पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४२७

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अवैध ३६० अव्यभिचारी' अवैघ--वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० अवैवी] १ नियम के विपरीत । गैर अव्यक्तक्रिया--संज्ञा नौ० [म ०] बीजगणित की एक क्रिया ।। कानूनी । अविहित । उ०---यदि वे हमी से अवैध सेवा लेना अव्यक्तिगणित--सज्ञा पुं० [स०] वीजगणित। चाहें -म्कद०, पृ० १२१ । ३ जो शास्त्रानुमोदित अव्यक्तगति-वि० [भ०] लिसको गति प्रकट न हो । अप्रत्यक्ष गमुन न हो । करनेवाला (को०] । अवैधानिक -वि० [सं०] जो विधान या नियम के विपरीत हो । अव्यक्तपद--सज्ञा पुं० [सं०]वह पद जिमको तालु अादि म्यानो द्वारा अवैमत्य-सज्ञा पु० [सं०] मतभेद का अभाव । ऐक मत्य । स्पष्ट उच्चारण न हो सके, जे में विडिको की वो दी। अवैमत्य--वि० जिसमे मतभेद न हो । सर्वम मत । अव्यक्तमलप्रभव--सज्ञा पु० [सं०] समार। जगन् ।। अवक्षण-संज्ञा पुं॰ [स०] तिरछा हाथ करके जन गिराना । तिरछा । अव्यक्तराग-सज्ञा पुं० [सं०]१ हल्का नाय । अम् । २ गौर। श्वेत । हाथ करके जल छिड़कना । अव्यक्तराशि --संज्ञा स्त्री० [सं०] (वीजगणित में) बह राशि जिमका अत्रोद--वि० [स०] गीता प्रा नम [को०] । मान अनिश्चित हो [को०] । अवोद-सञ्ज्ञा पुं॰ अद्र करना । गीला करना [को०] । अव्यक्तलक्षण-संज्ञा पुं॰ [सं०] शिव [को०] । अवोष---सज्ञा पुं॰ [स०] ताजा या गरमागरम भोजन [को०] । अव्यक्तलिंग-सगा पुं० [सं० अध्यक्तलिङ्ग]१ मारु पशास्त्रानुसार महत- अव्यग--वि० [स ० अव्यङ्ग] जो व्यग या दुः न हो । सीधा । त्वादि । २ मन्यामी । ३ वह रोग जो पहूचना न जाय । अव्यंगग--वि० [वि० अपाङ्ग] [स्त्री० अव्यगागी] जिमका अर्वपक्ताम्य--स नः पुं० [सं०] १ ज गाण के प्रनु । कोई अग टेढा नै हो । मुडौल ।। या वर्ण का ममीकरण । अव्यगा --संज्ञा स्त्री॰ [स० अव्यङ्गा] केवच । करैच । कौंच । । अव्यक्तानकरण---मज्ञा पुं० [स०] ग्र$: गई। क( प्र 3 फर । । जैसे, अव्यग्य-वि० [सं० भव्यड ग्य]१ निर्दोष । २ व्यग्यरहित । व्य जन- मनुष्य मुर्गे की वो ती पर उसको नक न करके 'कुक्डू कू" विहीन (को०] । योलता है। विशेप-- साहित्य में अव्यग्य काव्य को अवर अर्थात् अधम कोटि मे । अव्यक्तिक - वि० [सं०] दे॰ 'अव्यक्त' [को०] । माना गया है ।। अपग्र-- -वि० [स०] १ जो 579 न हो। बोर। २ पानवार । अव्यजन--वि० [सं० ग्रेव्यञ्जन] [वि० सी० अन्यजना] १ बिना मत* (को॰) । सीग का (पशु) । दू हा । २ जो सु नक्षण न हो। कु