पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४४३

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असम ३७६ असम असम---सज्ञा पुं० एक काव्यानकार जिसमे उपमान का मिना असमशर----सज्ञा पुं० [सं०] कामदे। । उ०-- नादि के मुतारि असभव बतलाया जाय, जैसे--प्रनि वन बने खौजन भर जैही । | नवीना । सकल मममसर क ना प्रवीना |----तुन मी (गद०)। मालति कुसुम नही तुम पैहो । असमस्त---वि० [स०] १. अपू । अधूरा । २ अशत । ३. ममामअसमग्र-वि० [सं०] अधूरा । अंश मात्र [को०] । हीन । जो मतिप्न न हो। विम्नृत। ४ जो एक न न हो। असमत-सज्ञा स्त्री० [अ० इस्मत > अस्मत] १ पातिव्रत्य । सतीत्व । ५ असवद्ध । अलग किो०) । | पाकदामनी । २ पवित्रता । निष्कलुपता [को०) । | असमान'–वि० [१०] जो समान या तुत्य न हो । उ०—हुम नोग। यी--असमतफरोश = सतीत्वहीन । कुनडा। असमतफरोशी = नै माधारण नागरिको में अममान 'उत्सव मनाने का निश्चय व्यभिचार ।। किया था इद्र०, पृ० १३० । असमता--संज्ञा स्त्री० [सं०] अममानता । विपमता । असाम्य (को०)। असमान -प्रज्ञा पुं० [फा०, असे नान] १० 'प्राममान' । उ०--- असमद---वि० [म०] १ गर्वर हित । २ विरोधशून्य [को०] । अचन अनि अममान दमौ दिमि थर थर कई --म्मी०, असमन-वि० [सं०] १ विविध रगोवाना । २ विभिन्न मतोवाला पृ० १३ ।। | ३ विपम । समताहीन (को०)। असमानता--मज्ञा ग्वी० [सं०] समानता का ग ाव [को॰] । असमनयन-- सझा पुं० [स ०] दे॰ 'अममनेन’ को । अममाप्त-वि० [२] [सच्चा प्रेमनास्त्रि] अपूर्ण । अधूरा । असमनेत्र--वि० [म ०] जिमके नेत्रं मम न हो, विपम (नाक) हो। असमाप्ति-मझा जी०स०]प्रगत । मापन । म पनि का प्रभाव । असमनेत्र-सञ्ज्ञा पुं० त्रिनेत्र । शिव । असमावर्तक--वि० [स०]जिम का गमापर्न त नकार न हुमा हो[को०] । असमबाण--संज्ञा पुं० [म ०] विषमबाण । कामदेव (को०)। असमावृत--वि०म०]जिम क म मा पर्नन मार न हुअा हो । जो असमय–पशा पुं० [सं०] वि रति का समय । बुरा समय । उ०— विना ममावर्तन मस्कार हुए ही गुरुकुल छोड़ दे। समय प्रतापभानु कर जानी । पिन अति असमय अनुमान असमाहार-व० सपा पु०[म ०] १ अलगाव । पृयक्त । २ अपारियो०] मानम, ११५८ ।। असमाहित---वि० [भ]विन की ए रुग्रवा ने रति । प्रमियर विन । असमय--क्रि० वि० कुपवमर। वेमौका । बेवक्त । उ०---वैने असमय चचल । | नही अचानक तुम्हे जगाया - साकेत पृ० ४१५ । असमीचीन--वि० [सं०] अनुवित । अयुक्ति । बेठीक [को०] । असमर्थ-वि० [म०] १ सामथ्र्यहीन । दुई न । निर्व अशक्त । २ असमूच-- वि० [हिं०] दे० 'ग्रम मूव' । उ०—ामा-भय-मुक्ता, अयोग्य । नाकाधि न । ३ अपेक्षित शक्ति न रखने वाला वित्रापार प्रतिबिंबित अमभूव । बाँध्यौ कनक पास सु र मदिर, [को०] । ४ अभिप्रेतार्थ को ०क्त करने में अक्षम [को०] । करकवीज गहि चूची-मूर०, २।३०६३ । असमर्थता--पज्ञा स्त्री॰ [स०] अक्षमता । अयोग्यता [को०] । असमूचा-- वि० [स० अ+समुच्चय ] १ जो पूरा या समूना ने असमर्थपद--सज्ञा पु० [सं०] वह पद जो वाछित अर्य को प्रकट करने । हो । अधुरा ! ३ कुछ। थोडा ।। | मे समर्थ या क्षम न हो (को०] । असमेव--सी पुं० [सं० अश्वे , प्रा० ५ । ३० ‘प्रश्वमेघ' । असमर्थममास---'ज्ञा पुं० [म ०] व्याकरण में ऐसा ममाम जो अन्वप उ०--दस अगमेध जगत जेइ कीन्हा |--जायसी (शब्द॰) । दोप से दूपिन हो, जैसे--7श्राद्ध गोजी, असूर्यपश्य"--: असमत-व० [सं०] १ जो राजी न हो। विरूद्व । २ ज १ र समस्तपद में अनज, ममाम को यथार्थ मवध पूर्ववर्ती शब्द श्राद्ध किमी की राय न हो। और सूर्य के भाय न होकर भोजी और पश्या के माथ है (को०]। असम्मत--सज्ञा पुं० शत्रु [को०) । असमवायिकारण--पशा ६० [सं०] १ न्यायदर्शन के अनुसार वह असम्पनि--पझा जी• [सं०] [वि० अन-न] १ म मति का ग्र नाव । २ विरुद्ध मत या राय । ३ अनादर (को०। वनने में गले और पेंदे का स योग अर्थात प्रकार प्रादि की असम्पर -संज्ञा पुं० [Toअनि] त नवार दि॰) । 'मावना जो कुम्हार के मन मे थी अथवा जोड़ने की क्रिया जो असम्मि - वि०[१०] १ अमद् ग । अनुप । २ बिना मरा हु र ! द्रव्य के प्राथय से उत्पन्न हुई । २ व पिक के अनुसार वह ३ अपरिमेय [को०)। कारण जिसका कार्य से नित्य मवध न हो, आकस्मिक हो, असाना–वि० [हिं० + नयाना] १ भो न माला ! सीधा जैसे---हाथ के लगाव से मूस न का किसी वस्तु पर प्राघात सादा । छ । या चतुराई ने रहित । उ० --बिबुब मनेह पानी करना । यहाँ हाथ को लगाव ऐसा नही है कि जब हाथ का बानी असे यानी सुनी हँसे धो जानकी तपन तन हेरि हेरि । लगाव हो, तभी मूमन किसी वस्तु पर ग्राघात करे । हया या तुलसी ग्र०, १६४ । २ अनाडी । मूर्छ । और किसी कारण से भी मूमन गिर सकता है। असर-मज्ञा पुं० [अ०] १ १ Trव । दबाव। २. विह्न । निशान असमबायो-वि० [स० असमवायिन् जो समवाय ग्रा नित्य । (को०)। ३ गुण । तापीर [को०] १४ दिन का चौया पहर । मवध रखनेवाला न हो । अनित्य । अनुपगिक [को०) । यौ०--अपर की नमाज । असमवृत–पज्ञा पुं० [सं०]सम्कृत काव्य में प्रयुक्त वे वर्णवृत जिनके असरा--संज्ञा पुं० [हिं० अ दाढ़] प्रामा म देश के कछार में उत्पन्न चारो चरणो मे समान गण न हो । द्विपमवृत्त [कौ । || होनेवाला एक प्रकार का चावन ।