पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४४४

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असार ३७७ असाद्र असुरर-क्रि० वि० [हिं० सरसर]निरतर । लगातार । वरावर । असह-सजा पु० छानी को मध्य भाग अर्थान् हृदय !-दि०)। उ०—कैहो नद कहाँ छडि कुमार। करुणा करे यसोदा माता असहकार-सज्ञा पु०[स०]असहयोग। सहकार की भावना का अभाव। नैनन नीर बहै असरार-सूर० (शब्द॰) । मेल से काम न करना। असरार--सुल्ला पुं० [अ० ‘सिर' या 'सि' का बहुव०] भेद । राज। असहन'–वि० [स०] जो सहन न करे। असहिष्ण । ईप्नु । | मर्म (को०] । असहन-सज्ञा पु० १ शत्रु । वैरी । २ अधीरता । असहिष्णुता असरु-- सच्चा पु० [सं०] काकडसिंगी नामक पौधा । (को०) । ३ ईष्र्या [को॰] । असल'–वि० [अ० अस्ल] १ सच्चा । खरा । २. उच्च । श्रेष्ठ । असहनशील-वि० [सं०] १ जिसमें सहन करने की शक्ति न हो । ३ विना मिनावट का । शुद्ध । खासि ।। असहिष्ण । २ चिडचिडा । तुनकमिजाज। मसल- सछा पुं० १ जड । मूल । बुनियाद । तत्व | २ मूलधन । असहनशीलता--सझा स्त्री० [सं०] १. सहन करने की शक्ति का ३०-साँचो सो लिखवार कहावे । काय ग्राम मसाहत करि अ भाव । असहिष्णुता । ३ तुनकमिजाज । १. जमा वाधि ठहरावै • "करि अवारजा प्रेम प्रीति को असहनीय:- वि० [2] न पहने योग्य । जो बरदाश्त न हो सके। असल तहाँ प्रतिपावं !- सूर० (शब्द॰) । असह्य । असल’--सज्ञा पुं० [सं०] शहद । मधु [को०] ।। असहयोग---संज्ञा पुं० [सं०] १ साथ मिलकर काम न करने का असल-सच्चा पु० [३श०] एक प्रकार का लंबा झाड जो मध्यप्रदेश, भाव । २ अाधुनिक भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में सरकार के उत्तरप्रदेश, दक्षिण भारत और राजपूताने ( राजस्थान ) में साथ मिनकर काम न करने, उमकी सम्था मे समिनित न पाया जाता है । होने और उनके पद अादि ग्रहण न करने का सिद्धात। नरेंविशेप-इसकी पत्तियाँ तीन चार इत्र लवी होती हैं और हालियाँ मवालात । नान-कोअपरेशन । नेचि की प्रोर झुकी होती है। इसकी छाल में चमडा सिझायो असहयोगवाद--संज्ञा पुं० [सं० असहोग+वाद] राजनीतिक क्षेत्र में जाता है और बीज छाल त रा परियो का औप मे व्यवहार | मरकार से असहयोग करने अर्थात् उसके माथ मि नकर काम होता है । अकाल पडने पर इसकी पत्तियाँ खाई भी जाती हैं। न करने का मिद्धात ।। सकी टहनियो की दातून बहुत अच्छी होती है। जब जाडे के असहयोगवादी--संज्ञा पुं० [स० असहयोग +बादिन] राजनीतिक क्षेत्र दिनों में यह फूना है तत्र बहुत सुंदर जान पड़ता है। मे मरकार से असहयोग करने अर्थात् उसके साथ मिलकर काम मसल- संज्ञा पु० [म०] १ ही नामक धातु । २ शस्त्र छोडने से न करने के सिद्धात को माननेवाला मनुष्य । ५व में अमिम त्रित करने का एक मात्र । ३ शस्त्र [को०11 असहाइ असहाई-वि० [हिं०] दे॰ 'असहयि' । उ०—एक किन्ह असनियत-सच्चा सौ० [अ० अस्लियत १ तथ्य । वास्तविकता । २० नहि भरत भलाई । निदरे रामु जानि असहाई -मनिस,२२२६ जङ । मून 1 बुनियाद । ३ मूनतत्व । सार। असहाय--वि० [सं०] १. जिसे कोई सहारा न हो । नि महाय ।निरअसन-- वि० [अ० प्रल फा० ई (प्रत्य॰)] १. सच्चा । खरा। वनव । निराश्रये । २ अनाथ । लाचार । २ मूल । प्रधान । ३ विना मिलावट का । शुद्ध । असहिष्ण -वि० [सं०] १ जो सहन न कर सके । अमहनणीले । २ सवण- वि० [म०] भिन्न व या जाति का, जैसे-प्रसवर्ण चिडचिडा। तुनकमिजाज । असहिष्णुता-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ सहन करने की शक्ति का अभाव। पता-- सच्चा डी० [सं०] ममान जाति या बर्ण का न होना। असहनशीलता । २ चिडचिडापन । तुनकमिजाजी। 2-फर भी अमवर्णता का सामाजिक दोप उसके हृदय को असही'---वि० [सं० अंसह दूसरे की बढ़ती न मनेवाला । दूमरे को व्यथित किया करता ।-इंद्र०, पृ० १८ } देखकर जरनेवाला । ईष्र्यालु । ३०-प्रसही दुमही मरह मनहिं मन, वैरिन वढहू विषाद। नृपसुत चारि चारु चिरवण विवाह-मेझा पुं० [म०] वह विवाह जिसमे वर और वधू विभिन्न वर्गों के हो (को०)। जीव, सकर गरि प्रसाद }-तुलसी ग्र० पृ० २६५। असवार-सज्ञा पुं० [ सं० अश्वचार, प्रा० अस्सबार, प्रेसवार ] दे० यौ०-असही दुसही । "मवार' । उ०-यवीर घोडा प्रेम का चैन नि चढ़ि अमवार असही-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] ककही या कवी नाम का पौधा । असहा-सजा । वीर ग्र०, पृ० ७० । असह्य–वि० [सं०] न सहन करने योग्य । जो वरदाश्त न हो सके। असार- मझुवा स्त्री० [हिं० अमवार (प्रय}] १० सत्रा' । असहन मि ।। | इनाने को निज पुण्य भुमि पर नमी की अन्नदारी !- असह्यव्यूह–संज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार वह दडव्यूह जिसके पथिक, पृ० ५। दोनों पक्ष फेना दिए गए हो । '- वि० [सं०] १ न नहुने योग्य। असह्य । उ०-मीत अमह असाँच -वि० [k० असत्य, प्रा० असच्च] अमत्य । झ३ । मृपा । विप चिन चढे सुख न चढ़ परजक । बिन मोहन अगहन इन । उ०-सत्यकेतु कुल कोउ नहि वाँचा । विप्र श्राप किमि हो। | T'यू यमो ड्रग -० ग्रहक, १० २४३ । २ घर । इन ।-मानस ११७५ । । ४८ असद्रि--वि० [स० असान्द्र] विन। जो घनीभूत न हो (फो। विवाह ।