पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४३७

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असंक्रांतिमास अष्ट्रम अष्टम–वि० पुं० [सं०] आठवाँ । उ०--सप्तम चेतनता लहै सोइ । | पकाया हुआ पुरोडा । २ वह यज्ञ जिसमे अष्टाकपाल अष्टम मास पूरन होइ ।--सूर० ११३१४ । पुरोडाण काम में लाया जाय । अष्टमान--संज्ञा पुं० [सं०] अाठ मृट्टी का एक परिमाण अर्थात् एक अष्टाकुल--संज्ञा पुं० [सं०]दे० 'अष्टकुल' । उ०--पारथ मीन सोधि । कुडव । | अष्टा कुल, तव जदुनंदन पाये ।- सूर ० १॥२९ । । अष्ट्रमिका-सज्ञा धी० [सं०] १ प्राधे पल या दो कर्ष का परिमाण। अष्टाक्षर'-- संज्ञा पुं० [स०] १ आठ अक्षरों का मंत्र । २ विष्णु २ चार तोले का एक परिमाण । भगवान् का मय-- 'ॐ नमो नारायण' । ३ बल्लभ कुल के । अष्टमी--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ शुक्ल और कृष्ण पक्ष के भेद से आठवीं मतवालो के मत से श्रीकृष्ण शरण मम' । तिथि । ठे। २ क्षीरकाको नी । पयस्वा । अष्टाक्षर- वि० अाठ अक्षरो का । अाठ अक्षरवाला । अष्टमी- वि० स्त्री० [सं०] आठवी ।। अष्टादस--वि०[स० अष्टादश] अठारह । उ०-रोमाजि अष्टा- अष्टमुष्टि--- सज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक माप । कु चि (को०] ।। दस मारा । अस्थि सैल सरिता नस जारा ।—मानस,६।१५। अष्टमूर्ति-सज्ञा पुं० [म०] १ शिव । उ०-गनिये जु जीव प्राधार अष्टाध्यायी--सज्ञा स्त्री० [स०] पाणिनीय व्याकरण को प्रधान ग्रय पुनि अष्ट (म) मूर्ति इनते कहत ।-शकु तला, पृ० ३ । जिसमें ग्राठ अध्याय हैं । २ शिव की अाठ मूतिय क्षिति, जल, तेज वायु प्रकाश, अष्टापद-सज्ञा पुं० [सं०] १ सोना । २ शरभ । उ० व विद्या मी । जयमान, अर्क और चद्र, अथवा सर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, ।। शानद दानि । युत श्रप्टापद मनु शिवा मानि 1-राम च० पृ०, पशुपति, ईशान और महादेव ।। १०० । ३ लूता । मकडी । ४ कृमि । ५ कैलास । ६ धतूरा। अष्टलोह-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अष्टधातु' (को०] । अष्टावक्र—संज्ञा पुं॰ [सं०] १ एक ऋषि । २ वह मनुष्य जिसके अष्टवर्ग--सज्ञा पुं० [२०] जीवक, ऋचमक, मेदा, महामेदा, काकोली, | हाथ पैर अादि कई अंग टेढे मेठ हो । क्षीरकाकोली, ऋद्धि और वृद्धि, इन आठ ओषधियो का | अष्टाश्रि–वि० [सं०] प्राठ कोनेवा ।। अठको।। सभाहार । २ ज्योतिष का गोचर विशेष । ३ नीतिशास्त्र के अष्टाश्नि- सज्ञा पुं॰ वह घर जिसमें प्राट वोन हो । अनुसार किसी राज्य के ऋषि, वस्ती (बाजार शादि), अष्टि-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ सोलह अक्षर की एक वृत्ति जिसके चचला, दुर्ग, सेतु, हस्तिबधन, खान, करग्रहण और संन्यसंस्थापन का चकिती, पचचामर आदि वहृत भेद हैं । ३ मो हु की सब्य।। समूह । ३. खेलने की बिसात [को०) । ४ थी न कि०] । ५ फ7 का अष्टश्रवण-सझा