पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४४०

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अतरौष असर्गव प्रसरोव-संज्ञा पुं० [सं०] हानि का न होना । अक्षति कि०] । असह्तव्यूह-संज्ञा पुं० [सं०] सेना को छोटे छोटे समूहों में अलग- असलक्ष्य--वि० [सं०] जिसे लक्षित न किया जा सके। दुर्योध्य [को॰] । अलग खडा करना । असलक्ष्क्रमव्याय--संज्ञा पुं० [स० असलपक्रमब्यग्य] विवक्षि ना- असवि० [सं० ईदृश अथवा एष = यह] १ इस प्रकार का । ऐसा । न्यपरवाच्य ध्वनि का एक भेद जिसमे रसरूप लक्ष्य तक। उ०--ग्रस विवेक जव देइ विधाता ! तय तजि दोप गुनहि मनु पहुंचने के क्रम का पता नहीं चलता, यद्यपि 'क्रम का निर्वाह राता।--मानस १॥ १॥२ तुल्य । समान । उ० ---जो सुनि वहाँ भी होता है, इसे रसध्वनि भी कहते हैं । सरु अस लाग तुम्हारे । काहे न बोनहु वचनु सँ मारे ।--मानस असावर--वि० [सं०] छिराने के अयोग्य | अनाच्छादित [को॰] । । २। ३० ।। असकी --वि० [सं० अशक्त, प्रा० असषक हि० असक] शक्तिहीन । असवृत--वि० [सं०] अनाच्छादित । अरक्षित । खुला हुआ [को०] । दुर्वन । असमर्थ उ०---कसि असक घोर कसि द्रव्य दड | असवृत--सज्ञा पुं० [सं०] नरकविशेप [को०] । पृ० रा०, ५७ । २९५ । अरावधानिक--वि० [सं०] सविधान के प्रतिकूल ।। असकत -वि० [स० अशक्त] दुर्वल । कमजोर । उ०—उर भरम अव्यवहित--वि० [म०] (द शकाल के) व्यवधान से रहित [को॰] । छेहू लैण अगम असफत उन उकनी । कर भाव पार गुप्त असंशय'--वि० [सं०] १ स शयरहिन । निविवाद । निश्चित । २. सर करण साची नाम सरबती ।--]० रू०, पृ० ६ । | यथार्थ । ठीक । । असकताना--शि० अ० [हिं० प्रभास केन] आलस्य में पडना । असशक्रि० वि० नि सदेह । वेशक || अनस्य अनुभव करना, जैसे-'असकताअो मत अभी उठो अश्रव-वि० [सं०] जहाँ साफ साफ सुनाई न दे (को॰] । और जाओ।' (शब्द०) ।। माश्लिष्ट'-वि० [सं०] जो मिला हम न हो । पृथक् । अलग को०]। असकति----वि० [स० अशक्ति] शक्तिरहित । अशक्त । उ०-हौं अम- असश्लिष्ट-सज्ञा पुं० [सं०] शिव (को०] । कति, ज्यो त्यो इतहि सुमन चुनौगी चाहि। मानि विनै मेरी अाषित-वि० [सं० प्रसक्षिप्त प्रा० असवित्त] विस्तृत ! प्रचुर । अली, और ठौर तू जाहि ।-भिखारी प्र ०, भा॰ २, पृ० १६१ विपुल । उ०-~-गज वाज लूटे असपित माल । लियौ सग्रहे असकन्ना-- संज्ञा पुं० [स० अस = तलवार +करण = करना] दो अस्सयत्ती भुग्नाल -पृ० ०, ५७।२०६ ।। अगुल चौडा और जो भर मोटा लोहे का एक औजार जो रेती अससक्त-वि० [सं०] १ जो स नक्त न हो । आसक्तिरहित । अना- के समान खुरदुरा या दानेदार होता है और जिससे स्थान के संक्त । २ विभक्त (को॰) । 