पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४५३

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अस्वामी अस्फुट- वि० [सं०] १ जो स्पष्ट न हो । जो माफ न हो । उ०- अस्ली-[अ॰] दे० 'असली' ।। अस्फुट कोलाहल भरति मर्मरित वन है ।-साकेत, पृ० २१७ । अस्वत--सज्ञा पुं॰ [स० अस्त्रन] १ मृत्यु । २ खेर । ३ चूना ।।। २. गूढ । जटिल । मरुत् विशेष कि] । अस्म-सच्चा पु० [स० अश्म]पत्थर । उ०—(क) जहूँ जहँ जात तही अस्व--संज्ञा पुं० [सं० अश्व] दे० 'अश्व' । उ० होइय नाथ अस्त्र असवारा ।-मानस २ । २०२ । तहीं भासत अस्म, लकुट पदत्रान -सूर० १ । १०३ । (ख) पुन तरि तरि औरनि तारत । अस्म अचेत प्रगटपानी अस्वच्छद --- वि० [स ० अस्वच्छन्द] जो अात्मनिर्भर न हो । दूसरे के मैं वनचर ले ले डारत ।-सूर ० । १२३ । भरोसे पर रहनेवाला [को०] । अस्मद्-सर्व० [सं॰ अस्मत्] मैं । अस्वच्छ--वि० [सं०] जो स्वच्छ न हो । जो स्पष्ट न हो । गदा । अस्मद्-संज्ञा पुं० [स० अस्मत् जीव । आत्मा (को०)। अस्वतत्र-वि० [म० अस्वतन्त्र] पराधीन । दाम 1 गु नाम को०]। अस्मदादि--सर्व० [सं०] हम सव (को०)। अस्वप्न-सज्ञा पु० [सं०] १ देवता । २ अनिद्रा । अस्मदादिक-सर्व० [सं०] दे॰ 'अस्मदादि' । ह्म सर्व । अस्वप्न-वि० [सं०] जिसे नींद न आती हो किो०)। अस्मदीय--वि० [स] भैरा (को०] । अस्वभाव-वि० [स०] fभन्न स्वभावाला [को॰] । अस्वभाव’- संज्ञा पुं० [सं०] अस्वाभाविक लक्षण । भिन्न लक्षण(को०)। अमय-वि० [सं० अश्ममय पत्थर द्वारा निमित। उ०—जरासंध । वह कई नए कल जस गावै । दमण शन गौतम तिबा ॐ साए ग्रस्वर'---वि० [सं०] ग्रस्पष्ट या मद (स्वर) । चुरे या मद स्वरवाजा नसावै ।--सूर० १ । ४ ।। | [को०] 1 अस्मार्त-वि० [स०] जो स्मृतियो का अनुयायी न हो । स्मृतिविरोधी ।। अस्वर--संज्ञा पुं० [सं०] स्वरभिन्न या व्यजन वर्ण (को॰] । २ जो स्मृत न हो। स्मरण से परे । ३ परपराविरुद्ध । अस्तग्य-वि० [सं०] जो स्वर्ग प्राप्ति में वाधक हो [को०] । अनुचित । ४ स्मार्त मत के विपरीत को॰] । अस्वस्थ-वि० [म०] १ रोगी । बीमार । २ अनमना । अस्मिता- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ योगशास्त्र के अनुसार पाँच प्रकार के अस्वादुकटक - सज्ञा पुं॰ [स० अस्यादुकण्टक] गोखरू । वले शो में से एक । द्रक, द्रष्टा और दर्शन शक्ति को एक मानना अस्वाधीन--वि० [सं०] पराधीन । परतत्र (को॰] । या पुरुप (आत्मा) और बुद्धि में अभेद मानना । २ अहकार। अस्वाध्याय--वि० [स०] वेदो की प्रवृत्ति न करनेवाला । जिसने साख्य में इसको मोह और वेदात मे हृदयग्रथि कहते हैं । वेदपाठ न किया हो [को०)। अस्र-सज्ञा पु० [सं०] १ कोना 1 २ रुधिर । ३ जल । ४ असू । | अस्वाध्याय-- सज्ञा पु० [सं०] वेद के स्वाध्याय के बीच पडनेवाली । ३०-प्रकृति-रजन-हीन, दीन अजस्र । प्रकृति विधनी थी भरे । | वाधा या मिलनेवाला अवकाश को॰] । अस्वाभाविक—वि० [सं०] १. जो स्वाभाविक न हो । प्रकृतिविरुद्व । हिम अस्र -साकेत, पृ० १६५ ।५ केसर । ६ वाल । अस्त्र--संज्ञा पुं० [अ०] १ दिन का चतुर्थ प्रहर। २ समय । वक्त । | २ कृत्रिम । वनावटी। काल को ।। अस्वामिक-वि० [सं०] जिसका कोई स्वामी न हो । लावारिस [को०] । अस्रकठ-सचा पुं० [सं० शस्रकण्ठ] वाण । तीर [को॰] । अस्वामिक-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह वस्तु जिसका कोई स्वामी न हो । अन्नखदिर-सज्ञा पुं० [सं०] रक्तखदिर का वृक्ष [को॰] । को०] । अस्रज-सज्ञा पुं० [सं०] मास [कौ] । अस्वामिकद्रव्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] पराशरस्मृति के अनुसार वह धन अस्रय'---सज्ञा पुं॰ [सं०] १. 'राक्षस । २ मूल नक्षत्र । ३ जोक जो | जो किसी की मिलकियत न हो। लहू (प्रस्त्र) पीती है । अस्वामिविक्रय—संज्ञा पुं० [सं०] १ दूसरे के पदार्थ को उसकी अज्ञा अस्रय-वि० रक्त पीनेवाला। के विना वेच लेना । २ दूसरे की चीज जबरदस्ती छीनकर अस्रपा---सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ जलौका । जोक। २ डाइन । टोना या कही पडी पाकर उसकी इच्छा के विरुद्ध बेच डालना । • करनेवाली ।। निक्षिप्त । अस्रपित्त---संज्ञा पुं० [स०] नासिका मुख अादि से रक्तस्राव होना अस्वामिविक्रोत–सज्ञा पुं० [सं०] मानक की चोरी से वेचा हुप्रा । को०]। विशेष---नारद ने कहा है कि ऐसी वस्तु का पता लगने पर अस्रफला–संज्ञा स्त्री० [सं०] सलाई का पेड ।। मालिक उमका हकदार होता है। पर मन के को इस ब त अस्रफली--संज्ञा झी० [सं०] ६० अफला [को०] । की सूचना राज्य को कर देनी चाहिए ।। अस्रमातृका-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] देह के भीतर का रस [को॰] । अस्वामिसहत--वि० [सं०] (सेना) जिमका सेनानायक ने मारा अस्रोधिनी-सज्ञा स्त्री० [स०]लज्जालु नामक पौधा । छुईमुई (को॰] । गया हो। अस्रार्जक—संज्ञा पुं॰ [सं०] श्वेत तुलसी । अस्वामी-वि० [सं० श्रस्वाभिन्] १ जिसका कोई दावेदार या असू -संज्ञा पुं० [स० अश्रु] दे० 'अश्रु' । अधिकारी न हो। २ जिसका कोई स्वत्व वा अधिकार न हो मस्ल-वि० [अ०] दे॰ 'असल' । (को०] ।