नक्षण । अपथ---वि॰ [न] १ कि । को दु ख न देने वाला । दयानु । २ ३ जिसमे (जवानी का) कोई चिह्न न हो । चिह्नशून्य । ४ जो | वेदना से रहित । दुव से दूर [को०]। पृथक् या व्यक्त न हो (को॰] । अपथ-सज्ञा पुं० साँप (को] । अव्यजन-सझा पुं० १ ऋ गहीन पशु । ड्डा पणु । २. जो व्यजन न । अव्यथय--संज्ञा पुं० [सं०] अश्व । घोडा (को०] । हो अर्थात् स्वर (को॰] । अव्यथा—मज्ञा पुं० [सं०] १ हरीतको । हड । २ सा5 । ३ म्यन- अव्यडा--संज्ञा स्त्री० [सं० अन्यण्डा] १ केवॉच । करैच । कौंच । कमल । स्थल ।। ४ गोर जमुडी । ५ प्रदि । ६. स्थिरतह । अव्यक्त --वि० [म०] १ जो स्पष्ट न हो । अप्रत्यक्ष । अगोचर । दृढता [को॰] । उ०—(क) अटल शक्ति अविनाश अधिक वन एक अनादि अव्यथिप-मज्ञा पुं० [म ०] १ सूर्य । २ समुद्र [को॰] । ' अनून । अदि अपरत अविकापर्ण अखिल लोक तंत्र रूप . अवघथिपी--मज्ञा जी० [न ०] 1 पृथ्वी । २ । । Dj fन ।। सूर (शब्दं० । (ख) सिर्फ एक अव्यक्त शब्द सा 'चुप, चुप, निशीथ (को०)। चुप' ।-अपरा, पृ० १३ । २ अज्ञात । अनिर्वचनीय । उ०—- अव्ययो--० [सं० प्रथपिन् । दु व पे मु।।। २ । ने पुF{ । प्रथम शब्द है शून्याकार । परा अव्यक्त सो कहै विचार |-- निर्भय । ३ दु व न देने वाल [को०] । कबीर (शब्द॰) । अव्यर्थप्र-- वि० [स०] ३० १ नि f6 पी प्र है । क्षुब्ध न f6 {{ जा सके । २ दे० 'अव्ययी' (को०] । अव्यक्त--संज्ञा पुं० [सं०] १ विष्णु । २ कामदेव । ३ शिव । ४ । अपपदेश्य'- - [स] १ ज हा न जा है । अत्र । -। प्रधान । प्रकृति (साख्य) । उ०--अव्यक्त मून मनादि २ न्यायानुसार निकला। जिसमें विकल्प या उलट फेर तरुत्त्रच चारि निगमागम भने ।--मानम, ७१३ ५ वेदात न हो । निश्चित 1 ३ ग्रनिदेश्य । शास्त्रानुसार अज्ञान । सूक्ष्म शरीर और मुषुप्ति अवस्था । ६ । अव्यपदेश्य- संज्ञा पुं० १ नि कल्प ज्ञान । २ ब्रह्म । ब्रह्म । ईश्वर । ७ वीजगणित के अनुसार वह राशि जिममा अभि वि बार-- स । पुं० [सं०] १ अविच्छिन्नता । सागर । २ . मान अनिश्चित हो। अनवगत राशि । ८ मायोराधिक प्रह्म वफादारी । ३ नित्यमग या साहचर्य [को०)। (शकर)। ६ जीव । अव्यभिचारी ----वि० [म० अन्यभिचारिन] जो किसी प्रक्लि कारण क्रि० प्र०—होना (१) प्रकृति दशा को प्राप्त होना । कार म मे लय से हटे नही । अनुकू । । २ जो किसी प्रकार व्यभि वारिन न होना । (२) अप्रकट होना। लुप्त होना । निर्वचनीय से हो । ३ धर्मशील । सरित। नैतिक [को०]। ४.नित्य । अनिवर्चनीय अवस्या को प्राप्त होना ।,, , जो हमेशा बना रहे। एकरस [को०)।