पुं० [सं०] ब्रह्मा [को०] । | गूदा ।' गिरी' को०] । अष्टश्रवा--सज्ञा पुं० [सं० अष्टश्रवस्] ६० ‘अष्टश्रवण' (को॰) । अष्टसिद्धि--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] योग द्वारा प्राप्त होनेवाली अाठ अलौकिक अष्टी--मज्ञा स्त्री॰ [स०] दीपक राग की एक रागिनी । शक्तियाँ जिनके नाम हैं अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, अ ष्टि-- सच्ची श्रीः [सं०] १ गुठली । ३ वीज (को॰) । प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व तथा वशित्व (को०] । अष्ठीला—संज्ञा स्त्री० [सं०] १ एक रोग जिसमे मूत्राशय में अफरा अष्टाग-सञ्ज्ञा पुं० [स० अष्टाङ्ग][वि॰ स्त्री० अष्टांगी]१ योग की क्रिया के होने से पेशाब नहीं होता और गट पड़ जाती है जिसमे मना- श्राः भेद-यम, नियम, शासन प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, वरोध होता है और वम्ति में पीड़ा होती है । २ पत्र की ध्यान और समाधि । उ०—भक्ति पथ कीं जो अनुमरे। सो । 'गोली 1 ३ गूदी। गिरी [को॰] । ४ वीजान्न (को०] । अष्टाग जोग कौं करे ।-सूर० १॥३६४ । २ आयुर्वेद के आठ 2 'अठीलिका--सच्चा स्त्री० [सं०] १ एक प्रकार का घाव । २ पत्थर विभाग शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या कौमारभृत्य, | का टुकड़ा [को०] 1. अगदतत्र, रसायन तत्र अौर वाजीकरण । ३ शरीर के अाठ । असक - वि० [हिं॰] दे॰ 'शक' । ३०--डकि डहकि परिचे अग-जानु, पद, हाथ, उर, शिर, वचन, दृष्टि, बुद्धि, जिनसे प्रणाम । । सव काहू । अति असक मन सदा उछाहू --मानस, ११३७ । करने का विधान है । ४ अर्घविशेष जो मूर्य को दिया । जाता है। इसमे जल, क्षीर कुशाग्र, घी, मधु, दही, रक्त अस का -सच्चा स्त्री० [सं० अशङ्का] सदेह । शुवा । पाक 1 उ०--- बदन और करवीर होते हैं । अस विचार सर्व तजहु अस का 1 सवहि • If सकरु अक वि।। अष्टाग-वि० १ आठ अवयववाला । २ अठपहल । । -मानस १७२। अष्टार्गमार्ग-सज्ञा पुं० [सं० प्रप्टाङ्ग मार्ग] बुद्ध द्वारा प्रतिपादित दु ख से असकुल-वि० [अ० असङ्कुल] जहाँ जनम मूह म हो । पुना है प्रा । त्राण दिलानेवाला आठ सूत्रों का मार्ग सम्यग्दृष्टि सम्य- प्रशस्त,। चौडा को॰) । ग्सकल्प, सम्यग्वाक्, सम्पक में, सम्यगाजीव, सम्यग्व्यायाम, असकुल---सझा पुं० १ राजमार्ग । चौडी सडक [को०] । सम्यक्स्मृति, सम्यक्समाधि [को०)। असक्रात--वि० [स० असङ्क्रान्त] जो स्थानांतरित न हुआ हो । ज्ञा पुं० [सं० अष्टांगयोग] दे० 'अष्टाग" [को०] । । जिसका स्थान वदला न हो [को । अष्टागायुर्वेद-मज्ञा पुं० [स० अष्टाङ्गायुर्वेद] ३० 'अष्टाग" [को०] । असाझात- माझा पुं० अधिक मास । मलमास को ।। अष्टागी--वि० [सं० आटाइन्] आठ अगवाला । असक्रातिमास--सक्षा 'पु० [म० असङ्क्रान्तिमास] विना संक्राति का अष्टाकपाल--सज्ञा पुं० [स०] मिट्टी के आठ वरतनो या खप्परो मे महीन । अधिकमास । मलमास ।