पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४३४

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अश्वगोयुग अश्वविद् अश्वगोयुग--संज्ञा पुं० [१०] घोडे की जोडी [को०) । विशेष--कहते हैं, किन्नरो का मुह घोड़ो के समान होता है। अश्वगोष्ठ --संज्ञा पु० [म०] घुडमाल । अस्तवल [को० ॥ अश्वमेद –संज्ञा पुं० [ म० अश्वमेघ ] दे॰ 'अश्वमेध' । ३० अश्वग्रीव--सज्ञा पुं० [म०] कश्यप ऋपि की दनु नाम्नी स्त्री में उत्पन्न अश्वमेद राजसू । लंबे गोप ग मेद बर।-१० रा ०, ५५१४० । पुत्र । हुग्रीव । । अश्वमेध---सज्ञा पुं० [स०] १ एक बडा यज्ञ । अश्वघ्न----सज्ञा पुं० [सं०] कनेर का फूल तथा उमका पेड (को०] । विशेप-इसमे घोड़े के मस्तक पर जयपत्र वाँधकर उसे मूम- अवचक्र --सज्ञा पु० [मं०] १ घोडे के चिनो से शुभ शुभ का विचार । इन में घूमने के लिये छोड़ देते थे। उसकी रक्षा के निमित्त २ घोडो का समूह ।। किमी वीर पुरुप को नियुक्त कर देते थे जो सेना लेकर उसके अश्वचिकित्सा सल्ला • [२०] वह शास्त्र जिसमें पशुप्रो के रोगो पीछे पीछे चलता था। जिस किमी राजा को अश्वमेध करने- तथा उनकी चिकित्सा का विवरण होता है को०] । वाले का आधिपत्य स्वीकृत नहीं होता था, वह उस घोड़े को अश्वतर--तज्ञा पुं० [सं०] [ी० अश्वतरी १ एक प्रकार का मर्प ।। बाँध लेता और सेना से युद्ध करता था। अब बाँधनेवाले नागराज । २. खच्चर । ३ वडा को ।४ गधर्वो को एक को पराजित कर तथा घोड़े को छुडाकर सेना आगे बढती थी । जाति को०] । इस प्रकार वह घोड़ा सपूर्ण 'भूमडन मे घूमकर लौटता था, अश्वत्य-सच्चा पुं० [म०] १. पीपल । २ पीपन का गोदा (को०] 1 ३ तव वमको मारकर उसकी च से हवन किया जाता था। सूर्य का एक नाम [को॰] । ४ पीपल में फ न आने का काल यह यज्ञ केवल वडे प्रतापी राजा करते थे। यह यज्ञ माल भर कौ०] । ५. अश्विनी नक्षत्र (को०] । में होता था। अश्वत्थक-संज्ञा पु० म०] १ पीपल मे फन लगने के समय अदा २ एक प्रकार की तान जिम पडने स्वर को छोड़कर शेष यह किया जानेवा ना ऋण । २ पीपल वृक्ष । स्वर लगते हैं। अश्वत्था--सा स्त्री० [सं०] अश्विन की पूणिमा [को०] । अश्वमेधिक°--वि० [सं०] अश्वमेध मवधी [को०] । अश्वत्थाम--- वि० [सं०] घोड़े के समान शक्तिवान्ला (को०] । अश्वमेधिकर--संज्ञा पुं० १ अश्वमेध के योग्य घोडा । २ महाभारत | का चौदहवीं पर्व [को०)। अश्वत्थामा--सझा पुं० [सं० अश्वत्थामन] १ द्रोणाचार्य के पुत्र । अश्वमेधीय--वि० [स०] दे॰ 'अश्वमेधिक' (को॰] । २ मान्नवा के राजा इद्रवर्मा के एक हाथी का नाम जो महा- भारत के युद्ध में मारा गया था । अश्वयुज-वि० [सं०] १ जिसमें घोडा जुता हो । २ जो अश्विनी । नक्षत्र में उत्पन्न हो को॰] । अश्वत्या--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ छोटा पीपल । २ पीपल की तरह अश्वयुज-सज्ञा स्त्री० १ अश्विनी नक्षत्र । २ अाश्विन महीना । लगनेवाला एक छोटी वृक्ष [को०) । ३ रथ जिममे घोडे जुते हो (को०] । अश्वदष्ट्र--संज्ञा स्त्री० [म ०] गोखरू।। अश्र्वयूप--सज्ञा पुं० [सं०] अश्वमेध के धोडे को वाँधने का खुट्टा अश्वदूत--सज्ञा पुं० [सं०] घुइमवार दूत [को०] । | [को॰] । अश्वनाय–सुज्ञा पुं० [सं०] घोड़े की चरवाहा [को॰] । अवनिवचिक---सझा पु० सि ० अश्वनिवन्धिक] अश्वपाल । साईम । अश्वयोग-वि० [म०] घोड़े की तरह तेजी से पहुचनेवाला (को०] । [को०] । अश्वरक्ष--सज्ञा पुं० [स०] अश्वपान [को०] । अश्वपति - सच्चा पु० [सं०] धडमवार । २ रिमालदार । ३ घोडो अवरिपु-मज्ञा पुं० [सं०] भैम [को०] । का मालिक । ४, मरन जी के मामा । ५ केकय देश के राज अवरोधक-सज्ञा पुं० [सं०] कनेर । कुमारी की उपाधि । अश्वपाल–संज्ञा पुं॰ [स०] साईम । अश्वल-सज्ञा पुं० [सं०] एक गोत्रकार ऋषि का नाम । अञ्चपुच्छी-संज्ञा स्त्री० [१०] मापपर्णी नामक पौधा [को०] । अश्वलक्षण-सज्ञा पुं० [स०] घोडे के शुभाशुभ लक्षणो का विचार अश्ववध----मज्ञा पुं० [ म० अश्वबन्य ] चित्रकाव्य में वह पद्य जो [को०] । घोडे के चित्र में इस रीति से लिखा हो कि उसके अक्षरों से अव्वललित-मज्ञा पुं० [स०] अद्रितनया नामक वर्ण वृत्त । अश्वलाला--भज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का साँप [को॰] । अंग प्रत्यग तथा साज और प्रभू पणो के रूप निकल ग्राएँ । अञ्चवला--तज्ञा स्त्री० [म.] मेथी को॰] । अग्ववक्त्र--सज। पुं० [स०] किन्नर [को०] । अश्ववाल--भज्ञा पुं० [सं०] काम का पौधा । अश्ववदन--सज्ञा पुं० [स०] एक प्राचीन देश का नाम । अश्ववह-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'प्रश्ववाह' (को॰] । अश्वभ-नज्ञा स्त्री० [सं०] बिजली [फ़ो। अव्ववार, अश्ववारक-मज्ञा पुं० [म०] धुइनवार [को०] । अश्वमार-सज्ञा पुं० [२०] कनेर का पेट । अश्ववाह, अय्ववाहक----मज्ञा पुं० [म ०] घुइमवार [को०)। श्वमारक-यना पु० [म०] दे० 'अश्वमार' [को०] । अश्वविद्’--वि० [सं०] १ घोडो का शिक्षक । २ घोड़े के नगणो अश्वमान्न-सज्ञा पुं० [८०] एक प्रकार का माप [को०] ! | को जाननेवाला [को०] ।। अश्वमुख-सुज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० अश्वमुखी] किन्नर । । अश्वविद्---सज्ञा पु० १. घुडसवार । २. राजा नल [को०]।