पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४३२

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श्रीत अशीकपुष्पमंजरी कोकपप्पमजरी--मञ्जा भ्री० [म० अशोकपुष्पमञ्जरी] देढक वृत्त, का अश्मंतक---संज्ञा पुं॰ [सं० अश्मतक] १ मूज की तरहू एक घाग जिससे एक भेद जिनमे २८ अक्षर होते हैं और लघु गुरु को कोई प्राचीन काल में ब्राह्मण लोग मेञ्चता अर्थान् करधनी व नाते नियम नही होता, जैसे-सत्यधर्म नित्य धारि व्यर्थ काम सर्व थे । २ अाच्छादन । छाजन । ढकना । ३ दीपाधार । दीवट । डारि भूनि के करो कदा न निचे काम । ४. पापाणमेद । ५ नि मोढा । ६ कचनार । ७ चूर हा । अशोकपूणिमा--संज्ञा स्त्री० [सं०] फाल्गुन की पूणिमा (को॰] । भट्ठी [को०] । अशोकवनिकान्याय-मज्ञा पुं० [सं०] किमी कार्य को करने की अश्क -संज्ञा पुं० [फा०] अश्रु । ग्रम् । उ०-- कल जो टुक रोया कारण न वैनी जानेवाला व्यवहार, जैसे -रावण ने मीता। किसी की याद में वह गुलबदन । अषक थे अखिो मे या मोती जी को अशोक के ही नीचे रहने का क्यो प्रदेश दिया ?इसका कुचनकर भर दिए |--कविता कौ०, भा० ४, पृ० ३३२ । कारण नही बताया गया को०] । अश्म--मझा पुं० [म० अरमन्] १ पर्वत । पहाड । २ मेघ । अशोकवाटिका-संज्ञा स्त्री० [म०] १ वह बगीचा जिसमें अशोक के पेड़ वादन । ३ पत्थर । ४ सोनामक्खी। ५ नोहा । लगे हो। २ क को दूर करने वा ना रम्य उद्यान । ३ रावण | अश्मक---सच्चा पुं० [सं०] एक प्राचीन देश का नाम जो आजकल | का वह प्रसि बगीचा जिसमें उसने सीता जो को ले जाकर ट्रावकोर (त्रिवाकुर) कहलाता है । रखा । अश्मकदली-सच्चा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का केला जो कडा नथा अशोकपष्ठी-मझा स्त्री० [सं०] चैत्र शुक्ला पष्ठीं । इस दिन कामाख्या कम स्वादवाला होता है । काष्ठकद नी । काठकेन: [को॰] । तन के अनुसार पुत्रलाभार्थं पुष्ठी देवी की पूजा की जाती है । | अश्मकुटु--सल्ली पु० [सं०] एक प्रकार के वानप्रस्थ जो मि न, बट्टा या अशोका-संज्ञा स्त्री० [म०] १ कुटकी । २ अशोक की कली । ३ दे। । उखली आदि नही रखते थे, केव ने पत्यर से अन्न कूटकर 'अशोकपष्ठी' । पकाते थे । अशोकारि- संज्ञा स्त्री॰ [म० ] कदव (को०) । अशोकाष्टमी-सज्ञा स्त्री० [सं०] चैत्र शुक्ल अष्टमी ।। अश्मगर्भ---सज्ञा पुं० [म०] पन्न: । मरकत। विप–इम दिन पानी में अशोक के शूट पहनव डालकर उसे अश्मंगभंज-सज्ञा पुं० [सं०] १ शिलाजीत । २ गैरू । ३ नोहा पीने का विधान है तथा अशोक के फुल विप्णु को चढ़ाते हैं। (को०)। अशीच-मज्ञा पुं० [सं०] १ चिता या प्रवाह का अभाव । २ शाति । अश्मज -संज्ञा पुं० [मं०] शिलाजतु । शि नजीत । २ मोमियाई । ३ विनम्रता को०] । ३ लोहा। | अशोच्य–वि० [सं०] शोक न करने योग्य । '३०–बे हैं अशोप, अश्मभेद---सा पु० [स] पखनभेद नाम की जड़ी जो मूत्रकृच्छ् हां म्मरण योग्य हैं नवके ।---माकेत, पृ० २२३ । अादि रोगों में दी जाती है । अशोधित--वि० [सं०] विना शोधन किया हुआ । विना माफ किया अश्मयोनि --मज्ञा पुं० [सं०] पन्ना (को०] । | हुशा । सस्काररहित किो०] । अश्मर--वि० [सं०] पथरीनी । अशोभक---वि० [सं०] माणिक्य का एक दोष को०] ।। अश्मरी-संज्ञा स्त्री० [म०] मूत्ररोग विशेष । पयरी । अशोभन-- वि० [सं०] असदर । अभद्र । मुदर न लगनेवाला । यौ०--अश्मरीने = वरुण वृक्ष । वरना का पेड । अशौच-मज्ञा पुं० [म०] १ अपवित्रता । अशुद्धता । २. हिंदू शास्त्र अश्मसार-सज्ञा पुं० [म०] लोहा । नुमार शौच की अवस्था । अश्मा-सज्ञा पुं० [सं०] १० 'अश्म' [को०] । विशेप--इन अबस्थाप्रो में अशीच माना जाता है-(क) मृतक- अश्मीर-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अश्मरी' [को०] 1 सस्कार के पश्चात मृत के परिवार या सरडवा नो में वर्णक्रमा अश्मोत्य--संज्ञा पुं॰ [म०] शि वाजत [को॰] । नुसार १०, १२, १५ प्रौर ३० दिन तक । (ख) संतान होने अश्र--संज्ञा पु० [सं०] १. असू । ३ रक्त [को०] । पर भी ऊपर के नियमानुसार। शोक के अशौच को सुनक अश्रद्ध-वि० [सं०] श्रद्धा न रखनेवा । विश्वम न रखने वाला र सतानोत्पत्ति के अशौच की वृद्धि कहते हैं। (ग) | को०] । रजस्वला स्त्री को तीन दिन 1 (ब) मल, मूत्र, चाडाने या मुर्दै अदि का स्पर्श होने पर स्नानपर्यंत । अशौचावस्था में अश्रद्धा-सच्चा औ० [म०] [वि॰ अश्रय] यद्वा का अनाव । सध्या तण अादि वैदिक कर्म नहीं किए जाते । अश्रद्धय-वि० [सं०] अग्रद्धा के योग् । घृणा के योग्य । बुरा। अशाचसकर- सच्ची पुं० [म० अशीच सर] दो या दो से अधिक अप'मा ५० [दाम । अशौचो का माथ होना, जैसे किसी परिवार में मृत्यु का अथप-वि० रक्त पीनेवाला । दुष्ट । प्रत्यावारी को॰] । अशीच लगा हो परंतु अशीच काल में ही वालक का जन्म हो अश्रवण'–वि० [सं०] १ जो सुन 17 न हो। वह।। ३ काहीन जाय तो जन्म अशौच के कारण वही अशौचमकर की स्थिति [को॰] । होगी फो] । अश्रवण-सज्ञा पुं० १ साँप । २. श्रवण शक्ति का प्राव । अश्मत'---सज्ञा पुं० [सं० अश्मत] १ चूल्हा । २ अमगल । ३. बहरापन [को०)। मरण । ४ खेत । ५ एक मरुत् कि॰] । अश्रात–वि० [सं० अन्] १ धरह।। स्त्र- 1 ! जो /- अश्मंत-वि० १, अशुभ ! अभागा । ३. असीमित [को० । | मदा न हो। २. विमानरहि । लग र । निरत र ! ३०