पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४४२

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असम | प्रसदृश असपत्ति), असपत्ती--सज्ञा पुं० [म० अश्वपनि] १ घुई पवारों प्रसद-वि० [सं०] [वि० स्त्री० अदृशी] १ असे मान ! अथवा। । का प्रधान । २ नरपति । राजा । उ०-प्रसंपत्ती अजमेरगढ़ २ अनुचित । अयोग्य [को०] । रहियौ पाँच दिवम्म ।—रा० रू०, पृ० ५३ ।। अश्वृद्धि-वि० [सं०] दुवुद्धि। वुद्धिहीन [को०] । असपत्न- वि० [सं०][वि॰ स्त्री० अपपत्नी] १ बिना पत्नी का । २ प्रमद्भाव--संज्ञा पुं० [म०] १ नव्य न्याय के अनुसार एक दोप जो शत्रुरहित । शत्रुविहीन । ३ जो शत्रु न हो । अशत्रु कि॰] । तर्क के अवयवो के प्रयोग में होता है । २ अस्तित्व का अमाव। असपिंड-वि० [म० असपिण्ड] [ पिडा] जो अपने कुल का अविद्यमानता [को०)। ३ अनुचित विचार या भावना [को०] । | न हो । अपने कुल की मात पीडियो में बाहर का । जिससे ४ दुष्ट स्वभाव को०] । परपरागत रक्तसंबध न हो (को॰] । असद्वाद--सया पुं० [सं०] वह सिद्वांत जो मत्ता को कोई वस्तु ही असमाति --[हिं० अश्वपति] दै० अपत्ति ।-दोउ मयमत | न माने । सु जाँण सेज दिसि बाहुडः । जणि धरती काज, अमपति ग्राहुअसदृत्ति'--वि० [सं०] दुवृत्त । अनावारी । दुष्ट किो॰] । ड६ –ढोला० ६० ५६६ ।। असदृत्ति--संज्ञा स्त्री० भ्रष्टचार । दुष्टता [को०] । असफल--वि० [सं०] १ जो सहन न हो । नाकामयाव । उ०--- अद्व्यिय-सज्ञा पुं० [न०1 अमृत या वरे कार्यों में होने वा ना व्यय । शाह स्वर्ग के अग्रदूत ! तुम अमफल हुए वि सीन हुए ।--काम| खराब कामो मे खच । उ०—हून अाढ्य नव क्रिया असईपय यनी, पृ० ७ । २ पर्य। निष्फन । उ०—तिरस्कृत कर उमको | करी न व्रज-वन-जात्र ।--मूर ० । १ । २१६ । तुम भूल, वनाते हो असफने भवधाम 1--कामायनी, पृ० ५३ । असन'--सज्ञा पुं० [सं० प्रशन] भोजन । अनि । उ०२-हे न असफलता--मज्ञा स्त्री० [म०]मफलता का अभाव । नाकामयाब [को०] । | असन नहि वित्र सुमारा। फिरे ३ राउ मन मोच यूरि।। असवर्ग--संज्ञा पुं० [फा०] खुरासान में होनेवाली एक प्रकार की |-नानने १ । १७४ ।। लवी धाम । असन’म पु० [म०] १ फेंकना 1 क्षेपण २ पीनमाल वृक्ष [को०] । विशेप-इसमे पीने या मुनहरे फूत्र लगते हैं। मुबाए हुए फू ।। प्रसनप–ना स्त्री० [सं०] माल या गोकर्णी नामक वृक्ष [को॰] । को अफगान 57ापारी मुलतान में लाते हैं जहाँ वे अफ नयेर के असना-मज्ञा पुं० [सं० अशना] पीतगाल वृक्ष । माथ रेशम गने के काम में आते हैं । विशेप-पद् वक्ष शान की तरह का होता है । इसके हीर की असवाव--संज्ञा