'भीतर की लकड़ी सफ की जाती है । सासक्ति--सज्ञा स्त्री० [स०] १ लगाव का न होना। निलप्तता ।। असकल--वि० [स०] जो पूर्ण या समग्र नै हो । असमग्र [को॰] । २ विरक्ति। सापारिक विपयवासनाशो का त्याग । असक्त--वि० [सं० अशक्त ] शक्तिहीन । उ० --ही अर्यसतति अर्ज असारो- वि० [सं॰ अस गरिन्]१ स रार से अल में रहने वाली । | कैसी अध और अशक्त है - भारत०, पृ० १५१ । विरक्त । २ स मार से परे । अलौकिक । असक्त –वि० [सं० अशक्त] लिप्त । चिपका या सटा हुआ । प्रसंसृति--सज्ञा स्त्री० [सं०] स मृति का अमाव । मुक्ति कि०] । उ--विपय अमक्त, अमित अब चाकु । तव कछु न असृष्ट-वि० [सं०] ससृष्टि से रहिन । सबहीन । वेमे न [को०]] से भरियो ।—सूर ० १ । १०२ । असस -वि० [स० असशय दे० 'असंशय' । ३०-स के दिखाय मिर असक्त-वि० [सं०] १ जो ग्रासक्त न हो । तटस् । उदासीन । ३. कौं जो तेहि दोष असस, ग्रौ सहर्ष सत्रु के गुन क भाषि असग्लन । ३. असयुकेन । ४ सामरिक विपयो से विरक्त प्रससे ।-रत्नाकर, भा० १-पृ० ४७ । [को॰] । प्रकृत--वि० [सं०] १ विन। सुधार हुआ। अपरिमाजित । २ असक्तारम--संज्ञा पुं॰ [सं॰ असक्तारम्भ] १ वह भूमि जिम में बहुत जिसका संस्कार में हुअा हो । व्रात्य । ३ असं [को०] । थोडे श्रम से अन्न पैदा हो ।२ कम मेहनत और थोडी बर्षा यो०--असस्कृतीलकी = अस्तव्यस्त केशोवाला । से हो जानेवाली फसल । २९जुत--वि० [स ०] १ जो प्रसिद्व नै हो । अज्ञात । २ अररिचित। असक्थ--वि० [सं०] सवयहीन । विना जघवाली 1 [को०] । ३ अद्भुत । ४ विना लगाव का । वेमेले [को०) । असगध--सज्ञा पुं० [स० अश्वगधा] एक सीधी झाडी जो गर्म प्रदेशो असस्थान -सज्ञा पुं॰ [सं०1१ व्यवस्था का अभाव । अक्र में । २. मे होती है और जिसमे छोटे छोटे गोल फने लगते हैं। से पधहीनता । ३ अस्थिरता । श्रुटि या अभाव (को॰] । पर्या--प्रवगधा । हयगधा । वाजिगधा । तुरग गधा । तुरगा । असस्थित-वि० [सं०] १ अनवस्थित । २ च ।। ३ व्यवस्थारहित । वाजिनी । हुय। । वलन्द।। वातघ्नी । श्याम ना । कामरूपिणी । ४. अस कनित । असगृहीत (को०] । काला । गंधपत्री । बाराहपश्री । वाराहक । वनजा । असोस्थिति--सज्ञा स्त्री॰ [स] ऊपहीनता । अव्यवस्था को०] । हयत्रिया | पीव | पलाशपर्णी। कबुका । कबुकाष्ठा । असेहत'-वि० [सं०] जो सहत या मिला हुआ न हो । बिखरा हुआ। प्रियकारी । अवरोहा । अश्वारोहका । कुत्रानी । रमायनी । तिक्ती। असहत-सबा पुं० १ पुरुप । अात्मा (साख्य) । २. असह्तब्यू विशेष--इसकी मोटी मोटी जड दवा के 1.में अती है और | (को०] । बाजारों में विकती है। जगच वन कारक त । वात और माफ | [को०] ।