पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४२८

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अभ्यभिचारी ३६१ अव्याप्त || हेतु। अव्यभिचारी--सज्ञा पु० न्याय के मत मे माध्य-माधक-व्याप्ति-विशिष्ट यो०--अव्यवस्थितचित्त = जिसका चित्त ठिकाने न हो । चचच- | चित्त । ३०-चह अव्यवस्थितचिन का मनुष्य है ।-(शब्द०)। अव्यय-- वि० [सं०] १ जो विकार को प्राप्त न हो । मदा एकरम अव्यवहार्य--वि० [सं०] १ जो व्यवहार या काम में लाने योग्य न रहनेवाला 1 अक्षय । २ नित्य । प्रादि-अत-रहित । ३. परिणाम हो । जो व्यवहार में न लाया जा मके । २ पतित । पक्तिच्युत । रहित । विकार-रहित । ४. प्रवाहरूप से सदा हुनेवाला । अव्यवहिते---वि० [सं०] विना व्यवधाने या रुकावट का कौ०। अव्यय--सबा पुं० १ व्याकरण मे वह शब्द जिसका सव लिंगो, अवयवहृत--वि० [सं०] जो व्यवहार में न आया हो (को०)। सव विभक्तियो और सव बचनो मे समान रूप से प्रयोग हो । अव्यसन--वि० [म०] व्यसन से मुक्त । यमन से हीन । दुगुण से २ परब्रह्म । ३ शिव । ४ विष्णु । ५ कुशल क्षेम किो०] । दूर किो०] । ६, ममृद्धि [को॰] । अव्यसन-सज्ञा पु० व्यसन या दुगुण का प्रभाव (को०] । अव्ययीभाव-सज्ञा पुं० [सं०] ममास का एक भेद जिसमें अव्यय के अव्याकृत-वि० [म०] १ जो व्याकृत न हो। अविनिष्ट जो विकार साथ उत्तरपद ममस्त होता है। जैसे, अति कान, अनुरूप, प्रति प्राप्त न हो । २ अप्रकट । गुप्त । ३. कारण रूप । कारणस्य । कृप। यह समास प्राय पूर्वपदप्रधान होता है और या तो अव्याकृत-सज्ञा पुं० १ वेदातशास्त्रानुसार अप्रकट वीजरूप जग- विशेषण या क्रियाविशेषण होता है। कारण अज्ञान । २ सायशास्त्रानुसार प्रधान प्रकृति । अव्ययेत–संज्ञा पुं० [सं० ] यमकानुप्रास के दो भेदों में से एक य०-~-अव्याकृतधर्म । जिसमे यमकात्मक अक्षरों के बीच कोई और अक्षर या पद न ब्यक्तिधर्म--मज्ञा पुं० [म०1 वौद्धशाम्यानुमरि यह स्वभाव जिमर्स पड़े, जैसे-अलिनी अलि नीरज बसे प्रति तरुवरनि वहग ! | शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के कर्म किए जा गर्यो । यो मनमथ मन मयन हरि वसे राधिका सग । यहाँ 'अलिनी, अलि नी' और 'मनमय मन मय के बीच कोई प्रौर। | अव्याख्या-मज्ञा पुं० [सं०] स्पष्टीकरण या पाळ्या का प्रभाव (को०] पद नहीं है। अव्याख्यात---वि० [सं०] जिने म्पष्ट न किया गया हो । पारुयाहीन अव्यर्थ-वि० [सं०] १ जो व्यर्थ न हो। सफल । २ सार्थक । ३। [को॰) । अमोघ । अव्याख्येय-वि० [स०] १ व्याख्या के अयोग्य । २ जिसे व्यापा अव्यलोक-वि० [सं०] १ झूठ नहीं । सत्य । ३ सहमत होने योग्य ।। की जरूरत न हो। सरल [को०] । प्रि को॰] । शव्या घात--वि० [स०] १ व्यावीतगून्य । जो रोका न जा सके । अव्यवधान'- सज्ञा पुं० [म०] १ व्यवधान यो अतर का अभाव ।२. वेरोक 1 २ अटूट । लगातार ! निकटतः । लगाब । रोक का न होना । रुकावट का अभाव । अव्याज-वि० [न०] १ छ छद्म से रहिन । निष्कपट । २. ३ लापरबाही (को०]। अकृत्रिम । स्वाभाविक नैसर्गिक ( विणेपत्त समाम मे, जैसे अव्यवधान*--वि० १ बिना व्यवधान या रुकावट का । २ प्रकट । अव्याजमनोहर, अव्यजिरमणीय [को०] । बुना है । ३ नग्न् । अावरणहीन, जैसे भूमि । ४. अव्याज-सज्ञा पुं० छनछद्म का अभाव । निष्कपटता । ईमानदारी तापरवाह को०] । [को०)। अव्यवसाय--संज्ञा पुं० [म०] १. व्यवसाय का अभाव । उद्यम का अव्यापन्न--वि० [सं०] जो मर न हो । जीवित । जिदा । अभाव । २ निश्चयामव । निश्चय का न होना । अव्यापारम० [१०] व्यापारशून्य । चे काम । अव्यवसाय’- वि० उद्यमशून्य । व्यवसायजून्य । अनमी । निकम्मा । अव्यापार. • संज्ञा पु० १ उद्यम को अमाव । निठाना । २ वह काम अव्यवसायी-वि० [४० अव्यवसायिन् ] १ उद्यमहीन । निरुद्यमी । जो अपने में सवधित न हो । विना काम का फार्म [को०] । २ शालमी 1 पुरुपार्यहीन । अव्यापारी -वि० [म० अव्यापारिन्] १ व्यापारशून्य । निद्य मी । अव्यवस्था--सच्चा स्त्री॰ [म०] [वि॰ अव्यवस्थित] १ नियम को न । निठल्नु । २ नापशास्त्रानुसार क्रियाशुन्य, जिममे रुघापार । होना । नियमभाव । बेकायदगी । २ स्थिति का अभाव । अथन् क्रिया करने की शक्ति न हो । जो म्य भाव में मर्यादा का न होना। ३. शास्त्रादिविरुद्ध व्यबस्था । प्रविधि । अकर्ता हो । ४ बेइतजामी । गडवड । अव्यवस्थित-वि० [सं०]१ शास्त्रादि-मर्यादा-रहित । वेमर्याद । ३०० अव्यापी---मज्ञा पुं० [न० अव्यापिन्] [स्त्री० अध्यापिनी] १ जो 'गुप्तकुल का अव्यवस्थित उत्तराधिकार नियम-कद०, व्यापी न हो। जो सब जगह न पाया जाय । २ एक प्रकार पृ० १३। २ अनियत । वेठिाने का । उ०—'सम्राट् को का उत्तरा मान जिममें कहे हुए देश, म्यान का पना न चले, मति एक सी नहीं रहती, वे अव्यवस्थित और चचल हैं।'- जैसे-‘कोई कहे कि काशी के पूर्व मन देश में मेरा वैत यमुक्त कद०, पृ० २८ । ३ च चल । अस्थिर। उ०-मैं इन बातो ने लिया । यहाँ काशी के पूर्व मध्य देन नहीं, किनु मगध देश वो नहीं मुनना चाहती, क्योकि नमय ने मुझे अच्यवस्थित चना है। अत यह ग्रव्यापी है ।। दिया है।-चद्र०, पृ० १३३ । अव्याप्न -वि० [ग] जो पान न है। जो हर जगह न हो । पीमित • छिौ ।