पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४५५

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'अहटियानी अहम अहटियाना:-क्रि० म०, क्रि ० अ० [हिं॰] दे॰ 'ग्र इटाना'। ममूद मर्ह अहही ।।---- जायसी (शब्द०) । (ख) जब लगि अहत--वि० [सं०] १ जो हत न हो । २ अक्ष। । ३ अनाहत । गुरु हौं प्रहा न चीन्हा । कोदि अतरपट वीचहि दीन्हा ।। ४ जो पीटा या कचारा न गया हो । जैसे—वस्त्र । ५ जो जायसी (शब्द०) । | कु ठाग्रस्त या हताश न हो । ६ नया । बिना धोया हुआ। 19 अनाथ--मज्ञा पु० [स० ग्रह पथि] दिन के ग्वामी । सूर्य । उ० -महि निर्दोष । बेदाग (को॰] । मयंक अनाथ को शादियान व भेद । त; विधि तेई जीव अहत—सज्ञा पुं० [सं०] बिना धुला नया वस्त्र (को०] । केहँ होत ममुझ बिनु खेद ।-म० भनक, पृ० ३८ । अहथिर ---वि० [स० स्थिर] दे० 'स्थिर' । उ०—-मवै नास्ति वह अहनिसि) --क्रि० वि० [हिं०] ३० 'अहनिश' । उ०- मुयी मुयो अहथिर ऐस साज जेहि केर ।—जायसी (शब्द०)। अहनि सि चित्राई। ग्रोही रोम नागन्ह वै खाई ।—जायसी अहद--संज्ञा पुं० [अ०] प्रतिज्ञा । वादा । इकरार । (शब्द॰) । क्रि० प्र०-फरना= प्रतिज्ञा करना । टूटना= प्रतिज्ञा भग अहन पूष्प--सज्ञा पुं० [मं०] दुपहरिया का फू । हुन दुपहरिया ।। होना 1-तोडना = प्रतिज्ञा भग करना । वादा पूरा न करना। अहमक-वि० [अ०] नष्ट । वैवकूफ । मूग्वं । नाममझ । उ०—नहुर २. संकल्प । इरादा। ३. समय । काल । राजत्वकाले, जैसे थर्क दुहि पीया खीरो, ता का अहमक के सरीरो -- बीर 'अकबर के अहद मे प्रजा वडी सुखी थी। | ग्र०, पृ० २३९ । यौ०–अहदनामा। अहदशकिन । अहदशिकनी अहद वो पैमाने। | अहमग्रिका--सच्चा स्त्री० [१०] आगे बढ़ने की प्रनिधि । होड(को०] । अहद-वि० [सं० अ = नहीं +अ० हद] सीमार हित । असीम उ० अहमहमिका--सज्ञा स्त्री० [सं०] लागत । होट। पहले हम नव दूगर । पलटू दीगर को नेस्त करे, होय खुद अहत इस भांति जाई ।-- हमाहमी। चढ़ा ऊपरी ।। पलटू०, पृ० ६३ । अहमिति - संज्ञा स्त्री० [सं० ग्रहम्मति] १. अविद्या । अज्ञान । अहददार-सज्ञा पुं० [फा०] मुसलमानी राज्य के समय का एक अफसर । उ०--निमि दिन फिरत र हुन मुह वए, अहमिति जनम जिसे राज्य की और से कर का ठीका दिया जाता था । त्रि गोइसि । गोड पसारि परयौ दोउ नीक, अब कैमी कह उसको इस काम के लिये दो या तीन रुपया में कहा वधेज रोइसि |--सर०, १। ३३३ । २ प्रकार । उ०—-भजेठ मिलता था और राज्य में वह सब कर का देनदार ठहरता चापु दापु बड वाढ ।। अहमिनि मनहू जति जगु ठादा। था । एक प्रकार का ठेकेदार ।। मानस, १। २८३ । अहदनमा--संज्ञा पुं० [फा०] १. एकरारनामा । वह लेख या पत्रा | अहमेव- संज्ञा पुं० [सं०] अहुकार । गर्व । घमइ । ३० -(क) जिसके द्वारा दो या दो से अधिक मनुष्य किसी विषय में उदित होत शिवराज के, मुदित भए द्वि न देव । कलियुग हट्यो कुछ इकरार या प्रतिज्ञा करें । प्रतिज्ञापत्र । २ सुलहनामा । मिट्यो सकल, म्लेच्छन को अमेव ।