पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४४८

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प्रमुर्रकुमार असे ६–समुद्री लवण । १० देवदार। ११, हाथी (को०] । १२. देग्लै दुहु का बहूँ जय दे - जायमी २ ०, पृ० ११२ । ३. एक लडाकू जाति (को०] । जि सके करने के उपाय न सूझे। विक्ट । कठिन । उ--- अनुरकुमार-संज्ञा पु० [म०] जैन शास्त्रानुसार एक त्रिभुवनपति देवता । दोऊ लड' होय समुख लो भयो असूझ । गन्न, जूझ तवे न्योरे अनुरगुरु--सा पु० [सं०] शुक्राचार्य । एक दोऊ मंह जूझ !--यमी (शब्द०)। अनुरद्रु-सज्ञा पु० [म० असुरदुह,] देव । सुर (को०] । असूत --वि० [म० अस्पून) विरुद्ध । अस बद्ध । उ०---पुनि तिन मगुरद्वि-सज्ञा पुं० [म० असुरद्विषु ()] विष्ण (को०] । | प्रपन कियो निज पूतहि । शास्त्र परम्पर कहते अभूनहि ।-- अनुरराज-सज्ञा पुं० [सं०] राजा बलि । दैत्यराज [को०] । निश्चल (शब्द॰) । असुररिपु-संज्ञा पुं० [१०] विप्णु कि०] । प्रसूति-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ वध्यात्व । वझिएन । २ निवारण (को०]। प्रसूतिका-वि० स्त्री० [सं०] १ जिसका वच्ची न पैदा हुआ हो ।२ अनुरविजय-मन्त्री पु० [स० असुविजयिन् वह राजा जो पराजित | वध्या को०] । की भूमि, घन, मंत्री, पुत्र आदि के अतिरिक्त उसकी जाति भी असूयक'–वि० [म०] १ ईष्र्या करनेवाला । छिद्रान्वैप २ श्रमतुष्ट । | लेना चाहे । । अप्रसन्न (को॰) । विशेष--ौटिल्य ने f+खा है कि दुर्बल राजा ऐसे शत्रु को भूमि असूयक’--संज्ञा पुं० निदा करनेवान व्यक्ति (को०] । अादि देकर जहाँ तक दूर रख सके, अच्छा है। असूया-सज्ञा स्त्री० [सं०] [वि० असूयक] १ पराए गुण मे दोप असुरसा-सा ग्त्री० [अ०] एक प्रकार का तुलसी का पौधा (को०] । लगाना। ३०--सदा सत्य मय सत्यव्रत सत्य एक पति इप्ट। असुरसूदन-सच्ची पु० [सं०] विप्ण, [को॰) । विगत असूया मील से ज्यो अनसूयः सृष्ट ।--स० सप्तक, १० अनुसन--सुमी पु० [सं०] एक राक्षम। कहते हैं कि इसके शरीर पर ३६६ । २ रम के अंतर्गत एक सचारी भाव । ३ क्रोध (को॰] । गया नामक नगर वसा है। उ०—अमुरमेन सम नरक निक असूयिता--वि० [सं० श्रसूयितृ] "० 'अमूयक' (को०] । दिनि । माधु विबुध कुल हित गिरिनदिनि --मानस, १३१ असूयु-वि० [सं०] दे० 'असूयक' [को०] । असुरा--ज्ञा स्त्री० [म०] १. रात । २ वारागना । ३.राशि (को०]। प्रसूर्यपश्या-वि० [स० असूर्य म्पश्या] १ सूर्य को भी न देखनेवाली। असुराई--संज्ञा स्त्री० [सै० असुर+हि० आई (प्रत्य॰)] खोटाई । राजा के अत पुर की स्त्रियो या रानियो के लिये प्रयुक्त जो मरारत | ३०-वात चलत जाकी करै अमुराई नहीन । है कछ, कठोर पर्दे में रहती थी । ३ जिसको मूर्य भी न देखे । परदे अद्भुत मत भरो तेरे दृगन प्रवीन (--स० सप्वक, पृ० १९८ । में रहने वानी, जैसे,---‘अमूर्यपश्या दमयंती को विपत्ति में अमुचाये--सज्ञा पुं० [सं०] १ शुक्र ग्रह ।