पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४३६

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मल अष्टांगन टकमल-सज्ञा पुं॰ [म०] हठयोग के अनुसार मूलाधार से ललाट अष्टधातु-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] अाठ धातुएँ'-मोना, चांदी, ताँवा, राँगा, तक के अाठ कमल जो, भिन्न भिन्न स्थानों में माने गए हैं- जस्ता, सीसा, लोहा और पारा । मूलाधार, विशुद्ध, मणिपूरक, स्वाधिष्ठान, अनाहत (अनहद) अष्टनायिका--सज्ञा स्त्री० [२०] अाठ नायिकाएँ । अज्ञाचक्र, सहस्रार चक्र और सुरति कमल । विशेष--पुराणानुसार आठ प्रधान शक्ति --उग्रचर्ड, प्रचडा, अष्टकर्ण-सुज्ञा पुं० [सं०] ब्रह्मा (को०] । चडोग्रा, चडनायिका, चामुडा, चडा, अति चडा अौर घडवती । विशेप--चार मुख होने के कारण ब्रह्मा के आठ कान हैं, अत। कृष्ण की आठ पटरानियां--रुक्मिणी, सत्यभामा, जाबवती, इन्ह अष्टकर्ण कहा जाता है । कालिंदी, मित्रवृ दा, नाग्नजिती, भद्रा और लक्ष्मणा । इद्र की अष्टकण-संज्ञा स्त्री॰ [स०] वह गाय जिसके कान पर आठ की आठ नायिकाएँ-उर्वशी, मेनका, रमा, पूर्वधिती, स्वयप्रभा, संख्या (८) का चिह्न अकित हो । ३०--ऋग्वेद में ऋषि भिन्नकेशी, जनवल्लभा और धृतात्री (तिलोत्तमा) । साहित्य में नाभाने दिष्ठ हजार अष्टक गौएँ दान करने के कारण राजा वणित अाठ नायिकाए–वामकुसज्जा, विरहोत्कठिता, सावण की स्तुति करता है ।--मा० प्रा० लि०, पृ० ११ । स्वाधीनम का,कलहातरिता,खडिता, विप्रलव्धा,प्रोषितभतृका अष्ट का-सा स्त्री॰ [सं०] १ अष्टमी । २ अगहन, पूस, माघ और और अभिसारिका कही गई हैं। फागुन महीने की कृष्ण अष्टमी । इस दिन श्राद्ध करने से अष्टपद-संज्ञा पुं०, वि० [सं०] दे० 'अष्टपाद' । पितरो की तृप्ति होती है । ३ अष्टमी के दिन का कृत्य । अष्टका अष्टपदी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ आठ पदो का एक समूह । एक प्रकार याम । ४ अष्टका मे कृत्य श्राद्ध । | का गीत जिसमे आठ पद होते हैं। २ बेला नाम का फून या अष्टकुल-सच्ची पुं० [सं०] पुराणानुसार सर्पो के आठ कुल, यथा- उनका पौधा । शेष. बामुकि, कवन ककटिक, पद्म, महापद्म, शेख श्रीर अष्टपाद?--सज्ञा पुं० [म०] १. शरभ । शार्दूल । २ लूता । मकडी । कुलिक। किसी किसी के मत से-क्षक, महापा, शव, कुलिक, ३. आठ अगोवाला एक जतु । ४ अर्गला । सिटकिनी (को०]] कवन, अश्वर, धृतराष्ट्र और वाहक हैं ।। ५ कैलास पर्वत (को॰] । ६ मोना । स्वर्ण । ७ करडे की बनी अष्टकुलाचल-सज्ञा पुं० [सं०] अाठ प्रमुख पर्वत-नील, निषध, विसात (०] । ६ एक कीट [को०] । ६ जगली चमेली [को०] । विध्याचल, माल्यवान्, मलय, गंधमादन, हेमकूट और अष्टपाद?