पुं० [अ० 'सवब' का बहुत व०]चीज । बग्तु । साम न । नेकडो दृढ होती और मकान बनाने के काम आती है त या प्रयोजनीय पदार्थ । ३०--सव असवाव डाढो मैं न काढो ते न भूरापन लिए हुए काले रंग की होती है । इम पेड की पत्तियां काढौ, जिय की परी सँ पार महन भडार को 1-जुलमी ग्र०, माघ फागुन में झड़ जाती हैं। पृ० १७३ । २ कारणममूह (को०] । आता बी० [सं० प्रसन्यता प्रशिष्टता । बेहूदगी । असनान-मज्ञा पुं० [सं० स्नान, '१० हि० अस्नान] नहाना स्नान । उ०--नृपति मुरसरी के तट प्राइ, कियौ प्रसनन । असभ्य-वि० [म०] १ म भा या गोष्ठी में बैठने के नाकाबिन । मृत्तिका नाइ ।-नूर ० १ । ३४१ । । २ अशिष्ट । आँवार 1 उजड्ड। उ०--हम मूर्ख अौर अमभ्य थे, प्रेसनि. –पल्ला गुं० सं० अश]ि १ वज्र । हीरा। उ०-- Tी की उमसे विदित होता यही }-मारत०, पृ० ११९ । कमनि रही क पनि सू कारों साँप, दमन की लसनि अॅमनि असभ्यता--संज्ञा स्त्री० [सं०] अशिष्टता । गैवारपन । दहियत है !--गग०, पृ० २४। २ विद्युत् । उ०--जूके ने । असमज -सज्ञा पुं०[सं० अपनञ्ज र [१ दुविधा । पशोपेश । प्रागाअमनि केतु नहि राहू ---मानस ६।३१ । पीछा । फेरफार । उ० --वना अाइ असम जस अाजू !-मानम् असनी–मन्ना मी० [म० अश्विनी] नक्षत्र त्रिशेपं ।। १1१६७। २ अडचन । अडप । कठिनाई । चपकु लिनुस । अमनद्ध-वि० [म०]१ विना शस्त्र का । २ जो तैयार या मुस्तैद ने उ०--तात तुम्हहि मई जानउँ नीके । करउँ काह असे मजसु जीके ।-मनम, २२६३ । हो । अतत्पर । ६ अहकारी । उगडी । ३ विद्वत्ता में अपने को नगानेवाला । पहितमानी । क्रि० प्र०-मे पडना --होना। | ३ सूर्यवंशी राजा सगर का वडा पुत्र जो रानी केशी ने उत्पन्न या असन्निकर्प–प्रज्ञा पुं० [स०] निकट या पाम न होना। २ दूर असमजस-शि० १ जो व्यक्त न हो । अस्पष्ट । २ ग्रनुचि ।। | होना को०] । अनुपयुक्त । ३ मूर्खतापूर्ण' । वुद्धिविरहित । ४ अयुक्त । असन्निधान--ज्ञि। यु० [० 1१ दूरता 1२ अनुपस्थिति । अभाव। असगत को०)। [को०) । असमात--संज्ञा पु० [सं० अश्मत चूल्हा ।। नावाज्ञा स्त्री० [सं०1 दुरी । असमीपना। २ धनिष्ठता। असम'--वि० [सं०] १ जो भम् या तुन्न न हो । जो वरपर न हो। अस म । उ०---जो अगम मुगम मुभाव नि म । मम । असन्निहित--वि००1१ जो निकट न हो । २ अनुचिन नि स सम सीतल मदा |--मानस, ३।२६।२ विपम । ताक । रवा हुग्रा (को०) 1 ।। उ०—लोचन असम अंग भसम विना की नाई। ---पसा कर पतापु)--राज्ञा पुं० [हिं०] ६० 'अम्पत्ति' । उ०—-अटक हीण ६ ग्र०, पृ० २५६ । ३ ऊँचानीचा । ऊबड़वावट । असती पाय ति अवमुर पायौ |--[० रू०, पृ०,१६ । | का प्रभाव को]। --