२ शुक्राचार्य । असुर वने वन फिरना पडा ।। | गुरु को ।। अथा असूर्यपश्या--सज्ञा स्त्री० पतिव्रता या माध्वी पत्नी (को०] । । असुविप--मज्ञा पुं० [सं०] १. अनुरराज । दैत्यो का अधिपति । नि । असुल----मज्ञा स्त्री० [अ० उसूल] दे॰ 'उगल' । १।। लधर नामक अमुरराज । उ०---परम सती अमुराधिप असूल-वि० [अ० उसूल दे० 'बसू न' । । नारी । तेहि वन ताहि न जिनहि पुरारी ।-~मानम, १२३ । असक ---संज्ञा पु० [म ०] १ रक्त । रुधिर । २ मगल ग्रह [को०] । । ३. राज वलि (को०)। ३ कु कुम । केमर [को॰] । ४ योग के सत्ताईस भेदो में से एक अमुरारिमा को०] । पुं० [सं०] देवता । यौ०--असूक्य, असृक्या = रक्तायो । राक्षस । असूक्यात, असुरी--सज्ञा पुं॰ [सं० अक्षुरारि1 ई० 'अमुरारि' । उ०--गो असूक्स्राव := रक्तपात । खून बहना ।। द्विज हितकारी जय अमुरारी मिधुसुता श्रिय फत । असूक्कर----संज्ञा पुं० [सं०] (शरीर मे) रस से रक्त बनने की प्रक्रिया। मानस, १॥१८६ । असग्-संज्ञा पुं० [स० असूक्] दे॰ 'असृकू' [को०] । अमुरा--संज्ञा पुं० [सं०] काँमा नामक धातु [को॰] । असृग्ग्रह-सज्ञा पुं० [सं०] मगन्न ग्रह [को०] । अमुरी-मज्ञा स्त्री० [सं०] १ राक्षसी । २ राई (को०] । असग्दर-सज्ञा पुं० [सं०] मामिकधर्म का अनियमित या अधिक अमुविवा-सच्चा स्त्री० [हिं०] दे॰ अमुविधा' । " होना [को०)। अमुविलास--संज्ञा पुं० [सं०] १ छदविशेष (को०] । असग्दोह--सज्ञा पुं० [स०] रक्तस्राव को । मुस्य–वि० [सं०] अनिचित । उद्विग्न । बीमार | रुग्ण (को॰] । असृग्धरा--मज्ञा ली० [म ०] चमड । चर्म (को०] । असुस्थता--संज्ञा स्त्री० [स०] उद्विग्नतः । बीमारी (को॰] । असग्धारा- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ चमडा २ खून की धारा (को॰) । असूदाण-संज्ञा पुं० [सं०] अनादर (को०) । असृग्वहा- मज्ञा स्त्री० [न०] वह नाडी जिससे रक्तसंचार होता है । मसूझ -वि० [म० अ+हिं० सुमना] १ अँधेरा । अधकार [को०] । मय । जे0==प्रगम अमुझ देखि डर खाई। पर मौ सप्त अग्निमक्षिण-मना पु० [सं०] रक्त निका नना (को॰) । पतालहि जाई ।—जायसी (शब्द)। २ जिम्का बार पार न असृष्ट- वि० [सं०] १ जिसकी मुष्टि न हुई हो । अनुत्पन्न । २. जो दिखाई पड़े । अपार । बहुत विस्तृत । बहुत अधिक । उ०-- चल रहा हो । जारी । ३ जो प्रदान न किया गया हो अथवा क) कटक असूझ देखि के राजा गरव करेइ । दैउ क दत्ता ने जिसका वितरण न हुआ हो [को०) सग्दोह-सज्ञा 1 चमडा । चर्म की धारा [को॰] ।