--वि० आठ पैरोवाला (को०] । हिमालय (को०) । अष्टप्रकृति--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ शुक्रनीति के अनुसार राज्य के ये अष्टकुली–वि० [म०] साँपो के आठ कुलो में से किसी में उत्पन्न । अाठ प्रघाने कर्मचारी-सुमत्र, पडित, मंत्री, प्रधान अमात्य, अष्टकृष्ण--सज्ञा पुं० [सं०] वल्लभ कुल के मतानुसार अाठ कृष्ण, प्राविवाक और प्रतिनिधि । यथा-श्रीनाय, नवनीतप्रिय, मयूरानाथ, बिट्ठलनाथ, द्वारका विशेष-महाभारत, मनुस्मृति आदि में पहले सात ही अंग कहे नाथ, गोकुलनाथ, गोकुनचद्रमा और मदनमोहन । गए हैं। अष्टकोण'--सज्ञा पुं० [सं०] १ वह क्षेत्र जिसमे आठ कोण हो । २. राज्य के अाठ अग--राजा, राष्ट्र, अमात्य, दुर्ग, सेना, २ तंत्र के अनुसार एक यत्र । ३ एक प्रकार का कु डेन जिसमें को, सा मत तथा प्रज्ञा । ३ शरीर की आठ प्रकृति- अाठ कोण होते हैं । दिति, जन, पावक, गगन, समीर, मन, बुद्धि, 'प्रौर अहकार । अप्टकोण?--वि० आठ कोनेवाला । जिसमें आठ कोने हो । अष्टप्रधान-सज्ञा पुं० [सं०] राज्य के आठ प्रकार के प्रधान जैसे-- अप्टंगव-संज्ञा पुं० [सं० अष्टगन्य] अाठ सुगधित द्रव्यो का समाहार ! वैद्य, उपाध्याय, सचिव, मत्री, प्रतिनिधि, राज्याध्यक्ष, प्रधान | दे० 'गधाप्टक' । और अमात्य । शिवाजी के अष्ठप्रधान ये थे-प्रधान, अमात्य, अष्टछाप--सज्ञा पुं० [म० अष्ट+हि० छाप वल्लभ सप्रदाय के सचिव, मंत्री, लिपिक या लेखक, न्यायाधीश, सेनापति, और प्रसिद्ध अप्ठ कवियों का वर्ग, जिनके नाम हैं-सूरदास, कु भन न्यायशास्त्री [को०] । दोस, परमानददास, कृष्णदास, छीतस्वामी, गोविंदस्वामी, चतुर्भुजदासे और नददास । अष्टभुजा-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] दुर्गा । प्टताल-सा पुं० [म०] ताल के अाठ प्रकार-प्राडे, दोज, ज्योति, अष्टभुजी-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'अष्टभुजा' । | चंद्रशेखर गजन, पचनाल, रूपन और समताल । अष्टभैरव--संज्ञा पुं० [सं०] शिव के आठ गण जिनके नाम है, प्रमि- अष्टदल-सच्चा पुं० [सं०] आठ पत्ते का कमल । ताग. सहार, रुरु, काल, क्रोध, ताम्रचूड, चंद्रचूड तथा महा- भैरव [को०] । ४६न-त्रि० १ आठ दल का । २ आठ कानो का । अाठ पहने का। | अष्टमगल---सज्ञा पुं० [स० अष्टमङ्गल] १ आठ मग नद्रव्य या पदार्थ-पिह, वृर, नाग, क नश, पखा, वैजयंती, भेरी प्रौर अश्वत्य, गूजर, पाकर, वट, ति , सरसो, पायस और घी । अष्टधाती--वि० [सं० अष्ट+घातु] १ अष्टधातु से बना हुप्रा । दीपक । किसी किसी के मत से--- ह्मण, गो, अग्नि, सुवर्ण, घी, सूर्य, जल प्रौर राजा हैं। २ एक घृत जो वच, कुट, १३। मजवुन । ३ उत्पाती । उपद्रवी । ४ जिसके मातापिता को ठीक ठिकाना न हो । वर्णस कर । ब्राह्मी, मरमी, पी लि, सारित, सें नमक प्रो घी इन प्राड औषधियो से बनाया जाता है । अष्टद्रव्य-संज्ञा पुं॰ [सं०] आठ द्रव्य