पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/४२६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। विह अवैद्य विह(0--वि० [स० अ + विघटेप]१. जो विहढे नही । जो खडिन न अवैज -सज्ञा पुं० [अ० एवज] बदला । प्रतीकार । उ० ---मोरगे हो । अखड । अनश्वर। उ०--(क) अविड अखडित पत्र है। में गज में चढो जात चलो अँगेरेज। कालीदह वोरयो गगन ताको निर्मप दास । तीन गुन के पेलि के चौथे कियो निवाम 1 लिय कपि चना अवेज !-रघुराज (शब्द॰) । वीर (शब्द०) । (ख) अविहड अँग विहडे नही अपलट पलट अवेणि-वि० [सं०] १ वेणी न किया हुआ । २ जिन वाली की न जाय । दादू अनवट एक रम भव में रहा ममाय ।“दादू | वेणी न बनी हो। ३. जो एक साथ मिलकर न प्रवाहित हो, (शब्द०) । २ दे० 'बीहट' । । ---जैसे नदी का जल [को०] । अविहर-वि० [हिं० + विहर: विख़रनेवाला) ३० अविड । अवेत--वि० [सं०] १ बीता हुआ।। २ पाया हल्ला । प्राप्त किया

३०-हुदोर जजह ढाल मुरे गोरीदल अविर । प्रि०

इया । ३ सयूक्त [को॰] । ० १३१६५ । अवेद-सया पुं० [न०1 वेद से भिन्न । जो वैद न हो (को०] । । अविहित--वि० [म०] १ जो विहित न हो । विरुद्। २ अनुचित । यौ०-- अवेदविद अवेदविहित । | अयोग्य । ३ निकृष्ट । नीच । अवेदि-सज्ञा स्त्री० [स०] मूर्खता ! अज्ञान (को०)। अवी- सज्ञा स्त्री॰ [म०] १ ऋतुमती स्त्री । वनकुलयो । अवेद्य'--वि० पु० [सं०] १ जो जाना न जा सके । अस्य । २. अवीचि-सज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक नरक । अलभ्य । अवचि--वि० लहविहीन । जिसमे नहर न हो [को०] । । । अवेद्य ----सज्ञा पुं० १ वडा । २ नादान बच्चा । प्रवीज-वि० [सं०] १ बीजरहित । २ नपु म । ३ मुख्य हेतु का । अवेद्या--वि० स्त्री० [स०] वह स्त्री जिम से विवाह नही कर मकने । | अभाव [को०] । अविवाह्य स्त्री । अवीज-मज्ञा पुं० १ मानमिक उन जना पर नियंत्रण । २ वीज का । अवेल-वि० [सं०] १ जिमकी सीमा नै हो । असीमित । २ | अभाव या न होना । ३ बुरा वीज । असामयिक को०) । प्रवीजक-वि०, सच्चा पुं० [१०] दे० 'अवीज' (को०] । अवेल’---संज्ञा पुं० गोपन' छिपाव । दुराचे (को०] । घवीजा-संज्ञा स्त्री० [सं०] किशमिश । अवेला--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ बुरा ममय । कुसमय । अनुचित समय । प्रतिकूल समय । ३ चवाया हुआ पान (को०] । अवीरा--वि० स्त्री० [सं० [ १ जिम स्त्री के पुत्र और पति न हो । पुत्र । अवेव--वि० [सं० -नहीं+बेग] निर्यन । ३०---सब नौ भूले और पति रहित (स्त्री) । २ स्वतत्र (म्) । सीहू ज्यू ग्रसुरा लखे अवेव ।-रा० ऋ०, पृ० २:८ । अवोह-वि० [सं० प्रवीड? 1 जी डरे नहीं। अभय । निडर - (डि०) । श्रबेश'---सज्ञा पुं० [स० अावेश] १ किसी विचार में इस प्रकार तन्मय हो जाना कि अपनी स्थिति भूल जाय । अावेश । जोश । अवृक्ष --वि० [सं०] वृक्षविहीन । पेड पौधों से रहीत (को०] । मनोवैग । उ०-मारि मारि करि, कर पढग निकामि लियो अवृत-वि० [सं०] १ जो रोका न गया हो । २ निर्वाचित । दियो घोर सागर में सो अवेश अायो है ।-ना PF (शब्द॰) । ३ वरणरहित । रक्षाविहीन । ४ जो किसी के वश मे २ मग । चेतनता अनुप्रवेश । उ०- शिष्यन सो कह्यो या पराभूत न हो। कामू देह में प्रवेश जानो तव ही वखानो अनि मुनि कर्ज प्रवृत्ति'---मशा सूज्ञा [म०] १ जीविका का अभाव । २ स्थिति का न्यारी है।---प्रिया (शब्द॰) । ३ 'भूताबेश । भूत चढना ! | अभाव । वैठिकानापन । किभी भूत का सिर अना। भूत लगना । उ०--कोक कहै। प्रवृत्ति--वि० १ अस्तित्व या स्थितिरहित । २ जीविकाहीन (को०] दोप, कोऊ कहत अवेश ताप करौ दशरथ कियो भाव पूरी प्रवृया-अव्य० [सं०] सफलतान हित । अव्यर्थ [को॰) । परयो है ।:- नाभा (अब्द०)। सु-सच्चा पुं० [सं०] विना वृद्धि या व्याज का रुपया। मूल प्रवेश-वि० [सं०] विना वैशवानी । वैशरहित [को०] । अवेस्ता---सधा जी० [पहल०] १ ईरान के पूर्वी जनसमूह की एक भवृक---दि० जिमपर ब्याज न लगता हो । जो बढ़ना न हो । पुरानी मापा जो संस्कृत के अनि निकट है। ३. पारमियो की भवष्ट्रि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] वर्षा का अभाव । अवर्षण । मूखा को०] 1 एक धर्मपुस्तक । भवदाक-- वि० [स०] १ देवनेवला । अवलोकन करनेवाला । २० । | अवैज्ञानिक--वि० [सं०] १ जिमका विज्ञान में कोई सत्र न हो । जाँच पड़ताल करनेवाला । निरीक्षक (को०] । | २ जो तर्कसमत न हो को॰] । स--सझा पुं० [मं०] [वि० अवेक्षित अवेक्षणीय]१ अवलोकने , अवैतनिक-वि० [सं०] जो वैतनिक न हो । जो किसी काम को करने देखना । २ जाँच पड़ताल । देखभान । निरीक्षण । के लिये वेतन न पाए । विना वेतन के काम करनेवाला । यि--वि० [सं०] १ देखने योग्य । निरीक्षण योग्य २ जाँच अनि ।। के लायक । परीक्षा के योग्य । अवैदिक-- वि० [स०] वेदविच्छ। भद्धा जी० [सं०] १ अवेक्षण । देखना । २ परवाह । ध्यान । अवेद्य-वि० [२०] १ जो वैद्य न हो । जो वैद्यकशास्त्र की न जानना याल । । । हो । २ प्रज्ञ । अनजान । | घन् । अमल । अवेक्षा--भज्ञा स्त्री॰ [स]