पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४३९

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मगंपति! असंयोग मनपनि-शा री० [न० प्रभम्पत्ति] १. दुम । २.मफन । यह असंभार)---वि० [सं० प्र= नहीं + पम्भार] १ जो में भालने योग्य '५न । अभाव फ०] । न हो । जिमका प्रवध न हो सके। २ अपार । बहुत बड़ा । अनापत्ति'-'३० प्रभागा । दे’ि वि०] । उ०--बिरहा समुद भरा असमारा। भर मेति जिउ लहरिन्ह अप-1: पु०म० अमम्पर्फ]गय न होना । सबध का अभाव [को०] । मारा ।—जायसी ग्र०, पृ० ७४। । अस्प-वि० [५० ग्र+मम्यकन्] व पर्क या सवध न रखनेवा वा । अभाव-वि० [सं० सम्भाव्य, प्रा० असभव्य] जो स नव ने प्रापुर्ण-~-० [T० ग्रनम्पूर्ण] अपूर। जो पूरा न हो। अपूर्ण (को०] । हो । अनहोना । उ०—-प्रस नाव बोजन प्राई है ढीठ ग्वालिनी अपक्त-वि० [म० अमम्पृक्त जो किसी के मपर्क में न हो । तटस्थ । प्रति । ऐमो नाहि अचगरी मेरी कहा बनवनि ३न ।--सूर०, असाप्रमात--- वि० [० असम्प्रज्ञात] जो पूर्ण रूप से ज्ञात नै हो । १०।२६० । | अरे । म जाना होगा । असंभावना-- सच्चा स्त्री० [सं० असम्भावना] [ वि० असभावित, अप्रिज्ञातनमावि-ज्ञा स्त्री० [स० असम्प्रज्ञातसमाधि] योग की असंभाव्य ] स भावना का अमाव । अनहोनीन । प्रभवितव्य 11 । दी गमाधियों में में एक जिम में न केवल बाहरी विपयो की । उ०—भइ रघुपति पद प्रीति प्रतीती दारुन अस नावना यCिT 17 ग्रौर नेय की भावना भी लुप्त हो जाय । बीती ।--मानस, १ । ११९ । निल्पिं नमावि । असभावनीय-वि० [सं० अंसम्भावनीय] दे० 'असाध' । अविव'--।। पुं० [अ० असम्बन्ध]सावधहीनता । सविध का न होना असंभावित--वि० [सं० असम्भावित] जिस की स भावना न रही [सं०] । हो । जिमके होने का अनुमान न किया गया हो । अनुमान अमावेध-वि० श्राद्ध (को॰) । विरुद्ध । अबढ़--वि० [० अम्बद्ध] १ जो मिला न हो। जो मेन मे न १ जी मिला न हो। जो मैने में न असभावी--वि० [सं० प्रप्तम्भाविन्] जिसका होना अस भव हो । वाटावी-वि० [सं० अमुम्भ हो । २ विलगाय । पृथक् । अलग। ३ ग्रनमि न । बेमे न । भविष्य में जिसका होना नामुमकिन हो कि । | बिना मिर पैर का । अडवर्ड । असभाप----वि० [सं० सम्भाव्य] १ जिसकी स भावना न हो। यौ०-अपद्धत्र नाप । अनहोना । उ०—-या अस भाव्य हो यह राघव के लिये असावातिशयोक्ति---मज्ञा स्त्री॰ [म० असम्बन्धातिशयोक्ति अतिश- धार्य (~-अपरा, पृ० ४४ । २ जो समय में अाने योग्य न हो । योनि प्रकार का एक भेद जिसमें प्रस्तुन या वर्णनीय की दुर्बोध [को॰] । तुलना में प्रस्तुत या अवर्णनीय को हीन और अयोग्य सिद्ध असभाज्य----वि० [सं० सम्भाष्य]१ न कहे जाने योग्य । न उच्चा- किया जाता है । जैसे-अति मुदर मुख लखि तिय तेरो । रण करने योग्य । १ जिससे वातचीत करना उचित ने प्रदर हमें न करत समि केरो । पद्माकर ग्र०, पृ० ४०। हो । बुरा । अवाघ--वि० [१० असम्वाध] १ विना वाधा का । अभाव । २ । असभाष्य--सा मुं० बुरा वचन । खराब वात । मुक । ३ जे में करी न हों । चौडा । विम्वृन । ४ सन्नाटा । ५ जिनमें कोई दुप या कष्ट न हो । कष्टहीन [को०)। असभूति-सज्ञा स्त्री० [सं० असम्भूति] १ अस्तित्वहीनता । स मूति का अभाव । ३ पुनर्जन्म न होना । ३ असमवती । ४ अन- अम्बाधा--गशा रनौ० [म० असम्याध] एक वणवृत जिनके प्रत्येक होनी घटना। ५ अव्याकृति प्रकृति (को०] । चरण में मगण, नगण, नाग, नगण प्रौर दो गुम होते हैं । 5, ।, ।, ।।5, 5 जैसे---माना नासो गग कठिन भव की असभृत--वि० [सं॰ असम्भून] १. अप्रत्न मिद्ध। मह त । २ जिमका पोरी । जाते ह नि कि भवति तुमरे नीरा । गावो तेरी ही पोपण सम्पक् रीति से न हुआ हो वि.] । गुण निग दिन वैयघिी । पायी जाते वैगि मुमगति असवाधा। अभाज्यवि० [सं० असभोज्य--वि० [सं० असम्भोज्य] जिसके साथ बैठकर खाना वजन अनाभ)--- वि० [१०] ६० ' मा' । उ०—-मुनि अनिदेय चद हो [को०] । निन, मन भनि प्रारम, जय जाप हुयि होम मब, लग्यौ कज्ज अस भ्रम'--सच्चा पुं० असभ्रम--सच्चा पुं० [सं० असम्भ्रम]हडवडी या अधीरता का प्रमाय । दहा में १-० ०,६। १४९ । धीरता [को०)। अाभव'--वि० [म० अम्भ3] जो स च न हो। जो हो न सके। अाभ्रम-वि० धीर । स्वस्यचित्त । अनुग्ने [को० । अनहोना । नामुमकिन । उ०-- जायें वे इन गेह ही से हुई, असयत--वि० [सं०]मय मरहित । जो नियमबद्ध न हो। क मशून्य । या प्रगभव, , निश्चय + 1- साकेत पृ० १७८ । । अलायम--सी पुं० [सं०] सयम का अभाव । इद्रियों को या में ने अभिव--- मग १० १ एर यापान कार जिममै दिपाया जाय रखना। f 'जे पनि हो गई है उस का होना अग भव या । उ०—किहि असयमो-वि० [सं० सयमन्] जो सयमी न हो । ।। जय निधि पनि दुन्नर । पोवहि घटज, उल घहि वदर । असयुक्त--वि० [सं०] न मिला हुआ । विभक्त । अलग [को०] । (शब्द॰) । ३ घनम्तिस्य । न होना (०] । ३ अनहोनी । असायुत--वि० [मं०] दे॰ 'असंयुक्त' ।। म• इतर इe} । असंयुत-सज्ञा पुं० विष्णु की एक नाम [को॰] । १६ - वि० [4० अगम्भ- १ नि । हेना में भर न छ । असयोग--एषा पुं० [भ] १ अवसर या योग का प्रभाव । २ सुमि- ३.३ में न माने योग्य (०] । सन का प्रभाव किये ।