ञा पु० दे० 'ग्राहार' । उ०—करहिं अहार सकि फन अहार स्वाद ?--भु दर ग्र०, भा० ३, पृ० ५०६ । कदा। सुमिरहि छ । सच्चिदानदा --नम, १।१४४। प्रहलादीG:--वि० [हिं०] 'ब्राह्लाद' । अहारना --- क्रि० स० [ स० अाहरण = खा । या हिं० प्रहार ] १. अलि--वि० [सं०] दे० 'अहल' कौव] । छाना । भक्षण करना । ३०-तो हमरे प्रथम पगु धार । अहले गहुले--क्रि० वि० [अनु] मस्ती के साथ । प्रमन्नतापूर्वक । निज रचि के फल विपुल अहारी ।-रघुराज० (शब्द॰) । २ | निश्चित मन से को०] । चपका ना । लेई लगाकर लस।। ३ पडे मे मीही देना । ४ अहल्या'--वि० स०] जो (वरती) :ोती न जा सके । दे० 'अहरना' । अहल्या--सञ्ज्ञा स्त्री॰ गौतम ऋषि की पत्नी । अहारी- वि० दे० 'अहारी' । उ०— जिमि अरुनोपन निकर अहवान--सझा मुं० [ म० अाह्वान] बुनाना। अावाहन । उ-- निहारी । धावहि सठ खग मास अहारी -मानस, ६३९ । कियो श्रापने अपने पयाना। राति सरस्वति किय अहवाना । अहार्य--वि० [सं०] १ जो धन या घूस के लोभ न आ सके । २. अत -रघुरा जै० (शब्द०)। जो हरण न किया जा सके । जो चुराया न जा सकता हो । अहवान--संज्ञा पुं० [अ० 'हाल' का बढ़] १ समाचार । वृनाते । | यौ०-हार्य शोभा। --मरजे मुबारक का मरीज़ तब वह अहा न सुनाऊँ । रात्र मनाई।-. अरु अहाहा--ग्रव्य० [सं० अह्ह ] हर्पसूचक अव्यय । मथन, पृ० १६१। २ दशा । अदया। उ०-- अजब प्रह- अहिंसक-- वि० [सं०] १ जो हिमा न करे। जो किसी की धान न वाले देवा हमने कल इम खाने वीर का ।---कविता कौ०, -कति व कौ, करे । २ जो किसी को दु ख न दें । जिससे किसी को पीडा न मा० ४, पृ० २३० ।। | पहुँचे ।। *१२चर-वि० [म०] दिन में चननेवाला । दिनचरी (को॰] । अहिमा-~-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ साधारण घ र्षों में से एक । क्रिर्मी को भान-पुन। पुं० [अ० एह ।।11 किसी के म। १ नेी करना । दु ख न देना। २. योगशास्त्रानुसार पनि प्रकार के यमो में सलूक! मलाई । उनकार । २. कृता । अनुग्रह् । नि हो । पहुला । मन, वाणी र कमें में फिी प्रन रि कि । फान