--भूपण (शब्द०) । स घिपत्र । अहदी-वि० पुं० [अ०] १ आनसी । अलहदी । सकती । २ वह (ख) सन्यासी माते अहमेव । तपनी मते तप के भेव - | जो कुछ काम न करे । अकर्मण्य । निठल्लू । मटर ।। कवर ग्र०, पृ० ३०२ । अहदी--संज्ञा पु० अकबर के समय के एक प्रकार के भिषा fनन अहर-संज्ञा पुं॰ [देश ०] छोपियों के रग का मिट्टी की बरतने । नैया। बडी आवश्यकता के समय काम लिया जाता था, शेष दिन अहरणो य–वि० [म०] १ न चुराने योग्य । २ (घूर्तता द्वारा) वे वैठे खाते थे । उ = धेर्यौ अाइ कुट म लसकर मैं, जुम ने अपनाने योग्य । ३ दृढ । सुस्थिर (को०] । अहदी पठ्यौ । सूर नगर चौरासी भ्रमि भ्रमि, घर घर को जु अहरन--सच्चा सौ० [सं० + घरण = रखना] निहाई । उ०-~भयो ।—सूर० १६४ ।। कविरा केवल राम की तु मनि छई प्रोट । वन प्रहरन विच विशेप--इसी से 'अहदी' शब्द अलसि पो के लिये चल गया । | लोह ज्यो घनी सहें सिर चोट |--कवीर (गव्द॰) । ये लोग कभी कभी उन जमीदारी में मालगुजारी वसूल करने अहरना--क्रि० स० [सं० शाहरण = निकल ना] १ लकडी की भी भेजे जाते थे जो देने में आनाकानी करते थे । छीलकर सुडौल करना । २ डौलना । ये लोग अडकर बैठ जाते थे और विना Hिए नही उठते थे । अहरनि--सशा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'अहरन' । अहदीखाना–संज्ञा पुं० [फा० अहदीखानह] अहदियो के रहने का अहरनिसि -क्रि० वि० दे० 'अहर्निश-२' । उ०—अहर निसि असे | स्थान । | लागी रहै सुन्न मे, बिना जल विए क्या प्यास जाई ।-कबीर० अहदेहुकूमत- संज्ञा पु० [फा०] शासनका न । राज्य । रे०, पृ० २९ ।। अहन्--सज्ञा पुं० [सं०] दिन । दिवम् । अहरा—सभा पुं० [सं० अाहरण = इकट्ठा करना] १ कड़े का ढेर अहन--सज्ञा पुं० [स० अहन्] १ दे० 'अहन्' । २ दिन । उ०—पेट को । जो जलाने के लिये इक्ट्ठा किया जाय । २ वह अग जो इस पढ़त गुन गढ त, चढत गिरि अटत गहन बन अहन प्रकार इकट्ठा किए हुए कडो से तैयार की जाय। ३. वह स्थान अखेटकी ।-नुन पी प्र ०, पृ० २२० ।। जह लोग ठहरें । ४ प्याऊ । पौनाला । महना --क्रि० प्र० [स० अनि वने म.न रइना । होना । अहराम--१० पुं० [अ० हरम = पुरानी इभारत का बहुव०] पुराने उ०—(क) राजा सेति कुअर सब कही । अस अस मच्छ भवन् । २. भिन्न के स्तर या रिरभिड ।।