पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४५४

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| अहेर्पद प्रस्वार्थ-वि० [सं०] १ स्वार्यहीन । नि स्वार्थ । २. विरक्त । अहपद--सज्ञा पुं० [स० अहम्पद | गर्व । अभिमान (को०] । - उदासीन । ३ निरर्थक । निकम्मा । बेकार को॰] । अहपूर्व--संज्ञा पुं० [म० अहम्पूर्व] लाग इट में दूसरे से आगे बढ़ जाने अस्वास्थ्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] बीमारी। रोग । की अमिलोपा रखनेवाला (को०] । अस्विन्न-वि० [३०] अच्छी तरह न उवाला हुआ। अपक्व (को०] 1 अहंपूवका-मझा जी० [स० अहम्पत्रिका ] होड । प्रतिस्पर्धी को। अस्वीकरण---संज्ञा पुं० [सं०] अस्वीकृति । स्वीकार न करना । अप्रथमिका-सझा स्त्री० [स० अहम्प्रथमका] ३० 'अहपूविका' (को०] अस्वीकार--सझी पुं० [सं०] स्वीकार का उलटा: । इन्कार । अप्रत्यय- सच्चा यु० [सं० अहम्प्रत्यय] घमड । गर्व [को०] । नामजूरी । नाहीं । अहंभद्र--सज्ञा पु० [स० अहम्भद्र] अपना व्यक्तित्व महान् समझना क्रि० प्र०—करना । [को०) । अस्वीकृत-वि० [सं०] अस्वीकार किया हुग्रा । नामजूर किया अहमति- सज्ञा स्त्री॰ [स० अहम्मति] (वेदात दर्शन मे) भ्रमात्मक हुा । नामजूर । अध्यात्मिक आत्मज्ञान [को०] । अस्वीकृति-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] नामजूरी । स्वीकार न करने की क्रिया अहवाद--संज्ञा पुं० [सं०] डीग मारना । शेखी हाँकना । उ०--- | या भाव ! अस्वीकार [को०) । अहवाद मैं ते नही दुष्ट मग नहि कोइ। दुव ते दुख नहि ऊपजे अस्स--सज्ञा पुं० [मं० अश्व, प्रा० अस्स] घोडा। सुख से सुख नहि होइ ।--तुलसी (शब्द॰) । अस्सी--वि० [स० अशीति, प्रा० अमीति] सत्तर और दम की अहंकार---संज्ञा पुं० [सं० अहङ्कार] दे० 'अहकार' । उ०-त्रयनयन, | सख्या। दस का अठगुना ।। मयन मर्दन महेश । अहँकार निहार उदित दिनेस ।-नुलसी अस्सु--संज्ञा पुं० [सं० अश्रु प्रा० अस्सु] अाँसु । ग्र०, पृ० ४६१ ।। अह-सर्व० [म० अहम् में । अह-सच्चा पु० [सं० अहन्] १ दिन । २ विण । ३ मूर्य । ४ दिन का अभिमानी देवता । ५ अाकाश [को०]। ६ एक दिन का ग्रह-संज्ञा पुं० १ अहकार ! अभिमान । उ०—(क) तुलमी मुखद काम [को०] । ७ रात्रि [को०] । ६ किमी ग्रंथ का वह अंश जो जाति को सागर । संतन गायो कौन उजागर । तामे तन मन एक दिन के लिये निश्चित हो [को०] । रहे समोई । अह अगिनि नहि दाहै कोई ।--तुलसी (शब्द०) । यौ०-अहर्निश = दिन रात । लगातार । अहपति-मूर्य । अह(ख) ज्यो महराज या जलधि ते पार कियौ भव जलधि पार मुर्ख = उपाकाल । अहह = दिन दिन । ।। त्य करौ स्वामी । अह ममता हुमैं सदा लागी रहै मोह मद अह-प्रव्य [सं० अहह ] एक अव्यय संयोधन । अाश्चर्य वैद और क्रोध जुत मद कामी 1- सूर०, (शब्द०)। २ संगीत का क्लेश आदि में इमका प्रयोग होता है, जैसे---प्रह तुमने बड़ी एक भेद जिसमे मव शुद्ध म्वरो तया कोमने गधार का व्यव हारे होता हैं। मूर्खता की (शब्द०)। अहकार-सल्ला पुं० [सं०] १ अभिमान । गर्व । घमड। २. चेदात के अहक--संज्ञा पुं० [म० ईहा] अच्छी । अाकाशा। लालसा । ३०- अनुसार अव करण का एक भेद जिसका विपय गर्व या अहंकार अहक मोर वरपी ऋतु देखहु । गुरु चीन्हि के योग विभेपहै। मैं हूँ" या "मैं कहता हू" इस प्रकार की भावना। ३ जायसी (शब्द॰) । साम्यशास्त्र के अनुसार महत्तत्व से उत्पन्न एक द्रव्य । अहकना--क्रि० अ० [हिं० अहंक] इच्छा करना। जान्नमा करना । विशप--यह महत्तत्व का विकार है और इसकी मात्विक अवस्था अहकाम-मज्ञा पुं० [अ० हुक्म को यद्व०] १ नियम । कायदा। २. से पच ज्ञानेंद्रियो, पाँच कर्मेंद्रियो तया मन की उत्पत्ति होती हुक्म । अज्ञाए । ६ प्ररि तो मम अवस्या से पचतन्मात्राम्रो की उत्पत्ति होती अचरज-सज्ञा पुं० [म० अाश्चर्य] दे॰ 'अश्चर्य' । उ-समर जीति हैं, जिनमे क्रमश अाकाश, वायु, तेज, जन और पृथ्वी की जौहर को होन । जो अचरज भयो यह तीन --हम्मीर, उत्पत्ति होती है । माक्ष्य में इसको प्रकृतिविकृति कहते हैं । पृ० ६५ । यह अत करणद्रव्य है । अहट--संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] २० ‘ग्राहट' उ०--ग्राह न अट अध अरी ४ अत धारण की एफ वृत्ति । इसे योगशास्त्र में अमिता कहते हैं। या अदाई की ।गग०, पृ० ८२ ।। ५ मैं और मेरा का भाव । ममत्व । अहटाना'--क्रि० अ० [हिं० अाहट] अाहून लगाना ! पता अहकारी--वि० [स० अङ्कारिन्] [त्री० ग्रहकारिणी] अहफार चलना । उ०---रहुन नयन के कोरवा चितवनि 'छाप । चनेत | करनेवाजा। घमडी । गर्वी । न पग वैजनियाँ मग अहटाये ।--रहिमन० (शब्द॰) । महोत्-वि० [म० अहड़त] अहंकार करनेवाला । घम डी को०] । अहटाना --क्रि० म० प्रहिट गाना । टोह लेना । पना चलाना । ५ प्रकृति--सा जी० [२० अति ] ग्रहकार । अहटाना --क्रि० अ० [म० ग्राह] दुबनी । दई करना 1 उ०* संज्ञा स्त्री॰ [म० अन्त] अहकार । घमङ । गर्व । उ०— (क) तनिक किरकिटी के परे पन पत्र में अहुय । ३ नोवै | वा एक पूजना दे दीन, दूसरे में पूर्ण प्रई। में उप को समझ सुख नीर दृग मीत वम जय प्राय |–रतनिधि० (शब्द॰) । रही प्रवीण |--कामायनी, पृ० १६१ । (ख) सुनी दून बानी महामार वानजदै जवे, हिये प्रह!नी है अधो-सा स्रो० [सं०] दे० 'अहंकार' । रिसानी देह ता सम ।--भूदन० (शब्द॰) । - ३